कानपुर में पुलिस मुठभेड़ में विकास दुबे के मारे जाने के बाद बीस साल के
आतंक का अत हो गया है। भय, आतंक और अत्याचार से जनमानस को त्रस्त करने वाले दुर्दात अपराधी के अंत से कानपुर मण्डल की जनता को राहत मिलेगी। विकास दुबे ऐसा नाम था जिसके भय और आतंक के कारण उसके गांव बिकरू और आसपास के इलाके में पुलिस का प्रभाव निष्प्रभावी था। उसके थाने चौबेपुर से लेकर पूरे बिल्हौर
सर्किल की पुलिस विकास दुबे के आगे नतमस्तक रहती थी। यही कारण था कि कोई भी उसके उत्पीड़न या आतंक की शिकायत थाने में करता ही नहीं था। यदि कोई शिकायत करता भी था तो पुलिस वाले पहले विकास दुबे से ही पूछते कि क्या करना है। इस पर विकास संबंधित शिकायत कर्ता को पुलिस के साथ अपने आवास पर लगने वाली
पंचायत में ही बुला लेता था, धमकाता था कि शिकायत वापस लो। नहीं मानने पर उसके गुर्गे मारते पीटते थे। जबरन शिकायतें वापस करायी जाती थीं। थाने की हर छोटी बड़ी सूचना उसके पास पहुंचती थी। एक तरह से पूरा थाना ही विकास दुबे के इशारे पर चलता था। सब विकास दुबे के इंफार्मर थे। यही वजह है कि जब तीन
जुलाई की तड़के तीन थानों की पुलिस लेकर सीओ बिल्हौर देवेन्द्र कुमार मिश्रा ने विकास के आवास पर दबिश का फैसला किया तो उसे पहले ही चौबेपुर के थानेदारों ने सूचित कर दिया कि सतर्क हो जाओ, दबिश होने वाली है। एक दो नहीं तीन थानों की पुलिस आएगी। इसके बाद ही उसने अपने गैग को बुलाकर दिल दहला देने
वाली घटना को अजाम दे दिया। जिसमें सीओ देवेन्द्र मिश्रा, दो थानेदार समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए। विकास दुबे दुर्दांत था। उसने जिस तरह से सीओ देवेन्द्र मिश्रा को मरवाया, वह आतंक की पराकाष्ठा ही कही जाएगी। सीओ का पैर कुल्हाड़ी के काटा गया। चेहरे को क्षतिविक्षत किया गया। दरोगा को घायल होने
के बाद भी उसे पांच गोलिया मारी गईं। उसने इन पुलिसकर्मियों के शवों को भी जलाने की योजना बनाई थी, किन्तु अतिरिक्त पुलिस आ जाने के कारण उसे भागना पड़ा। विकास दुबे ने 1999 से आतंक और अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। उसने सबसे पहले गाव के ही एक दलित की हत्या कर दी थी। इसके बाद इण्टर कालेज की
जमीन कब्जाने के लिए शिवली में उस प्रधानाचार्य की हत्या कर दी जिसने उसे पढ़ाया था। इससे साबित होता है कि वह निर्मम था, मानवीयता से कोसों दूर था। विकास कितना दुस्साहसी था इसका अदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2001 में शिवली थाने के भीतर प्रभारी निरीक्षक के कक्ष में ही उसने राज्यमंत्री
संतोष शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी। पूरे थाने के सामने मंत्री की हत्या करके वह आराम से फरार हो गया था। उसके आतंक के कारण इस मामले में किसी ने गवाही नहीं दी। कोई भी पुलिसकर्मी भय के कारण गवाही देने नहीं गया जिससे वह बरी हो गया। वह अवैध कब्जे, जमीनों के धंधे में भी संलिप्त था। ऐसे
अपराधी का अंत समाज में शांति और सद्भाव पैदा करेगा। विकास दुबे की मुठभेड़ पर कुछ राजनीतिक दल विशेष रूप से विपक्षी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी द्वारा सवाल उठाये जा रहे हैं। जोकि अनुचित और निराधार हैं। विकास दुबे ने अपनी पत्नी को समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडाया था। उसे पार्टी की सदस्यता
दिलायी थी। इसके बाद भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मुठभेड़ पर सवाल उठाये हैं। वह स्वयं भी बहुजन समाज पार्टी से जुड़ा रहा था। मुठभेड़ में चार पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। कार पलटने के बाद उसने पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की । इस बात पर संदेह करने का कोई प्रश्न नहीं है क्योंकि वह दुस्साहसी था।
उसने गुरुवार को महाकाल मन्दिर में भी एक सुरक्षाकर्मी के साथ हाथापाई की थी। उसने जब थाने में मंत्री को मारा, अपने गांव में सीओ को निर्ममता से मारा, अपने गुरु को दिन दहाड़े मारा तो क्या किसी आदर्श और सिद्धान्त का उसने पालन किया था। इसलिए उसके साथ किसी भी तरह की सहानुभूति प्रकट करने का कोई
कारण नहीं है। जो लोग कानून से उसे सजा दिलाने की बात कर रहे हैं, वे भी अच्छी तरह जानते हैं कि उसके खिलाफ कोई भी गवाही देने नहीं जाता और वह फिर बच जाता। और आठ पुलिसकर्मियों की शहादत व्यर्थ ही चली जाती। इसलिए विकास दुबे जैसे किसी भी आतंक का अंत ही उचित है, वह चाहे किसी भी जाति या धर्म को हो।
( उप्रससे ) |
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