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सत्य की विजय

Tags: Supreem Court Of India, Ayodhya Verdict, Ram Mandir Vs Babri Masjid case , Publised on : 09.11.2019/ आज का सम्पादकीय/ सर्वेश कुमार सिंह,

आज गुरु नानक देव जी 550 वीं जयंती है।  नौ नवम्बर ऐतिहासिक तिथि है।  इस तारीख के इतिहास में एक और योगदान जुड़ गया है, यह है सत्य की विजय । सर्वोच्च न्यायालय ने आज अटल सत्य को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से स्वीकृति प्रदान कर दी। यह अटल सत्य है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ। उनका जन्म जिस स्थान पर हुआ वहां रामलला का मन्दिर था। इस मन्दिर को 1528 में तोड़कर एक मस्जिद बनाई गई थी, जिसको बाबर के नाम से जाना गया। इस सत्य को मनवाने और स्थापित कराने के लिए ही हिन्दू समाज 491 वर्ष से संघर्षरत था। इसके लिए 76 युद्ध लड़े गए। लगभग 3 लाख 50 वीरों का बलिदान हुआ। अंग्रजों के शासन में न्यायिक प्रक्रिया से प्रयास शुरु हुए। महन्त रघुवरदास ने पहला मुकदमा 1558 में दायर किया। न्यायिक संघर्ष को जारी रखते हुए  निर्मोही अखाड़ा ने 1950 में एक और मुकदमा फैजाबाद की सिविल अदालत में किया। इसके विपक्ष में सुन्नी वक्फ बोर्ड आया और उसने भी 1961 में मुकदमा किया। तीसरा मुकदमा सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनन्दन अग्रवाल ने 1989 में किया। इसमें भगवान राम को स्वयं न्यायिक व्यक्ति मानते हुए रामलला विराजमान की ओर से मुकदमा किया गया। इसी मुकदमों को अन्ततः विजय मिली है। स्वतंत्रता के बाद सत्य को मनमाने का यह संघर्ष लोकतांत्रिक ढंग से शुरु हुआ। अर्र्थात राम मन्दिर के लिए आन्दोलन शुरु हुआ। हिन्दू समाज को जाग्रत करके लोकतांत्रिक ढंग से न्यायिक और लोकतांत्रिक आन्दोलन दोनों प्रयास एक साथ चले। साल 1983 के मार्च में हुए मुजफ्फरनगर के हिन्दू सम्मेलन में मुरादाबाद के कांग्रेस नेता दाऊदयाल खन्ना ने श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या, श्रीकृष्णजन्मभूमि मथुरा और बाबा विश्वानाथ मन्दिर काशी तीनों स्थानों की मुक्ति के लिए संघर्ष करने का प्रस्ताव रखा । यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हुआ। इस प्रस्ताव के बाद ही 36 साल तक विश्व हिन्दू परिषद् ने श्री रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति और श्री रामजन्मभूमि न्यास के माध्यम से सत्य के विजय को रथ संचालित किया। जहां मस्जिद बनाई गई वह स्थान ही रामजन्म स्थान है, इस अटल सत्य को मनवाने में विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए। अदालती लड़ाई लड़ते हुए आज जिस सत्य की स्वीकारोक्ति सर्वोच्च न्यायालय ने कर ली है। इसे कालांतर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने भी 30 सितम्बर 2010 को लगभग इसी रूप में स्वीकार किया था। लखनऊ पीठ का निष्कर्ष भी यही था, जो सर्वोच्च न्यायालय का है। लखनऊ पीठ ने भी कहा था कि जिस स्थान पर मस्जिद बनाई गई वही जन्म स्थान है। गर्भ गृह की भूमि ही राम जी की जन्मभूमि है। इसलिए यह स्थान हिन्दू पक्ष को मिलना चाहिए। सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज भी किया । इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस धर्मवीर शर्मा जोकि इस बेंच के एक सदस्य थे, उन्होंने भी यह फैसला लिखा था जोकि आज सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाया है। दोनों अदालतों के फैसले में अन्तर केवल इतना है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहकर कि कुछ समय तक यहां मस्जिद रही थी इसलिए कुछ भूमि मुस्लिम पक्ष को दे दी जाए। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय में स्पष्टता लाते हुए सम्पूर्ण विवादित भूमि रामलला विराजमान के पक्ष में दे दी। इस निर्णय की अहम बात यह है कि न्यायालय के पांच जजों की पीठ ने जिसकी अध्यक्षता स्वयं मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे थे, सर्वसम्मत फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में जहां रामलला विराजमान को न्यायिक अस्तित्व के रूप में स्वीकार किया है वहीं उन्हें विवादित भूमि का स्वामित्व सौंपा है। साथ ही खास बात यह भी है कि सु्नी वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज होने के बाद भी मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन सरकार की ओर से देने का आदेश दिया। अखाड़ा परिषद् के दावे को भी पूजा के अधिकार की मांग को खारिज किया, लेकिन उन्हें ट्रस्ट में जगह देने का आदेश दिया। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने उन दोनों पक्षों का भी ध्यान रखा, जिनकी याचिकाएं खारिज कीं।  यह भी महत्वपूर्ण है। ( उप्रससे )

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