बहुजन
समाज पार्टी की नेता सुश्री मायावती के
सम्मान का मुद्दा अब ' मायावती का सम्मान
बनाम अन्य महिलाओं के सम्मान ' में तब्दील
हो गया है। क्योंकि, मायावती पर आपत्तिजनक
टिप्पड़ी के एवज में उनके समर्थकों ने
आरोपी दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं
का अपमान करना शुरु कर दिया है। सार्वजनिक
मंच से उनके परिवार की महिलाओं, बहन-बेटी
के लिए अपशब्द बोले गए। यह उतना ही
निन्दनीय है जितनी मायवती पर की गई टिप्पडी।
समाज और राज्य व्यवस्था में ' अपराध के
बदले अपराध ' की छूट नहीं है।
समाज
में नारी का सम्मान सर्वोपरि
बसता नेता सुश्री मायावती के सम्मान की
खातिर भारतीय जनता पार्टी ने अपने नेता और
आप्तिजनक टिप्पडी के आरोपी दयाशंकर सिंह
को कठोरतम राजनीतिक सजा दे दी। राजनैतिक
व्यवस्था और लोकतांत्रिक दल में यह अधिकतम
सजा है, कि किसी नेता को उसके सभी दायित्वों
से मुक्त कर दिया जाए और दल से भी छह साल
के लिए निष्कासित कर दिया जाए। यह
लोकतांत्रिक व्यवस्था का दलीय शिष्टाचार
और राजनैतिक समझदारी का ही परिणाम था कि
भाजपा ने बगैर किसी मांग के ही अपने नेता
को सजा दी। महिला किसी भी धर्म, जाति या
समाज से हो अतिशय सम्मान की पात्र है, वह
मां, बहन और बेटी है। महिला दलित है या
सवर्ण यह मुद्दा है ही नहीं। सभ्य और
संस्कारित समाज में नारी का स्थान सर्वोपरि
है।
क्या
मायावती बसपा नेताओं को सजा देंगीं
समाज व्यवस्था के स्थापित सिद्धान्त किसी
व्यक्ति, समाज या दल को यह अधिकार भी नहीं
देते कि वह एक नारी के सम्मान की खातिर
दूसरी नारियों का अपमान करे, उनका चरित्र
हरण करे। नारी तो नारी है, उसमें 'मेरा और
पराया' का भेद नहीं हो सकता। किन्तु 21
जुलाई (गुरुवार) को राजधानी लखनऊ की सड़कों
पर जो हुआ, वह यही प्रदर्शित कर रहा था कि
देश और समाज में सिर्फ "मायावती जी" का ही
सम्मान सर्वोपरि है। अन्य महिलाएं सम्मान
रहित हैं, उनके पास सम्मान, स्वाभिमान,
लज्जा और अन्य 'आदरीय दृष्टि' के 'आभूषण'
पहनने के अधिकार नहीं हैं। सुश्री मायावती
के सम्मान की खातिर सर्वसमाज की
महिलाओं को आपत्तिजनक शब्द कहना, उन्हें "
पेश करने की मांग" करना क्या उचित है? क्या
ये बातें किसी अपराध की श्रेणी में नहीं
आतीं? कि, लाउडस्पीकर लगाकर आरोपी दयाशंकर
सिंह के परिवार की महिलाओं, उनकी बहन और
बेटी को "अशिष्ट" शब्द बोले गए? क्या ऐसी
नारेबाजी करके बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं
ने यह मान लिया कि इससे सुश्री मायावती का
सम्मान बढ़ गया? कतई नहीं, उन नेताओं और
कार्यकर्ताओं ने उतना ही बड़ा अपराध किया
है, जितना बड़ा दयाशंकर सिंह ने किया। और,
यह सब हुआ बसपा के बड़े नेताओं की माजूदगी
में, वहां नसीमुद्दीन सिद्दीकी, गया चरण
दिनकर, राम अचल राजभर और ब्रजेश पाठक सरीखे
नेता मौजूद थे। उन्होंने इस तरह की 'आपत्तिजनक
नारेबाजी' और 'महिलाओं के असम्मान' की भाषा
को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। इसलिए वह
भी नारियों के असम्मान के अपराध के दोषी
हैं।
जेटली जैसे बयान की अपेक्षा
इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि अब जितनी कड़ी
कार्रवाई भाजपा ने अपने नेता के खिलाफ की
है, उतनी ही कड़ी कार्रवाई मायावती अपने
उन नेताओं के खिलाफ करें, जिनकी मौजूदगी
में दयाशंकर सिंह के परिवार की महिलाओं के
लिए 'अपशब्दों' का प्रयोग किया गया था। मऊ
में 20 जुलाई को दयाशंकर सिंह के
आपत्तिजनक बयान के बाद भाजपा नेता अरुण
जेटली ने तत्काल राज्यसभा में खेद प्रकट
किया, बयान की निंदा की। मायावती जी ने भी
अपना कष्ट बयान किया। उनके साथ सभी दलों
और वरिष्ठ नेताओं और सभी वर्गों के लोगों
ने एकजुटता भी दिखायी। अब समय की मांग यह
है कि सुश्री मायावती भी राज्यसभा में उसी
तरह अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की निंदा
करें तथा भर्त्सना करें जैसे अरुण जेटली
ने अपने नेता के शब्दों की की। यदि
उन्होंने पहल नहीं की तो आक्रोश भड़कने का
खतरा बढ़ जाएगा। जैसे मायावती का समर्थक
वर्ग आक्रोशित है वैसे ही अन्य लोगों में
भी गुस्सा भड़क सकता है।
देवी सिर्फ मायावती नहीं
सुश्री मायावती ने गुरुवार को राज्यसभा
में दयाशंकर की टिप्पड़ी पर कहा कि उनका
समाज उन्हें देवी मानता है। इसलिए उनके
भक्तों में गुस्सा है। यह बात तो सही है
कि मायावती हमारी सामाजिक और धार्मिक
मान्याताओं के अनुरूप देवी हैं। हम देवी
स्वरूप में नारी की ही पूजा करते हैं। नौ
दिन कन्याओँ की पूजा करते हैं, वे भी
देवियों का स्वरुप हैं। उनमें अकेली
मायावती नहीं हैं, दयाशंकर सिंह की
बहन-बेटी भी शामिल हैं। वे भी पूजनीय हैं।
Sarvesh
Kumar Singh
Freelance Journalist
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