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  जो मागंने के लिए भक्ति करते, वह व्यापारी हैं-अवधेशानन्द
Tags: Swami Avdheshanand Giri, Shrimad Bhagvat Katha
Publised on : 09 February 2014 Time: 22:09

लखनऊ, 09 फरवरी। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त व्यक्ति कुछ न कुछ कार्य निरन्तर करता ही रहता है और उस कर्म का फल व्यक्ति प्रभु से संसारी सुख ही मांगता है। फलस्वरुप संसार का सुख भोगतेू हुए संसारी मोह में ही व्यक्ति बंधा रहता है और जन्म-जन्म तक मोह बंधन से मुक्ति नही हो पाता। उक्त बाते शनिवार को जीव आश्रय संस्था की ओर से जीव आश्रय गौशाला कान्हा उपवन नादरगंज चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन स्वामी अवधेशानन्द गिरी ने कहा। उन्होंने कहा कि जो लोग मागंने के लिए भक्ति करते हैं वह सच्चे भक्त नही, वो तो व्यापारी हैं। यदि मानव अपने किये हुये कर्म का फल प्रभु से प्रभु को ही मांगे तो परमात्मा उस व्यक्ति को संसार का सुख देते हुए स्वयं भी दर्शन प्रदान करते है।
स्वामी ने कहा कि मनुष्य के अन्दर वो गुण है जिसे देवता भी पाने का प्रयास करते है। मनुश्य को वह शक्तियाँ प्राप्त है जो देवताओं को भी नहीं है क्यों कि मनुष्य का जन्म ही राम और कृष्ण से मिलकर बना है। साधना इस दुनिया का सबसे बडा तप है। साधना एक साधक के लिए ऐसा प्रसाद है जिसका कोई मोल नहीं, जिसकी किसी से तुलना नही की जा सकती। साधना मनुष्य के लिए प्रसाद गुण है, साधना से प्रसाद का गुण होता है। जिस प्रकार योग साप्रसाद किसी अन्य भोजन में मिला दिया जाय तो वह भोजन भी प्रसाद बन जाता है। प्रसाद की न कोई न्यूवता होती है न कोई अल्पता। इसी प्रकार साधना है फिर साधना ही मनुष्य को सभी बुरे कर्मो से दूर रखता है। साधना भक्ति का ही रूप है। साधना आनन्द का ही रूप है और आनन्द ही ईश्वर है।
नन्द के आनन्द भयों, जय कन्हैया लाल की
ईश्वर अलौकिक है, ईश्वर मनुष्य सभी इन्द्रियों में विराजमान है, ईश्वर की अनुभूति भी आनन्द से होती है। आपके शरीर में आनन्द की एक लहर दौड जाय थोड़ा सा भी आनन्द प्राप्त हो जाये उसे खुशी का आभास हो तो कुछ पल के लिए सारे दुख भूल जाते है। क्योकि आप ईश्वर मे पूरी तरह लीन हो गये क्योकि आनन्द ही नन्दलाल है, और आनन्द ही ईश्वर है। आज का मनुष्य पदार्थ के पीछे भागता है पर पदार्थ एक सीमा तक आनन्द दे सकता है। पदार्थ सीमित है, प्रसाद ही एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को असीमित आनन्द का आभाष कराता है। क्योकि आनन्द ही भगवान है। जीवन में नन्दलाल की अनुभूति कराता है आनन्द
जब मनुष्य के जीवन में आनन्द होता है तो सुन्दरता स्वयं प्रकाशित हो जाती है। सुन्दरता भी मनुष्य के जीवन में वह गुण है जो स्वयं प्रकाशित होता है। सुन्दरता और आनन्द एक दूसरे के पूरक है, जहॉ सुन्दरता है वहॉ आनन्द है, जहॉ आनन्द है वहॉ सुन्दरता है। क्योकि जहॉ विष्णु है वहॉ शिव है, जहॉ शिव है वहॉ विष्णु है क्योकि आनन्द विष्णु है, सुन्दरता शिव है।

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News source: U.P.Samachar Sewa

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