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सम्पादकीय

सेना पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण 

सर्वेश कुमार सिंह

Publised on : 19 December 2016 Time: 12:11  Tags: Editorial, ARMY Sarvesh Kumar Singh

लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष की भूमिका समान रूप से महत्व रखती है। विपक्ष का दायित्व है कि वह राष्ट्रीय मामलों में अपना पक्ष रखे और आवश्यकतानुसार सरकार के फैसलों की आलोचना और समालोचना भी करे। किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे पर विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए। विशेष रुप से सेना के मामले अत्यन्त संवेदनशील तथा राष्ट्र हित से जुड़े होते हैं। उन्हें राजनीति से दूर रखना सभी का दायित्व है। लेकिन, कांग्रेस और कम्यूनिस्ट इन दिनों यही कर रहे हैं। ये दोनों दल न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीति कर रहे हैं, बल्कि अपनी वैचारिक शून्यता को भी प्रकट कर रहे हैं। दोनों दल सेना पर राजनीति कर रहे हैं। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठाकर कांग्रेस और सीपीएम ने करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। सेनाध्यक्ष पद पर 17 दिसम्बर को नामित किये गए लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत सर्वथा योग्य और सक्षम जनरल है। सेना के लिए उनकी विशिष्ट सेवाओं को दृष्टिगत रखते हुए उनका चयन किया गया है। ले.ज.रावत ने कई सैन्य अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उन्हें भारत-पाक और भारत-चीन सीमा पर तैनाती के दौरान गहन अनुभव, पूर्वोत्तर भारत में कई अभियान चलाने आदि सैन्य योग्यता के मापदण्ड के आधार पर कमाण्ड़रों की उस सूची से चयनित किया गया है जिसमें से सेनाध्यक्ष का चयन किया जना थाष वह इस सूची में शामिल दो अन्य अधिकारियों से कनिष्ठ हैं। यह सूची ऐसे कमाण्डरों की बनती है, जोकि सेनाध्यक्ष बनने के लिये सर्वथा उपयुक्त होते हैं। अब कांग्रेस या वामदल यह सवाल उठायें कि वरिष्ठता की अनदेखी कर दी गई तो यह उनका मानसिक दिवालियापन ही कहा जाएगा। क्योंकि यदि वरिष्ठता से ही चयन होना चाहिए तो फिर पैनल बनाकर सूची सरकार के पास भेजने का क्या औचित्य है? कांग्रेसी केन्द्र सरकार की आलोचना करने में यह भी भूल जाते हैं कि वह किसकी आलोचना कर रहे हैं। वह सरकार के विपक्ष हैं सेना के नहीं। ऐसा करके कांग्रेस के मनीष तिवारी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए उपयुक्त व्यक्ति का चयन करना सरकार का विशेषाधिकार है। विपक्ष को भी इस प्रक्रिया का आदर करना चाहिए। लेकिन वर्तमान विपक्ष ऐसा नहीं कर रहा है जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि कांग्रेस को पूर्व में विपक्ष की भूमिका में रही भाजपा से सीघ लेनी चाहिए। जब कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के अन्तिम दिनों में सेनाध्यक्ष पद पर वर्तमान जनरल दलबीर सिंह सुहाग का चयन किया था .तब चुनाव प्रक्रिया शुरु हो चुकी थी। इनके चयन पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने असहमति व्यक्त की थी। लेकिन, तत्कालीन यूपीए सरकार ने जाते जाते सेनाध्यक्ष पद पर जनरल दलबीर सिंह सुहाग की नियुक्ति कर दी थी। चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद 2014 में जब भाजपा की सरकार बनी तो माना जा रहा था कि दलबीर सिंह सुहाग की नियुक्ति रद्द हो जाएगी, क्योंकि कांग्रेस ने समय से काफी पहले नियुक्ति कर दी थी जबकि यह नियुक्ति नई सरकार को करने का पर्याप्त समय था। इसके साथ ही वीके सिंह सांसद हो चुके थे। किन्तु राजग सरकार ने सरकार बनते ही स्पष्ट किया कि दलबीर सिंह सुहाग ही सेनाध्यक्ष बनेंगे। क्योंकि इन्हें योग्यता के आधार पर सेनाध्यक्ष बनाया गया है। यह थी राष्ट्रहित और राष्ट्रीयता की भावना की राजनीति।
सर्वेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
मोबाइल: 9453272129 , व्हॉट्सएप: 9455018400 ,

Sarvesh Kumar Singh

Sarvesh Kumar Singh

Freelance Journalist

News source: U.P.Samachar Sewa

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