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Home>News>Editorial सम्पादकीय
भारतीय भाषाओं का सम्मान
सर्वेश कुमार सिंह-Sarvesh Kumar Singh
Publised on : 20.02.2017     Time 11:51            

Tags: High Court, Hindi, Other Indian languases

हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए संसद की विधि एवं कार्मिक विभाग की स्थायी संसदीय समिति बधाई की पात्र है। इस समिति ने अपनी हाल ही में की गई संस्तुति में केन्द्र सरकार से अपील की है कि सभी उच्च न्यायालयों में हिन्दी और उक्त क्षेत्रों की स्थानीय भाषा का उपयोग शुरु किया जाए। इसके लिए केन्द्र सरकार को न्यायपालिका के साथ किसी भी प्रकार के विचार विमर्श की भी जरूरत नहीं है। सरकार को संविधान में पर्याप्त अधिकार प्राप्त हैं। समिति ने कहा है कि यदि राज्य सरकार मांग करती है कि उनके उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के साथ स्थानीय भाषा का उपयोग शुरु किया जाए तो केन्द्र सरकार उक्त मांग को स्वीकार करे। अभी देश के उच्चतम न्यायालय समेत 24 उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा में ही कार्यवाही होती है। केन्द्र सरकार को इस सम्बन्ध में कलकत्ता, मद्रास, गुजरात, छत्तीसगढ़ और कनार्टक के उच्चनायालयों में बंगाली, तमिल, गुजराती, कन्नड़ और हिन्दी के उपयोग के सम्बन्ध मे प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। केन्द्र सरकार ने इन प्रस्तावों को उच्चतम न्यायालय को विचार के लिए भेजा था किन्तु उच्चतम न्यायालय ने 11 अक्टूबर 2012 को पूर्ण से फैसला करके इन सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया। संसदीय समिति ने कहा है कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 348 में पूर्ण अधिकार दिया गया है। इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालयों में अनुसूचित भाषा का उपयोग किया जा सकता है। हां इसके लिए यह आवश्यक है कि राज्य सरकार ऐसा करने के लिए मांग करे। समिति ने इस सम्बन्ध में दृढ़ता और स्पष्टता के साथ विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार 21 मई 1965 के कैबिनेट के उस फैसले पर पुनर्विचार करे जिसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालयों में भाषा के उपयोग पर बदलाव के लिए न्यायालय से विचार विमर्श जरूरी है। हालांकि जुलाई 2016 के कैबिनेट मसौदा प्रारूप में इस बाद का जिक्र किया गया था कि इस प्रस्ताव को या तो पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाए या खारिज कर दिया जाए।

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