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  Editorial  
सम्पादकीय
ताकि, याद रहे विभाजन की विभीषिका

यह फैसला बहुत देर से आया, लेकिन आ गया। यह संतोष की बात है। उन बलिदानियों, त्यागियों और सर्वस्व न्यौछावर करने वालों का स्मरण अब सरकार भी करेगी, जिन्होंने विभाजन की विभीषिका को झेला था। भारत विभाजन के समय एक हिस्से के करीब एक करोड़ लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा था । लगभग 25 लाख लोगों को जानें गंवानी पड़ी थीं। सर्वाधिक अत्याचार उन हिन्दुओं और सिखों पर हुए थे, जोकि पाकिस्तान के हिस्से में गए भू-भाग में रह गए थे। विस्तृत.......

दिल्ली पुलिस का धैर्य प्रशंसनीय

दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड़ के दौरान हुई अराजकता से निपटने और रोकने में जिस धैर्य और सूझबूझ का परिचय दिया वह प्रशंसनीय है। किसानों और उनके बीच घुसे असमाजिक तत्वों ने पुलिस को उकसाने की भरसक कोशिश की। कई बार पुलिस पर हमला किया गया। पुलिस पर तलवारों से वार करने की, ट्रैक्टर चढ़ाने की, वर्दी पर हाथ डालने जैसी कई घटनाएं हुईं। विस्तृत.......

नेटफिलिक्स की अक्षम्य धृष्टता

मध्य प्रदेश की एक कहानी पर निर्मित की गई वेब सीरीज में नेटफिलिक्स ने अक्षम्य धृष्टता की है। इसके लिए इसे क्षमा नहीं किया जा सकता है। यह ऐसा अपराध है जोकि किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं किया गया, बल्कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज की भावनाओं को आहत करता है। इसपर मध्य प्रदेश सरकार को कडी कार्रवाई करते लघु फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म से हटवाना चाहिए। विस्तृत.......

चर्च के षडयन्त्र और झारखण्ड सरकार

झारखण्ड की हेमन्त सोरेन सरकार चर्च के षडयन्त्रों की शिकार हो गई है । पूर्वोत्तर के जन जातीय और वनवासी क्षेत्रों में जो काम चर्च नहीं कर पा रहा था । वह झारखण्ड की कांग्रेस समर्थित सरकार ने कर दिया है। झारखण्ड विधान सभा में 11 नवम्बर को सरना आदिवासी धर्म कोड़ बिल पारित किया गया । इस कोड़ बिल के बाद सरना जनजातीय समुदाय को हिन्दू से अलग धर्म के रूप में मान्यता का प्रावधान है। हालांकि यह बिल राज्य में पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कानूनी रूप ले सकता है। विस्तृत.......

बाल सुरक्षा का प्रश्न

कानपुर के घाटमपुर क्षेत्र में दीवाली की शाम हुई छह साल की बालिका की हत्या ने समूचे समाज को झकझोर दिया है। पूरा समाज इस घटना से स्तब्ध है,आक्रोश और क्षोभ है। घटना अति निंदनीय है, अक्षम्य है लेकिन, सोचनीय भी है कि आखिर ऐसी घटनाओं को कौन और कैसे लोग अंजाम दे रहे हैं। विस्तृत.......

समाज बांटने की बड़ी साजिश

पंजाब के एक गांव में दशहरा पर रावण के स्थान पर भगवान श्री राम का पुतला जलाया गया है। यह घटना अत्यन्त निंदनीय और अक्षम्य है। घटना के पीछे गहरी साजिश है। यह पंजाब में हिन्दू समाज को अपमानित करके सिखों के खिलाफ भड़काने की एक योजनाबद्ध तरीके से की गई घटना है। इसके पीछे के मंसूबों को समझना बेहद जरूरी है। विस्तृत.......

कितनी निकिताएं और

देश में जिहादियों का दु:साहस चरम पर है। नागरिक और धार्मिक स्वतंत्रता, देश की धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बहुसंख्यक समाज की बेटियों की बलि चढ़ रही है। सोची समझी साजिश के और अल्पसंख्यकवाद के संरक्षण में हिन्दू समाज की अस्मिता पर आघात किये जा रहे हैं। लव जिहाद को हथियार बनाया गया है। ये जिहादी तत्व हिन्दू समाज की लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने की कोशिश करते हैं। फिर उसका धर्मान्तरण कराकर हिन्दू समाज को अपमानित किया जाता है। विस्तृत.......

रामसेवकों को न्याय

लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने यह फैसला सुनाकर कि अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने की कोई साजिश नहीं हुई थी,रामसेवकों को न्याय प्रदान किया है। भगवान श्रीराम जन्मस्थान पर पांच सौ साल पहले बनाये गए बाबरी मस्जिद नाम के ढाचा को गिराने पर सीबीआई ने 49 लोगों को आरोपी बनाया था। इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करके सजा देने की मांग की थी। विस्तृत.......

क्या सुरक्षित है रूस की स्पूतनिक वैक्सीन

पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद सशक्त देश के रूप में उभरे रूस ने बुधवार 11 अगस्त को यह घोषणा करके विश्व को चौंका दिया कि उसने कोरोना जनित रोग कोविड-19 की रोकथाम के लिए वैक्सीन बना ली है। इतना ही नहीं इस वैक्सीन को जारी करके राष्ट्रपति पुतिन की बेटी को पहली टीका लगा दिये जाने की भी सूचना मिली। यह एक सुखद और संतोषप्रद समाचार है कि दुनिया के सौ से अधिक देशों को अपनी चपेट में लेने वाले वायरस कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए रूस ने सार्थक पहल की है विस्तृत.......

श्रीराम मन्दिर : पूरी हुई आस

टकटकी लगाए देख रहे हिन्दू समाज की आस पांच अगस्त को पूरी हो गई। अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12 बजकर 44 मिनट पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने गर्भगृह के निर्माण के लिए भूमि पूजन कर मन्दिर की नींव की शिला रख दी। यह क्षण समस्त भारतवासियों के लिए अत्यन्त भावुक था, आह्लादित करने वाला था, रोमांचक था, अकल्पनीय था। विशेष रूप से उस पीढ़ी के लिए सौभाग्यदायक था, विस्तृत.......

492 साल बाद आई यह शुभ  घड़ी

पांच अगस्त 2020 की वह शुभ घड़ी निकट आ गई है, जब भगवान श्रीराम को उनके जन्मस्थान पर भव्य-दिव्य मन्दिर में विराजमान होने का मार्ग प्रसस्त हो गया है। इस दिन भूमि पूजन के बाद श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण कार्य विधिवत् आरंभ हो जाएगा। मन्दिर की पहली शिला रखने के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं अयोध्या पधार रहे हैं। विस्तृत.......

आतंक का अंत

कानपुर में पुलिस मुठभेड़ में विकास दुबे के मारे जाने के बाद बीस साल के आतंक का अत हो गया है। भय, आतंक और अत्याचार से जनमानस को त्रस्त करने वाले दुर्दात अपराधी के अंत से कानपुर मण्डल की जनता को राहत मिलेगी। विकास दुबे ऐसा नाम था जिसके भय और आतंक के कारण उसके गांव बिकरू और आसपास के इलाके में पुलिस का प्रभाव निष्प्रभावी था। विस्तृत.......

'स्वयंसेवक का पुण्य प्रयास

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर निवासी कार्यकर्ता चिरंजीव धीवर ने समस्त मानव जीवन को बचाने के लिए पुण्य प्रयास किया है। उन्होंने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) और भारत बायोटेक के संयुक्त प्रयास से निर्मित कोविड-19 रोग निरोधी टीका के प्रयोग के लिए स्वयं के शरीर को अर्पित किया है। विस्तृत.......

कोरोना से युद्ध में निजी अस्पतालों की भूमिका

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में निजी अस्पतालों का सहयोग लेने का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फैसला स्वागत योग्य है। उन्होंने इस महामारी से युद्ध में अभी तक लड़ रहे केवल सरकारी चिकित्सा तंत्र को कुछ राहत देने का भी प्रयास किया है। जब से देश में कोरोना का कहर शुरु हुआ है। सबसे पहले इस संक्रामक बीमारी के इलाज से दूर अगर कोई भागा तो वह था निजी चिकित्सा क्षेत्र ।

कोरोना संकट और संघ का संदेश

कथित रूप से चीन के बुहान प्रांत स्थित जैव विज्ञान प्रयोगशाला बुहान इंस्टीट्यूट आफ बायरोलाजी में विकसित कोरोना वायरस से समूचा विश्व त्राहिमाम्-त्राहिमाम् कर रहा है। दुनिया के करीब-करीब सभी देश कोरोनाजनित बीमारी कोविड़-19 की  चपेट मे हैं। तीस लाख लोग इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। दो लाख लोगों की जान जा चुकी है। ऐसे में भारत में भी सरकार को बीमारी से लड़ने में अपने सभी संसाधन लगाने पड़े हैं। काम धंधे बंद हो गए हैं, लोगों के पास रोजगार नहीं हैं।

कोरोना संकट बनाम तबलीगी जमात

कोरोना महामारी संकट के पहले इस्लामी जगत के बाहर बहुत काम लोग जानते होंगे कि तबलीगी जमात भी कोई समुदाय या संस्था है। लेकिन, कोरोना काल ने तबलीगी जमात के बारे में पूरे देश को बता दिया। क्योंकि देश में कोरोना महामारी के बढ़ने की गति को दोगुना करने के लिए जमात को जिम्मेदार माना जा रहा है।

जनकर्फ्यू में अभूतपूर्व एकजुटता

बाइस मार्च दो हजार बीस देश ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास की तारीख बन गई है। इस दिन भारत ने आत्मानुशासन की संकल्प शक्ति और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय कराया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश ने रविवार को अभूतपूर्व एकजुटता दिखायी। सम्पूर्ण भारत स्वंप्रेरणा से बंद रहा। लोग घरों में रहे, बाजार, संस्थान, यातायात साधन, शिक्षण संस्थाएं बंद रहे। सड़क पर केवल पुलिस और अति आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोग ही निकले। यह अभूतपूर्व एकता संक्रमण से लड़ने के लिए एक बड़ा अस्त्र साबित होने जा रही है। Read More......

सांसद गोगोई: प्रतिभा का सम्मान

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने राज्य सभा में रिक्त नामित सदस्य के स्थान को भरने के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई पर सहमति जताई है। उनके नाम की सिफारिश राष्ट्रपति से सरकार की ओर से की जाएगी। रंजन गोगोई का  चयन पूरी तरह से देश के सम्मान और गरिमा को बढ़ाने वाला है।

बड़ी साजिश का खुलासा

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के नाम पर  उत्तर प्रदेश को अशांत करने के लिए बड़ी साजिश रची गई थी। पुलिस जांच के बाद इस साजिश की परतें खुलने लगी हैं। जो सूचनाएं सामने आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि यूपी को दहलाने और अशांति फैलाने के लिए साजिशकर्ता योजनाबद्ध ढंग से सक्रिय हुए थे। उन्होंने कई हफ्ते पहले से तैयारी शुरु की थी। इस प्रदर्शन को उग्र करने के लिए साजिशकर्ताओं ने कश्मीर से 60 से 70 पत्थरबाज युवकों को बुलाया था।

उपद्रवदियों ने बलिदान दिवस का किया अपमान
लोकतंत्र में विरोध और असहमति जनता का मौलिक अधिकार है। कोई  जरूरी नहीं कि हर नागरिक सरकार की किसी बात से या नीति से सहमत ही हो। अगर वह अहसमति रखता है, यदि उसके  विचार भिन्न हैं तो वह प्रतिरोध कर सकता है। असहमति जता सकता है। लेकिन, इसके लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। विरोध में प्रदर्शन और धरना आदि उसके सर्वमान्य तरीके हैं।
अपना फैसला

अपने बारे में खुद ही कोई फैसला करना हो, तो यह कठिन ही नहीं बेहद कठिन काम है। वह तब जब न्याय करना हो, किसी मुकदमे का फैसला करना हो, तो कितना मुश्किल काम होगा। यह सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों से अधिक कोई नहीं जान सकता, जिन्होंने बुधवार को ऐसा फैसला सुना दिया, जिसे इतिहास में याद किया जाएगा। एक याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय की भी जवाबदेही तय करने का प्रश्न अदालत के सामने आया, कि क्या इसे सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के दायरे में होना चाहिए अथवा नहीं। सर्वोच्च न्यायालय के काम काज और निर्णय प्रक्रिया क्या सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत होने चाहिए अथवा नहीं ? इस सवाल का जवाब सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में दिया ।

सत्य की विजय

आज गुरु नानक देव जी 550 वीं जयंती है।  नौ नवम्बर ऐतिहासिक तिथि है।  इस तारीख के इतिहास में एक और योगदान जुड़ गया है, यह है सत्य की विजय । सर्वोच्च न्यायालय ने आज अटल सत्य को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से स्वीकृति प्रदान कर दी। यह अटल सत्य है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ। उनका जन्म जिस स्थान पर हुआ वहां रामलला का मन्दिर था।

आन्दोलित पुलिस : जिम्मेदार कौन ?

दिल्ली पुलिस ने आन्दोलन कर दिया । मांगों के लिए वे सड़कों पर उतर आये । उन्होंने उसी अन्दाज में आन्दोलन किया,जैसे कोई अन्य कर्मचारी संगठन अपनी मांगों के लिए करता है। उनकी मांगें एक दम जायज हैं। लेकिन, मांगे मनवाने का यह तरीका क्या जायज है ? अनुशासित कहे जाने वाले बलों में आन्दोलन की प्रवृत्ति पनपना क्या उचित है ?

निंदनीय

रामपुर में वर्ष 2007 के आखिरी दिन जिन आतंकवादियों ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के ग्रुप सेंटर पर हमला किया था,  उनसे उत्तर प्रदेश की पूर्व समाजवादी पार्टी सरकार मुकदमे वापस लेना चाहती थी।  इन आतंकवादियों को शनिवार को अपर जनपद न्यायालय (तृतीय ) ने फांसी की सजा सुनाई है, जबकि एक को आजीवन कारावास और एक को दस साल की सजा हुई है।

दिल्ली प्रदूषण : सिर्फ किसान जिम्मेदार नहीं

दिल्ली और आसपास के इलाकों की आवो हवा आजकल बेहद खराब स्तर पर है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण ने एनसीआर में हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में सांस लेना दूभर हो रहा है। धुंध की स्थिति यह है कि, सडकें दिखाई नहीं दे रही हैं। दिल्ली को गैस चैंबर कहा जाने लगा है। यह स्थिति क्यों कैसे हुई? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ये सवाल उठाये जा रहे हैं। दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी के हालात पैदा होने के लिए अगर कोई सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, तो वह  है दिल्ली सरकार । साथ ही केन्द्र के विभागों और एनसीआर के प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वह समय रहते उपाय करते।

आतंक का अंत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार की सुबह जब एक ट्वीट करके यह कहा कि अभी-अभी कुछ बड़ा हुआ है तो दुनिया में कई तरह की चर्चाएं शुरु हो गई थीं। लेकिन, इतना लोग निश्चित तौर पर कहने लगे थे, कि अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करके सफलता पायी है। इस कार्रवाई का अनुमान भी लगभग दुनिया ने लगा लिया था कि इस बार आतंक के सरगना बगदादी Abu Bakar Al Baghdadiका खात्मा कर दिया गया है।
आनन्दीबेन की अनुत्तरित टिप्पणी
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने राज्य की व्यवस्था पर तल्ख टिप्पणी की है। उनकी टिप्पणी का फिलहाल राज्य सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। पटेल ने शुक्रवार को राजधानी के प्रतिष्ठित किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमययू) के दीक्षान्त समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधन में कहा कि  प्रदेश के अस्पतालों में वसूली हो रही है और थानों में जाने से लोग डरते हैं।
उत्तर प्रदेशः उप चुनाव का संदेश
उत्तर प्रदेश में 11 विधान सभा क्षेत्रों में हुए उप चुनाव ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि राज्य में समाजवादी पार्टी ही मुख्य विपक्षी दल है। बीते लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच हुए गठबंधन की विफलता के बाद मायवती ने एक तरफा फैसला लेते हुए एकला चलों की नीति अपना ली थी। लेकिन, इससे उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है। बल्कि इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि सपा ही भाजपा के सामने मुख्य मुकाबले में रहने वाली है। Read More
कांग्रेस का षडयन्त्र विफल
सर्वेश कुमार सिंह
हैदराबाद की विशेष एनआईए अदालत ने कांग्रेस और संप्रग सरकार के बहुत बड़े षडयन्त्र को विफ्ल कर दिया है। गवा आतंक नाम से गढ़ी गई नई परभाषा और शब्दावली को तार तार करते हुए अदालत ने मक्का मस्जिद विफोट मामले में स्वामी असीमानन्द और उनके चार साथियों को ससम्मान निर्दोष ठहराते हुए आरोप मुक्त कर दिया है। 16 अप्रैल को अतिरिक्त महानगरीय सत्र न्यायाधीश जे. रविन्द्र रेड्डी ने फैसला सुनाते हुए एनआईए के सभी आरोप खारिज कर दिए।
स्मरण इन्दिरा गांधी
सर्वेश कुमार सिंह
श्रीमती इन्दिरा गांधी की आज 19 नवम्बर 2017 को सौवीं जयंती है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण किया जाना इस मौके पर समीचीन होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने ऩ केवल इतिहास रचा, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल भी बदल दिया।
भारतीय भाषाओं का सम्मान
सर्वेश कुमार सिंह
हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए संसद की विधि एवं कार्मिक विभाग की स्थायी संसदीय समिति बधाई की पात्र है। इस समिति ने अपनी हाल ही में की गई संस्तुति में केन्द्र सरकार से अपील की है कि सभी उच्च न्यायालयों में हिन्दी और उक्त क्षेत्रों की स्थानीय भाषा का उपयोग शुरु किया जाए। इसके लिए केन्द्र सरकार को न्यायपालिका के साथ किसी भी प्रकार के विचार विमर्श की भी जरूरत नहीं है। सरकार को संविधान में पर्याप्त अधिकार प्राप्त हैं।
घटिया मानसिकता: सुरक्षा पर सियासत
सर्वेश कुमार सिंह
देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रुप में ख्याति रखनी वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा रहा है। इस पार्टी ने देश में लगभग छह दशक तक शासन भी किया है। किन्तु अब इसके उत्तराधिकारी और कर्ताधर्ता राष्ट्रविरोधी मानसिकता का प्रदर्शन करके कांग्रेस के इतिहास को कलंकित कर रहे हैं। Read More
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: ध्येय साधना का अनुगामी
सर्वेश कुमार सिंह
भारत भूमि का यह पुण्य प्रताप ही है कि 91 साल पहले इसने अपने गर्भ से साक्षात देवतुल्य संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन्म दिया। अंग्रेजी दासता और पराभव मानसिकता से ग्रस्त देश के आदि हिन्दू समाज में नवशक्ति संचार और ऊर्जा का प्रवाह करने के लिए वर्ष 1925 में विजयदशमीं के दिन रा.स्व.सं की स्थापना हुई।  Read More
सेना पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण 
सर्वेश कुमार सिंह
लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष की भूमिका समान रूप से महत्व रखती है। विपक्ष का दायित्व है कि वह राष्ट्रीय मामलों में अपना पक्ष रखे और आवश्यकतानुसार सरकार के फैसलों की आलोचना और समालोचना भी करे। किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे पर विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए। विशेष रुप से सेना के मामले अत्यन्त संवेदनशील तथा राष्ट्र हित से जुड़े होते हैं। उन्हें राजनीति से दूर रखना सभी का दायित्व है।    Read More
काले धन पर निर्णायक वार
सर्वेश कुमार सिंह
काले धन और नकली नोटों के के कारोबार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निर्णायक वार किया है। उनके इस फैसले से देश को आर्थिक सुरक्षा कवच मिलेगा। यह अकल्पनीय है, साहसिक है और दूरगामी परिणामदायक है। इसने न केवल हमारे आर्थिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई है। आठ नवम्बर को लिये गए इस फैसले से जहां भ्रष्ट, कालेधन को संग्रह करने वाले असामाजिक तत्व और अवैध नोटों के संचालन का तंत्र चला रहे राष्ट्र विरोधियों के हौसले पस्त हो गए हैं, वहीं आम नागरिक ने राहत की सांस ली है। Read More
गो रक्षा का संकल्प
सर्वेश कुमार सिंह
सात नवम्बर को ही इस साल भी गोपाष्टमी है। यह गो रक्षा के संकल्प का दिन है। इस दिन पचास साल पहले भी गोपाष्टमी थी। गाय के प्राणों की रक्षा के लिए इस दिन दिल्ली में संसद भवन पर विशाल प्रदर्शन हुआ था। एक लाख से अधिक एकत्रित हुए संतों पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने गोली चलवा दी थी। अनेकों साधू और गो भक्त मारे गए थे। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह संत शक्ति का अभी तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन था। Read More
पाकिस्तान: नसीहत और निन्दा नाकाफी  
सर्वेश कुमार सिंह
  संसद में गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह कथन कि हम अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते, एकदम सही है। लेकिन, जब किसी पड़ोसी की हरकतें हद दर्जे को पार कर जाएं ,तो पड़ोसी को सबक जरूर सिखाया जा सकता है। और, अब वह समय आ गया है, जब हमें इस पड़ोसी को एकबार फिर सबक सिखाने की जरूरत है।

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मायावती का सम्मान बनाम अन्य महिलाएं

सर्वेश कुमार सिंह

बहुजन समाज पार्टी की नेता सुश्री मायावती के सम्मान का मुद्दा अब ' मायावती का सम्मान बनाम अन्य महिलाओं के सम्मान ' में तब्दील हो गया है। क्योंकि, मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पड़ी के एवज में उनके समर्थकों ने आरोपी दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं का अपमान करना शुरु कर दिया है। सार्वजनिक मंच से उनके परिवार की महिलाओं, बहन-बेटी के लिए अपशब्द बोले गए। यह उतना ही निन्दनीय है जितनी मायवती पर की गई टिप्पडी। समाज और राज्य व्यवस्था में ' अपराध के बदले अपराध ' की छूट नहीं है।Read More
बांग्लादेश का उचित निर्णय

सर्वेश कुमार सिंह

बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रहित में दो महत्वपूर्ण फैसले किये हैं। दोनों फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा एवं समाजिक एकता के लिए कैबिनेट कमेटी ने लिये हैं। बांग्ला सरकार ने फैसला किया है कि देश में जुमे (शुक्रवार) को नमाज के बाद होने वाली तकरीर (धार्मिक भाषण) की निगरानी की जाएगी। Read More
   
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अब कश्मीर पर रुख बदले अमेरिका

-सर्वेश कुमार सिंह-

Publised on : 2011:05:08      Time 09:00

मोस्ट बांटेड आतंकवादी ओसमा बिन लादेन के मारे जाने के बाद दुनिया भर में फैले उसके समर्थकों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। ओसामा और उसके समर्थकों ने जगह-जगह उसके लिए दुआएं की हैं। ये वो लोग हैं जो मानते हैं कि ओसामा जेहाद कर रहा था और वह इस लडाई में शहीद हो गया है। अभी तक समाचार आ रहे थे कि पाकिस्तान के कुछ शहरों में ही ओसामा के मारे जाने पर उसे श्रद्धांजलि दी गई तथा उसके लिए विशेष नमाज अता की गई। किन्तु कल शुक्रवार को भारत में फैले उसके समर्थकों के चेहरों से भी नकाब उतर गया।

 पाकिस्तान बताये, मिलिट्री एरिया में कैसे जगह मिली ओसामा को

मिलिट्री ट्रेनिंग एकेडमी भी है एबटाबाद में, दस दिन पहले सेना चीफ भी यहां आये थे

                                                                  -सर्वेश कुमार सिंह-

Article Publiced on May 02, 2011 23:40 ist

Tags: ABBOTTABAD, Osama Bin Laden,Millitry Academy Abbottabad, ISI link Haquani
आतंक के सरगना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि आतंकवाद और आतंकियों को पनाह देने का काम पाकिस्तान ही करता है। पाकिस्तान लाख बार कहे कि वह आतंकवाद के खिलाफ है और लड़ाई में शामिल है यह सब दिखावा है। आतंकवादियों को शरण देने में न केवल वहां की सरकार शामिल रहती है बल्कि सेना भी पूरा सहयोग करती है। यह बात इस तथ्य से प्रमाणित हो गई है कि ओसामा पाकिस्तान के जिस शहर एबटाबाद A
ABBOTTABAD में रहता था वह मिलिट्री एकेडमी के नजदीक है। यहां भारी तादात में कार्यरत और रिटायर्ड सैन्य अफसर रहते हैं।
एबटाबाद पाकिस्तान का मशहूर पर्यटन स्थल भी है। यहां कुछ दिन पहले ही मिलिट्री एकेडमी में पासिंग आउट परेड की सलामी लेने तथा केडेट को संबोधित करन पाकिस्तान के आर्मी चीफ कियानी आये थे। उन्होने यहां आकर न केवल आतंकवाद के खात्मे की बात कही थी बल्कि यह भी कहा कि पाकिस्तान की फौज आतंकवाद के खिलाफ लड़ रही है। इससे स्पष्ट है कि ओसामा को सुरक्षित रखने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ही इस जगह को चुना होगा क्योंकि यहां सेना का बड़ा कैंप है तथा ओसामा सुरक्षित रह सकता था। वह काफी समय तक यहां सुरक्षित रहा भी।
अमेरिकी सैनिक ओसामा बिन लादेन को तलाशने के लिए काफी समय तक अफगानिस्तान की सीमा पर अभियान चलाते रहे। किन्तु ओसामा तो पाकिस्तान के सबसे सुरक्षित स्थान एबटाबाद में टिका था। यहां से इस्लामाबाद की दूरी महज एक सौ किमी है। यूं भी एबटाबाद कश्मीर में सक्रिय इस्लामी आतंकवादी गुटों की सबसे सुखद और सुरक्षित जगह है। यहां आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैम्प भी संचालित होते हैं। पाकिस्तान में इस जगह को समर रिजार्ट के रूप में प्रसिध्दि मिली हुई है। यह जगह हरी पहाडियों के बीच बसी एक घाटी है।
पाकिस्तान के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र डान ने एक रक्षा विशेषज्ञ के हवाले से कहा है कि हो सकता है कि आईएसआई के ही किसी व्यक्ति ने सीआईए को लादेन के यहां छिपे होने की सूचना दी हो। क्योंकि आईएसआई का हक्कानी नेटवर्क के साथ तो उस समय से संबंध था जब सोवियत संघ के खिलाफ अफगास्तिान में लड़ाई में आईएसआई ने हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल किया था। हालांकि पाकिस्तान के विशेषज्ञ भी इस बात से चिंतित हैं कि लादेन के एबटाबाद में मारे जाने से इस्लामाबाद भी संदेह के घेरे में है कि आखिर राजधानी के इतने निकट रहते हुए भी पाकिस्तान को इसका पता क्यों नहीं था?
पाकिस्तान विशेषज्ञों और वहां के मीडिया की चिंता इस बात को लेकर सबसे यादा है कि भारत ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने का अभियान शुरु कर दिया है। पाकिस्तान के अखबार डान ने विशेष रूप से गृहमंत्री पी.चिदम्बरम् के बयान का उल्लेख किया है। हालांकि पाकिस्तानी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इस आपरेशन को आतंकवाद के खिलाफ बड़ी जीत बता रहे हैं किन्तु कोई भी अभी तक यह बताने को तैयार नहीं है कि आपरेशन में पाकिस्तान की सेना और कामांडो शामिल थे या नहीं।
अब देखना यह है कि भारत इस मामले में पाकिस्तान पर दबाव बनाकर किस प्रकार अपने देश के हमलावरों और आतंकवादियों को सौपने की मुहिम को अंजाम तक पहुचाता है। क्योंकि नौ च्यारह के मास्टर माइंड के मारे जाने के बाद अभी छब्बीस च्यारह के अभियुक्तों को पकड़ा जाना या उनका खात्मा करना शेष है।

May 02, 2011

उत्तर प्रदेश / आजकल

दलों के आपसी टकराव में उलझा किसान आन्दोलन

-सर्वेश कुमार सिंह-

खेती की जमीन बचाने के लिए अलीगढ़ के टप्पल से शुरु हुआ किसान आन्दोलन राजनीतिक दलों के आपसी टकराव में उलझ गया है। दलों के निजी स्वार्थ के चलते इस आन्दोलन के राह से भटक जाने का भी खतरा मंडरा रहा है। दलों ने आन्दोलन को किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करने की बजाय इस पर राजनीति शुरु कर दी है। राजनीतिक दलों की कोशिश यह है कि वे कैसे दूसरे दल को आरोपित करके और उसे किसान विरोधी बताकर स्वयं को किसान हितैषी साबित करें। इस होड़ में प्रदेश की सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी और केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सबसे आगे है। ये दोनों दल अब किसानों की मूल समस्या से ध्यान हटाकर इस बात उलझे हुए हैं कि संसद घेराव और प्रदेश बंद के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह कैसे लगाया जाए।

          ज्ञातव्य है कि प्रदेश में 14 अगस्त को अलीगढ जिले के टप्पल और जिकरपुर में किसानों पर फायरिंग के बाद देश का ध्यान इस ओर गया है। इस इलाके के किसान करीब दो सप्ताह से यमुना एक्सप्रेस-वे (पूर्व में ताज एक्सप्रेस-वे) के लिए अधिग्रहीत की जा रही 2500 हेक्टेयर जमीन को बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। एक्सप्रेस-वे से 1182 गांव प्रभावित होने हैं तथा लगभग 125 गांवों का वजूद ही समाप्त हो जाएगा। एक्सप्रेस-वे की लम्बाई 165 किमी है। किसानों से जोर जबरसदस्ती करार पर हस्ताक्षर कराये जा रहे थे। उनकी जमीन पर बगैर कब्जा लिये ही प्रदेश सरकार और निर्माणकर्ता जे.पी. (जयप्रकाश एसोसिएट) ने फसलें उजाड़ दी थीं। टयूब उखाड़ दिये थे। पेड़ काट डाले थे। किसान विरोध कर रहे थे। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। उस समय इन किसानों की न तो प्रदेश सरकार और न ही उसके अफसरों ने और न ही विपक्ष के किसी दल ने सुधि ली।

          अब जबकि तीन किसानों तथा एक जवान की मौत के बाद यह आन्दोलन उग्र हो गया और यह चुनावी मुद्दा बन गया तो सभी दल इसमें कूद पड़े हैं। आन्दोलन अब राजनीतिक रूप लेने लगा है। इस आन्दोलन में सभी राजनीतिक दल अपना भविष्य देख रहे हैं। कोई भी दल किसान हितैषी साबित होने तथा दूसरे को किसान विरोधी साबित करने में पीछे नहीं रहना चाहता। इसके लिए जो भी संभव है वह हथकण्डा अपनाया जा रहा है। इसी कड़ी में कांग्रेस, बसपा और सपा एक दूसरे को किसान विरोधी साबित कर रहे हैं।

          किसानों पर फायरिंग के बाद भूमि का मुआवजा बढ़ाने तथा किसानो की मागें मानने के लिए केैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने जो प्रस्ताव रखे थे। उन्हें खारिज करने के बाद किसानों ने अपने आन्दोलन की दिशा तय कर दी है। किसानों ने अपना नया नेता चुन कर किसान संघर्ष समिति गठित कर ली। इसके बनैर तले आन्दोलन करने का फैसला किया। किसानों ने दो सूत्री मांगें रखी। एक- प्रदेश की बसपा सरकार को बर्खास्त किया जाए। दूसरी - सवा सौ साल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून को बदला जाए। संघर्ष समिति ने आन्दोलन की रूपरेखा में दो कार्यक्रम तय किये। पहला 25 अगस्त को प्रदेश बंद और दूसरा 26 अगस्त को संसद घेराव। आन्दोलन को सभी दलों काग्रेस,भाजपा,रालोद,सपा और बसपा ने समर्थन दिया।

          किसानों के इस आन्दोलन के कार्यक्रम में ही राजनीतिक दल  उलझ गए। किसानों के आन्दोलन में सभी दलों ने सहभागिता करने का फैसला किया। किन्तु दो मांगें ,  दो दलों लिए परेशानी का सबब बन गईं। प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी ने जहां पासा पलटते हुए किसानों के संसद घेराव को समर्थन देने तथा उसमें शामिल होने की घोषणा कर दी। वहीं कांग्रेस ने संसद घेराव को औचित्यहीन करार दिया है। इसी तरह प्रदेश सरकार ने प्रदेश बंद को औचित्यहीन करार दिया तो कांग्रेस ने प्रदेश बंद को समर्थन प्रदान किया। इसके वरिष्ठ नेताओं ने दादरी में धरना दिया। कांग्रेस के नेताओं ने तो साफ कहा कि आन्दोलन प्रदेश सरकार के खिलाफ होना चाहिए। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव ने कहा है कि संसद घेरने के बजाय किसानों पर गोली चलाने वाली सरकार की बर्खास्तगी के लिए प्रदेश की विधान सभा का घेराव किया जाना चाहिए।

          उधर बसपा की प्रमुख मायावती का कहना है कि केन्द्र सरकार की लापरवाही से किसान आन्दोलित हैं। क्योंकि केन्द्र की सरकारों ने आज तक भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन नहीं किया है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कराने के लिए बसपा किसानों के साथ है और संसद घेराव में साथ देगी। जबकि सपा ने अपने आन्दोलन की रूपरेखा ही बदल दी। सपा ने किसानों की मांगों का तो समर्थन किया किन्तु न तो प्रदेश बंद में शामिल हुई और न ही वह संसद घेराव में हिस्सा लेगी। सपा का कहना है कि वह उस आन्दोलन में शामिल नहीं होगी जिसमें बहुजन समाज पार्टी शामिल हो। सपा ने अलग से एक दिन का धरना प्रदर्शन करने का फैसला किया है।

          किसानों के हितैषी साबित होने के लिए आन्दोलन में भागीदारी कर रहे सभी राजनीतिक दलों ने किसान समस्याओं की उपेक्षा की है। कृषि भूमि अधिग्रहण के लिए लागू जिस कानून को बदलने की आज बात हो रही है। उसे बदलने के लिए कांग्रेस, जनता पार्टी, संयुक्त मोर्चा, भाजपा की के न्द्र में रही सरकारों ने कभी कोशिश ही नहीं की। केन्द्र में सभी दलों की सरकारें रहीं या दल किसी न किसी गठबंधन में शामिल रहे। किसानों की जमीनें उद्योगपतियों को देने में भी इन पार्टियों की सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज बसपा जे.पी.ग्रुप ( जयप्रकाश एसोसिएट) पर मेहरबान है तो कल सपा ने रिलायंस को खुले हाथ से खेती की जमीन बांटी थी। कांग्रेस ने तो देशभर में एसईजेड के नाम पर हजारों एकड़ जमीन उद्योगपतियों को दे दी।

          अलबत्ता अब किसान जागा है तो राजनीतिक दल सही रास्ते पर हैं। इस आन्दोलन की बदौलत ही देश का ध्यान कृषि भूमि के औचित्यहीन अधिग्रहण की ओर गया है। जनता में भी यह चिंता सताने लगी है कि जमीन घटती जाएगी तो खाने को कहां से आएगा? इसके अच्छे परिणाम निकलेंगे। सरकार भूमि अधिग्रहण कानून बदलेगी और किसानों को कुछ राहत मिलेगी। लेकिन इस सबके लिये जरूरी होगा किसान आन्दोलन को गैरराजनीतिक रखना ।   (26 अगस्त, 2010-उप्रससे)।

 

 

खेती की जमीन बचाने को पहला बड़ा किसान आन्दोलन

बड़ों के लाभ के लिए होता है जमीन अधिग्रहण, प्राधिकरणों की भूमिका संदिध

-सर्वेश कुमार सिंह-

  खेती की जमीन बचाने के लिए उत्तर प्रदेश में पहला बड़ा किसान आन्दोलन शुरु हो रहा है। इसका आगाज गत सप्ताह हो गया था। जब अलीगढ़ के टप्पल में किसानों की भूमि अधिग्रहण पर आन्दोलन शुरु हुआ था और पुलिस ने फायरिंग करके तीन किसानों को मौत के  घाट उतार दिया था। अब इस मामले पर समूचा विपक्ष एकजुट है। किसान संघर्ष समिति ने कल (आज) प्रदेश बंद और परसों 26 अगस्त को संसद घेराव का ऐलान किया है। आन्दोलनकारियों को प्रदेश के विपक्षी दलों सपा,भाजपा, कांग्रेस, रालोद के अलावा भारतीय किसान यूनियन ने भी समर्थन दिया है। लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से प्रदेश में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी ने भी संसद घेराव को समर्थन दिया है। पार्टी प्रमुख मायावती ने संसद घेराव में बसपा के शामिल होने की भी घोषणा की है।

            प्रदेश में खेती की जमीन अधिग्रहण से किसान लम्बे अरसे से त्रस्त हैं। औने पौने दामों में किसानों की जमीनें हथियाने के बाद ऊंची कीमतों पर बिल्डरों को बेचने तथा आवासीय कालोनियां बनाकर मुनाफा कमाने की सिलसिला प्रदेश में लगभग तीस साल से चल रहा है।  विकास प्राधिकरणों ने प्रदेश में अधिकाशंत: उपजाऊ कृषि भूमि का ही अधिग्रहण किया है। इसके कारण किसान बर्बाद होते रहे हैं। प्रदेश का एक भी प्राधिकरण ऐसा नहीं है जिसने कभी यह कोशिश की हो कि अनउपजाऊ भूमि को विकसित करके कालोनी बनायी हो। इतना ही नहीं विकास प्राधिकरणों द्वारा अधिग्रहीत की गई कई योजनाएं तो ऐसी हैं जो आज तक विकसित भी नहीं हुईं और किसानों की जमीन भी चली गई। इस जमीन को प्राधिकरणों ने सैकड़ों रूपये वर्ग मीटर में लेकर हजारों रूपये वर्ग मीटर में बेचा और बिल्डरों के काम्पलेक्स बनवा दिये। इससे सवाल उठता है कि आखिर प्राधिकरण किसके लिए हैं। जनता को सस्ते आवास देने के लिए या बिल्डरों का कारोबार कराने के लिए। यदि बिल्डरों को सीधे किसानों से जमीन लेनी पड़ती तो यह उन्हें महंगे दाम पर मिलती। इससे किसानों को अधिक लाभ मिल जाता।

            ऐसी एक योजना मुरादाबाद विकास प्राधिकरण की है। इस प्राधिकरण ने नया मुरादाबाद योजना के तहत लगभग 500 एकड़ जमीन दस साल पहले अधिग्रहीत की। सभी जमीनों पर प्लाट बांट दिये गए। किन्तु कालोनी आज तक विकसित नहीं हुई। कारण लोगों को मकान की उतना आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि कुछ पैसे वालों को इंवेस्टमेंट करना था। अत: उन्होंने प्लाट ख्ररीद कर डाल दिये। इतना ही नहीं एमडीए ने दिल्ली रोड के किनारे की जमीनें दिल्ली-नोएडा के बडे बिल्डरों की बेच दीं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह योजना सिर्फ बड़े बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए ही शुरु की गई थी। एमडीए का कारनामा अकेला उदाहरण नहीं है। ऐसा प्रदेश के और भी कई प्राधिकरणों ने किया है।

            उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण का मुद्दा ऐसा है कि इस पर कोई भी राजनीतिक दल पाक साफ नहीं है। बसपा के खिलाफ तो आन्दोलन ही हो रहा है। इसके पहले सपा की सरकार में वर्ष 2004 में दादरी में किसानों ने जमीन बचाने तथा अधिक मुआवजे के लिए आन्दोलन किया था। उस समय भी यह मामला विधान सभा में गूंजा था तथा हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था। सपा सरकार ने ही 2006 में हाईटेक टाउनशिप की आधार शिला रखी थी। जिसके तहत आज जे.पी.एसोसिएट को टाउनशिप के लिए जमीन दी जा रही है। कांग्रेस ने एसईजेड बनवाये हैं। औद्योगिक घरानों को जमीन देने में कांग्रेस भी आगे रही है।

            प्रदेश बंद के साथ शुरु हो रहे आन्दोलन में किसानों की दो प्रमुख मांगें हैं। उनकी पहली मांग है कि प्रदेश की बसपा सरकार को बर्खास्त किया जाए। दूसरी मांग है भूमि अधिग्रहण के कानून में बदलाव किया जाए। इन दोनों मांगों को विपक्ष का समर्थन है। यह दोनों मांगें केन्द्र सरकार से सम्मबन्धित हैं। सरकार बर्खास्तगी की मांग भी केन्द्र से की जा रही है तथा भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन भी केन्द्र सरकार को करना है। भूमि अधिग्रहण पर प्रदेश में कल से शुरु हो रहा आन्दोलन इतना पेचीदा हो गया है कि यह किसके खिलाफ है? यही स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। क्योंकि जिस सरकार की बर्खास्तगी की मांग की जा रही है। उसकी संचालक पार्टी बसपा ने संसद घेराव को अधिग्रहण कानून बदलने के लिए न केवल समर्थन की घोषणा की है बल्कि वह घेराव में शामिल भी होगी। दूसरी ओर कांग्रेस ने जिसे अधिग्रहण कानून में बदलाव करना है वह प्रदेश में सरकार बर्खास्तगी की मांग का समर्थन कर रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी किसानों के बीच पहुंच कर उनकी मांगों का समर्थन कर चुके हैं।

            हालांकि संसद घेराव में बसपा के समर्थन पर किसान संघर्ष समिति ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन इतना तय है कि किसानों के बीच बसपा की छवि खराब हो चुकी है। इसकी भरपाई बसपा के लिए मुश्किल होगी। उधर सपा पर भी जनता यादा विश्वास करने को तैयार नहीं है। रालोद और भाजपा ने इस आन्दोलन में जरूर किसानों सहानुभूति से बढ़त ले रखी है। (उप्रससे) 24 aug 10

 

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कारगिल विजय और हमारा संकल्प

-सर्वेश कुमार सिंह-

कारगिल में विजय Kargil Vijai प्राप्त किये हुए आज 26 जुलाई 2010 को हमें ठीक 11 साल बीत गए। हमने आज के दिन कारगिल में पूर्ण विजय की घोषणा के बाद विजय दिवस मनाने का फैसला किया था। साथ ही यह संकल्प भी लिया था कि अब दुश्मन को ऐसा मौका कभी नहीं देंगे जो वह हमारी पीठ में फिर से छुरा भोंक सके। क्योकि कारगिल का यह युद्ध ही छल और फरेब की परिणति था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के अपने समकक्ष नवाज शरीफ के साथ शांति वार्ता चला रहे थे, और उधर सीमा पार से कारगिल में चुपचाप घुसपैठ हो रही थी। दुनिया ने देखा कि वार्ता की मेज और युद्ध का सामान एक साथ सजाया जा रहा था।

अन्ततः कारगिल में 15 जुलाई 1999 के बाद घुसपैठ की पुख्ता सूचना और प्रमाण के बाद हमारी सेनाओं ने एक ऐसा मोर्चा संभाल लिया, जो दुनिया का सबसे कठिन रणक्षेत्र था। यह दुनिया का पहला युद्ध था जोकि 18000 फीट की ऊंची बर्फीली पहाडियों पर लड़ा गया। इतना ही नहीं इस युद्ध में हमारे सैनिक शीतकालीन साजोसामान से भी पूरी तरह लैस नहीं थे। हमारे पास तोप खोजी राडारों की कमी थी। जिसकी वजह से शहीदों की संख्या बढी। शहीद हुए हमारे सैनिकों में से 80 प्रतिशत दुश्मन की तोपों के गोलों के शिकार हुए थे। दुश्मन पहले से ऊंचाई पर मोर्चा संभाले था। उसने पक्के बंकर बना रखे थे। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी जीत भारतीय सेनाओं की हुई। कुल 74 दिन के युद्ध में हमने दुनिया को दिखा दिया कि भारत की राष्ट्रभक्ति और अदम्य साहस का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है।

कारगिल में हमें विजय मिली, किन्तु यह कितनी बड़े बलिदान के बाद। हमारे 407 सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणों का उत्सर्ग किया। लगभग छह सौ जवान घायल हुए। देश ने एक हजार करोड़ रूपया व्यय किया। हमारा देश सीमाओं की रक्षा के लिए एकजुट दिखायी दिया। हमने अपने नेतृत्व पर भरोसा किया कि वह अब पाकिस्तान के ऐसे किसी झांसे में नहीं आएगा। लेकिन हमने देखा कि शत्रु ने कारगिल की पराजय से कोई सबक नहीं लिया और उसने मुम्बई में देश का सबसे बड़ा आतंकी हमला किया। इसके प्रत्यक्ष प्रमाण मिले, सभी प्रमाणों की पुष्टि हो गई है।

लेकिन दुर्भाग्य कि हमने एक बार फिर अपने संकल्प को भुला दिया। हम फिर से उसी पाकिस्तान के साथ वार्ता की मेज पर पहुंच गए। जो भारत में खुले आतंक का खेल खेलने का दोषी है जो कारगिल का अपराधी है। हमने अपने जवानों की शहादत को भी भुला दिया। और एक बार फिर शांति वार्ताओं का दौर शुरु कर दिया। परिणाम वही जो हमेशा होता है। हमारे विदेश मंत्री को 15 जुलाई की विफल वार्ता के बाद स्वदेश लौटने से पहले पाक विदेश मंत्री ने अपमानित कर दिया। एक महीने पहले ही हमारे गृह मंत्री भी पाकिस्तान का दौरा कर आये थे। लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ था।

आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान हमसे वार्ता के लिए शर्तं लगा रहा है। उसने फिर से कश्मीर का राग अलापना शुरु कर दिया है। यह सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि हमने भुला दिया कारगिल का सबक और भूल गए अपना संकल्प। (उप्रससे) 25 july 10

 
 
   
 
 
                               
 
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