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BJP, SP, BSP, CONGRESS, AIMIM, CPI,CPM
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उत्तर प्रदेश में 11 विधान सभा क्षेत्रों
में हुए उप चुनाव ने स्पष्ट संदेश दे दिया
है कि राज्य में समाजवादी पार्टी ही मुख्य
विपक्षी दल है। बीते लोकसभा चुनाव में सपा
और बसपा के बीच हुए गठबंधन की विफलता के
बाद मायवती ने एक तरफा फैसला लेते हुए एकला
चलों की नीति अपना ली थी। लेकिन, इससे
उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है। बल्कि इस
चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि सपा ही
भाजपा के सामने मुख्य मुकाबले में रहने
वाली है। इस चुनाव में यदि सबसे अधिक
नुकसान किसी दल को हुआ है तो वह बसपा ही
है। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि उसे
अपनी परंपरागत अम्बेडकर जिले की जलालपुर
सीट भी गंवानी पड़ गई है। माना जाता है कि
अम्बेडकर नगर जिला बसपा का गढ़ है। यहां
सपा ने जीत दर्ज की है। समाजवादी पार्टी
ने उप चुनाव में प्रदेश की 10 विधान सभा
सीटों पर चुनाव लड़ा। एक स्थान पर उसने
लोकदल के उम्मीदवार का समर्थन किया। सपा
ने सभी सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर दी।
सपा ने जहां 3 सीटें जीतीं, वहीं 5 पर
दूसरे स्थान पर और 2 पर तीसरे स्थान पर रही।
उसे कुल पड़े मतों में 22.61 प्रतिशत मत
मिले। जबकि लोकसभा चुनाव में 10 सीटें
जीतने वाली बसपा का उप चुनाव में खाता भी
नहीं खुल सका। इतना ही नहीं बसपा केवल 2
सीटों पर मुख्य मुकाबले में थी, जबकि 3 पर
तीसरे स्थान पर और 6 सीटों पर पांचवे
स्थान पर रही। कई स्थानों पर बसपा छोटे दलों
से भी पिछड़ गई। उसे मात्र 17.20 प्रतिशत
मत मिले। उप चुनाव का एक संदेश यह भी है
कि राष्ट्रीय दल कांग्रेस के लिए अभी
उत्तर प्रदेश में कोई संभावना नहीं है।
कांग्रेस सिर्फ इस बात से खुश हो सकती है
कि उसकी पार्टी 11 सीटों में से मात्र दो
पर मुख्य मुकाबले में थी और दूसरे स्थान
पर रही। जबकि, 5 पर तीसरे और 2 पर चौथे
स्थान पर रही। यह पार्टी घोसी में पांचवे
और बलहा में आठवें स्थान रही। कुल वोटों
में इसकी हिस्सेदारी 11.49 प्रतिशत रही।
ये परिणाम यह भी संकेत कर रहे हैं कि बेशक
मुस्लिम मतों पर सपा का एकाधिकार बरकरार
है, किन्तु वह कुछ संख्या में कट्टर
विचारधारा वाली असद्दुीन ओवेसी की पार्टी
एआईएमआईएम की ओर खिसक रहा है। इस पार्टी
ने उप चुनाव में जहां 1.04 प्रतिशत मत पाया
है, वहीं यह प्रतापगढ़ में कांग्रेस और
बसपा से अधिक मत प्राप्त करके तीसरे स्थान
पर रही। इससे साफ संकेत मिलते हैं आने वाले
चुनावों में मुसलमानों सपा के बाद दूसरी
पसंद की पार्टी एआईएमआईएम हो सकती है।
राज्य में कभी अच्छा प्रभाव रखनी वाली
कम्युनिस्ट पार्र्टियां अपनी स्थिति को नहीं
सुधार सकीं। दोनों पार्टियां सीपीएम और
सीपीआई आधा प्रतिशत भी वोट नहीं पा सकीं।
सत्तारूढ़ भाजपा ने हालांकि 7 सीटें जीत
कर अपनी मजबूत पकड़ साबित कर दी है। लेकिन,
इस दल को आने वाले समय में अपने जनाधार को
बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
क्योंकि, प्रदेश में उसे विपक्षीमतों के
बिखऱाव का बड़ा फायदा मिला है। यदि सपा और
बसपा ने लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी
मिलकर चुनाव लड़ा होता तो भाजपा को मतों
के गणित के हिसाब से 4 सीटों का नुकसान
होता और उसे मात्र तीन सीटें ही मिलतीं।
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