श्रीमती इन्दिरा गांधी की आज 19 नवम्बर
2017 को सौवीं जयंती है। उनके व्यक्तित्व
और कृतित्व का स्मरण किया जाना इस मौके पर
समीचीन होगा। इस बात से इनकार नहीं किया
जा सकता कि एक प्रधानमंत्री के रूप में
उन्होंने ऩ केवल इतिहास रचा, बल्कि भारतीय
उपमहाद्वीप का भूगोल भी बदल दिया। श्रीमती
गांधी ने अपने 16 वर्ष के प्रधानमंत्री के
रूप में कार्यकाल में चार प्रमुख फैसले
किये। इनमें तीन को विवादास्पद या
अनावश्यक माना जाता है। उनके केवल एक
फैसले को इतिहास ने उचित ठहराया है।
श्रीमती ने गांधी ने 1966 में सत्ता
संभालते ही कांग्रेस के विभाजन की नींव
रखी और 1969 में कांग्रेस को नई और पुरानी
कांग्रेस में विभाजित कर दिया। इसके बाद
उन्होंने सबसे ज्यादा विवादास्पद और
आलोच्य निर्णय लिया जब 26 जून 1975 को,
देश में
“
आपातकाल
“
लगा दिया और आन्दोलनकारी विपक्षी नेताओं
को मीसा और डीआईआर जैसे कड़े कानूनों में
जेल में डाल दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ पर प्रतिबंध लगाया। इसके बाद कई हजार
संघ और जनसंघ के कार्यकर्ता जेल गए। इस
फैसले ने उन्हें तानाशाह की उपाधि प्रदान
कर दी। लेकिन उन्हें इसकी कीमत चुकानी
पड़ी, 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को
पराजय का सामना करना पड़ा और उन्हें जनता
पार्टी को सत्ता सौंपनी पड़ी। लेकिन, जनता
परिवार में कई दलों के घटक जब आपस में
टकराने लगे तो इसके टूटने पर 1980 में हुए
आम चुनाव में श्रीमती गांधी ने
अप्रत्याशित रूप से सत्ता में वापसी कर
ली। इस चुनाव में उन्होंने 544 में से 351
लोकसभा सीटें जीतीं । इस वापसी के बाद वह
पहले से और ज्यादा कठोर शासक बनकर उभरीं।
उन्होंने पंजाब में चल रहे अलगाववादी
आन्दोलन और उग्रवादियों की गतिविधियों से
निपटने के लिए अमृतसर स्थित स्वर्ण मन्दिर
में 5 जून 1984 को सेना भेजकर
“
आपरेशन ब्लू स्टार
”
करा दिया। इस आपरेशन में आतंकवादियों का
नेता संत जनरैल सिंह भिंडरावाला और उसका
साथी लेफ्टिनेंट जनरल शुबेग सिंह मारा
गया। किन्तु पवित्र अकाल तख्त परिसर में
सेना के प्रवेश से सिखों की भावनाएं आहत
हो गईं। आपरेशन में जोकि एक से आठ जून तक
चला था, कुल 492 लोगों की जान गईं। इनमें
चार सैन्य अफसरों समेत 83 जवान भी शहीद
हुए। आपरेशन के दौरान 35 महिलाएं और 5
बच्चे भी मारे गए थे। इस दौरान 334 लोग
घायल हुए। जबकि सेना के सामने 200
उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया था। इस
फैसले के बाद सिखों में उपजे आक्रोश से
सिख रेजीमेंट रामगढ़ (बिहार) में विद्रोह
हो गया। सिख सैनिकों ने छावनी पर कब्जा कर
लिया और हथियारों के साथ वाहनों से पंजाब
की ओर कूच कर गए। इन सैनिकों की पंजाब की
ओर बढ़ने की सूचना पर पूरे देश में हड़कंप
मच गया था। रास्ते में कई जगह सेना और
पुलिस ने इन्हें रोकने की कोशिश की। लेकिन,
ये विद्रोही सैनिक उत्तर प्रदेश तक पहुंच
गए
। यहां दिल्ली और हरियाणा की सीमा से पहले
ही इन्हें काबू कर लिया गया था। इससे एक
बड़ा सैन्य संघर्ष टल गया। श्रीमती गांधी
का आपरेशन ब्लू स्टार का फैसला
“
ऐतिहासिक भूल
”
थी। इसका मूल्य उन्हें अपनी जान देकर
चुकाना पड़ा। उनके सिख अंगरक्षकों सतवंत
सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को
उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या के बाद
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने देशभर में सिखों
पर हमले किये। एक से चार नवम्बर 1984 तक
हुई इस सिख विरोधी हिंसा में 2733 लोगों
की जान गई। हालांकि गैर आधिकारिक संख्या
3870 मानी जाती है। इन्दिरा गांधी ने जहां
तीन प्रमुख विवादास्पद फैसले लेकर अपनी
छवि पर बट्टा लगाया, वहीं उऩ्होंने 1971
में भारत-पाक युद्ध के बाद बांग्लादेश के
उदय में अहम भूमिका निभाकर दुनिया में नाम
कमाया। पाकिस्तान के विभाजन के बाद पूर्वी
पाकिस्तान के बांग्लादेश में बदल जाने से
दुनिया का नक्शा बदल गया। दिसम्बर 1971
में 14 दिन के इस युद्ध में विजय ने जहां
भारतीय सेना की श्रेष्ठता सिद्ध की वहीं,
श्रीमती गांधी को तत्कालीन नेताओं ने
“
दुर्गा
”
की उपाधि दी। इस युद्ध में पाकिस्तान के
80 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।
यह दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य
समर्पण है। एक प्रधानमंत्री के रूप में
उनके फैसले गलत थे या सही यह इतिहास में
विवेचना और समालोचना का विषय हो सकता है,
किन्तु इतना तय है कि उऩ्हें त्वरित और
कठोर फैसले लेने वाली नेता के रूप में याद
किया जाएगा।
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