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संसद
में गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह कथन कि
‘हम अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते,’ एकदम सही
है। लेकिन, जब किसी पड़ोसी की हरकतें हद
दर्जे को पार कर जाएं ,तो पड़ोसी को सबक
जरूर सिखाया जा सकता है। और, अब वह समय आ
गया है, जब हमें इस पड़ोसी को एकबार फिर
सबक सिखाने की जरूरत है। यह पडोसी 1947,
1965, 1971 और 1999 के चार युद्धों में
करारी हार का सबक भूल चुका है। यह ऐसा
पड़ोसी है जो, 70 साल से सुधरने का नाम नहीं
ले रहा है। दुनिया यह देख चुकी है कि
पाकिस्तान पर ‘निंदा और नसीहतें’ कोई असर
नहीं करतीं हैं। आजादी के तत्काल बाद इस
पडोसी ने अपनी मानसिकता जाहिर कर दी थी।
इसलिए हमारे राजनेताओं को किसी ‘गलतफहमी’
का शिकार नहीं होना चाहिए कि ‘संवाद’ से
इसे सुधारा जा सकता है। दक्षेस देशों के
गृहमंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने गए
राजनाथ सिंह के साथ पाकिस्तान सरकार ने
जिस तरह ‘अशिष्टता’ का परिचय दिया, उस पर
लोकसभा और राज्यसभा
दोनों सदनों ने एकमत से पाकिस्तान की निंदा
की और सुधरने की नसीहत दी। पक्ष और विपक्ष
इस बात पर एकराय था कि पाकिस्तान ने
‘राजनयिक शिष्टाचार’ का उल्लंघन करके ‘गंभीर
अपराध’ किया है। जब, दोनों सदन और
पक्ष-विपक्ष इस मुद्दे पर एकमत है, तो फिर
पाकिस्तान को ‘निंदा और नसीहत की घुट्टी’
क्यों पिलाई जा रही है। इस समय पूरी दुनिया
के सामने पाकिस्तान ‘आतंकवाद के जनक और
समर्थक’ देश के रूप में पहचान बना चुका
है, तो फिर उसे सबक सिखाने में सरकार को
हिचकिटाहट क्यों हो रही है?
दक्षेस देशों के गृहमंत्रियों का सम्मेलन
ऐसे समय हुआ, जब कश्मीर में पाकिस्तान
समर्थित अलगाववादियों की हरकतें चरम पर
हैं। सीमा से लगातार घुसपैठ की कोशिश हो
रही है। जम्मू और कश्मीर में शान्ति बहाली
के लिए तैनात सुरक्षा बलों और अर्द्ध
सैन्य बलों पर हमले हो रहे हैं। आतंकवादी
और हिजबुल मुजाहिदीन के एरिया कमाण्डर
बुरहान बानी को पाकिस्तान ‘शहीद’ का दर्जा
दे रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ का खुद यह कहना, कि ‘बुरहान बानी
कश्मीर का आतंकवादी नहीं बल्कि एक शहीद
था,’ हद दर्जे का ‘दुस्साहस’ है। इसे
नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। हमें
पाकिस्तान को सबक सिखाने के विकल्पों पर
विचार करना चाहिए। जहां तक दक्षेस देशों
की एकता और
भारतीय उपमहाद्वीप में शांति का प्रश्न
है, वह केवल •भारत
की जिम्मेदारी नहीं है।
भारत सरकार को संसद के दोनों सदनों में
प्रस्ताव पारित करके ‘पाक अधिकृत कश्मीर’
को वापस लेने के लिए एक ‘संकल्प’ प्रस्तुत
किया जाना चाहिए। इस संकल्प को पूरा करने
के लिए हमें हर संभव
उपाय करने की जरूरत है। यदि हम सिर्फ बचाव
की रणनीति अपनाते रहेंगे तो पाकिस्तान की
‘धृष्टता’ बढ़ती ही जाएगी। (उप्रससे)
Sarvesh Kumar Singh
Freelance
Journalist
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