केन्द्र
की नरेन्द्र मोदी सरकार ने राज्य सभा में
रिक्त नामित सदस्य के स्थान को भरने के
लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति
रंजन गोगोई पर सहमति जताई है। उनके नाम की
सिफारिश राष्ट्रपति से सरकार की ओर से की
जाएगी। रंजन गोगोई का चयन पूरी तरह से
देश के सम्मान और गरिमा को बढ़ाने वाला
है। क्योंकि, गोगोई का कार्यकाल एक दम
निष्पक्ष और बेदाग रहा है। उनके नाम पर
किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। अलबत्ता
कांग्रेस ने व्यंगात्मक लहजे में ट्वीट कर
गोगोई को नामित किये जाने पर टिप्पणी की
है। यह वही कांग्रेस है जो दो बार जजों
को राज्य सभा भेज चुकी है। एक बार पूर्व
मुख्य न्यायाधीश को, जबकि दूसरी बार एक
न्यायाधीश को इसने राज्यसभा सदस्य बनाया।
लेकिन, अब जब भाजपा सरकार ने गोगोई को भेजा
तो इन्हें शिकायत होने लगी है। गोगोई जिस
रिक्त स्थान पर राज्यसभा के सदस्य होंगे
वह वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी का
कार्यकाल पूरा होने के बाद रिक्त हो रहा
है। तुलसी देश के जाने माने अधिवक्ता हैं।
गोगोई अयोध्या मामले पर फैसला देने के बाद
चर्चित हुए हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल
में उस ऐतिहासिक विवाद का निपटारा कर दिया
जो लगभग पांच सौ साल से चला आ रहा था।
उन्होंने चार अन्य जजों के साथ 9 नवम्बर
2019 को अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया।
सर्वसम्मति से सुनाए गए फैसले में राजमलला
विराजमान को सम्पूर्ण विवादित स्थल सौंप
दिया गया। इसके अलावा उन्होंने राफेल मामला,
सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश के
मामले को भी सुना। गोगोई पिछले साल ही 17
नवम्बर को सेवानिवृत्त हुए थे। वह 13 महीने
मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे। गोगोई की
निष्पक्षता पर कभी सवाल नहीं उठ सकता है।
उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के काम काज पर
सवाल उठाने वाले तीन अन्य जजों के साथ 12
जनवरी 2018 को प्रेस कांफ्रेस की थी।
षडयन्त्रकारियों ने गोगोई की छवि खराब करने
की भी कोशिश की थी। उनपर एक महिला कर्मचारी
की ओर से आरोप लगवाये गए थे, जोकि जांच
में निर्मूल साबित हुए थे। गोगोई को क्लीन
चिट मिली थी। राज्य सभा में जजों को नामित
करने और राज्य सभा के सदस्यों को जज बनाने
की परंपरा कांग्रेस ने ही डाली थी। सबसे
पहले कांग्रेस ने राज्य सभा सदस्य बहारुल
इस्लाम को 1972 में सर्वोच्च न्यायालय का
न्यायाधीश बनाया। वह 1962 से 1972 तक
कांग्रेस के सदस्य के रूप में राज्य सभा
में गए थे। हालांकि न्यायाधीश से
सेवानिवृत्त होने के बाद वह वह 1983 में
फिर से राज्यसभा के सदस्य रहे। इसी तरह
पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र भी
सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सभा भेजे गए
थे। इन्हें भी कांग्रेस ने राज्य सभा
सदस्य बनाया। वह 1991 में सेवानिवृत्त होने
के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस ने 1998 में उन्हें राज्य सभा
में भेजा, वह 2004 तक संसद सदस्य रहे।
जस्टिस रंजन गोगोई की पारिवारिक पृष्ठभूमि
कांग्रेस परिवार की रही है। उनके पिता
कांग्रेस में थे और असम के मुख्यमंत्री रहे
थे। इसलिए एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को
राज्य सभा भेजे जाने के केन्द्र सरकार के
फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए।
( उप्रससे ) |