टकटकी लगाए देख रहे हिन्दू समाज की आस पांच अगस्त को पूरी हो गई। अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12 बजकर 44 मिनट पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी
ने गर्भगृह के निर्माण के लिए भूमि पूजन कर मन्दिर की नींव की शिला रख दी। यह क्षण समस्त भारतवासियों के लिए अत्यन्त भावुक था, आह्लादित करने वाला था, रोमांचक था, अकल्पनीय था। विशेष रूप से उस पीढ़ी के लिए सौभाग्यदायक था, जिसने अपनी आंखों से उस दृश्य को साक्षात देखा जिसके साकार होने के लिए लाखों
हिन्दुओं ने बलिदान किया था। बाबर के सेनापति मीर बाकी के 1528 में मन्दिर के ध्वंस के बाद से 2019 तक जब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया तब तक 76 संघर्ष हुए। यह संघर्ष 77 वां था, जिसकी परिणति के बाद समाज अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को उनके मन्दिर में स्थापित करने के लिए सफलता
की ओर अग्रसर हो सका। मन्दिर की आधारशिला रखने के मौके पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने लगभग 175 अतिथियों को आमंत्रित किया था। कोरोना जनित रोग ‘कोविड-19’ के प्रकोप के चलते सतर्कता बरती गई तथा संघ्या को सीमित रखने के प्रयास हुआ। अतिथियों की संख्या को सीमित किया गया। ट्रस्ट ने ‘सबके
हैं राम’ इस बात का विशेष ध्यान रखा। यह प्रयार किया कि देश की सभी आध्यात्मिक और संत परंपराओं तथा भारत भूमि पर जन्मे मत-सम्प्रदायों के प्रमुखों की भागीदारी राम मन्दिर की नींव रखने के मौके पर सुनिश्चित हो। इसी निमित्त देश की 36 आध्यात्मिक और संत परंपराओं के 140 प्रतिनिधियों को भूमि पूजन
समारोह में आमंत्रित कर राष्ट्रीय एकता और भारत की सर्वधर्म सम्भाव की परंपरा का परिचय दिया। साथ ही यह संदेश भी दिया कि हिन्दुत्व एक विशाल और विस्तृत वटवृक्ष के समान है जिसके नीचे सभी को छांव प्राप्त होती है। राम सबके हैं और सबमें राम यह संदेश देने में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्र्स्ट
सफल रहा। इस दिन को देखने के लिए राम मन्दिर का निर्णायक संघर्ष यूं तो 6-7 अप्रैल 1984 से नई दिल्ली के विज्ञान भवन की ‘धर्म संसद’ से आरंभ हुआ किन्तु इसकी चर्चा और अनौपचारिक आन्दोलन की शुरुआत काशीपुर और मुजफ्फरनगर के हिन्दू सम्मेलनों के साथ ही हो गई थी,जहां तीनों धर्मस्थलों को मुक्त कराने की
मांग उठी तथा प्रस्ताव पारित हुए। भूमि पूजन और कार्यारंभ कार्यक्रम की विशेषता यह भी रही कि यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने आन्दोलन के पुरोधाओं प्रमुख रूप से ब्रह्मलीन परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज तथा हिन्दू हृदय सम्राट स्व. अशोक सिंहल जी का स्मरण किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आन्दोलन के बलिदानियों का पुण्य स्मरण किया। उन्होंने श्रीराम मन्दिर के लिए हुए आन्दोलन की तुलना स्वतंत्रता संग्राम से की। इस अवसर पर भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा राम मन्दिर पर डाक टिकट जारी करना भी सुखद और समीचीन रहा। (उप्रससे) |
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