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  आखिर क्यों नकारे गए यूपी में राष्ट्रीय दल ?
  ब 2014 का एजेंडा मुलायम सिंह के हाथ में
Tags:  Manish Srivastav, Uttar Pradesh Samachar Sewa, Victory of Samajvadi Party in U.P.
Publised on : 06 March 2012, Time: 17:04 

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ, 06 मार्च। (उ.प्र.समाचार सेवा)।Lucknow, 06 March 2012, (U.P.S.S). लगभग दो माह के चुनावी रण के परिणाम के दिन सभी दलों की धडक़ने तेज थीं आखिर क्या होगा? सवाल इस बात का है कि आखिर अपने को राष्ट्रीय पार्टी बताने वाली कांग्रेस और भाजपा को क्यों नहीं मतदाताओं ने पसन्द किया? जैसा कि मतों का रुझान आ रहा है यह तो तय है कि मुलायम सिंह यादव को बढ़े हुए मतों का सबसे ज्यादा फायदा हुआ है और इससे यह बात भी तय हो गया कि अब केंद्र में भी सपा की स्थिति मजबूत होगी लेकिन उत्तर प्रदेश के इस चुनाव ने 2014 के लोकसभा के चुनाव की दिशा तो तय कर ही दी है।
जैसा की लोगों का मानना था कि इस बार सपा की सरकार आएगी और राष्ट्रीय पार्टियों को भी अच्छी बढ़त मिलेगी लेकिन बढ़ते वक्त के साथ चुनाव परिणामों में तस्वीर साफ होती गई और सपा ने पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता पर कब्जा कर लिया है। लोगों की ये बातें तो सही साबित हुई लेकिन दुसरी बात कि कांग्रेस और भाजपा जो उ.प्र. में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं उनकी स्थिति में कोई सुधार आता नहीं लग रहा है हां इतना जरुर हुआ है कि कांग्रेस को अपने मकसद में थोड़ी सफलता जरुर मिल गई। लेकिन चुनाव पूर्व जैसा कांग्रेसी नेताओं का मानना था उसके आस-पास भी नहीं पहुंच सके और यही हाल भाजपा का रहा। आखिर क्या वजह रही कि उत्तर प्रदेश का मतदाता उन्हे सिरे से नकार दिया? उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से नकारे जाने के बाद अब इन दोनों पार्टियों के 2014 के लोकसभा चुनावों नीतियों के बारे में चिन्तन करने को विवश कर दिया है। क्योंकि कहते हैं कि दिल्ली पहुंचने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है तो अब इन दोनों पार्टियों का रास्ता उत्तर प्रदेश द्वारा रोक दिया गया है तो अब क्या करेगें इसे आने वाले समय पर छोड़ देना ही श्रेयस्कर होगा।
हम आगे या भविष्य में क्या होगा जैसे प्रश्नों को जानने के लिए वर्तमान में लालायित रहते है। हमारी इसी उत्सुकता को समझते हुए हर चुनावों मे मतगणनाओं से पहले विभिन्न चैनल अपने अपने एग्जिट पोल के साथ उपस्थित होते है। हालांकि वे ये कैसे करते है या कितने लोगों की तथा कब प्रतिक्रियाऐं ली जाती है यह तो अभी तक अनुत्तरित है लेकिन इतना जरूर है कि जनता का एक बहुत बड़ा भाग इनमें शामिल रहता है। वैसे तो इन सभी चैनलों के पोल का फोकस एक ही दल पर केन्द्रित है लेकिन देश की सरकार हो या राज्य की सरकारें कम ही ऐसे मौके आए है जब स्पष्ट बहुमत के साथ किसी ने अकेले शासन किया हो हालांकि उप्र में 2007 इसका अपवाद रहा लेकिन आज के रुझान के बाद 2007 अब अपवाद नहीं रह जाएगा क्योंकि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आ रही है।
कहने को तो चुनावी नतीजों को जनादेश कहा जाता है और सबसे ऊपर रहे दल के लिए कहा जाता है कि फलां दल को जनादेश प्राप्त हुआ है। सवाल इस बात का है कि क्या इस जनादेश का पालन किया जाता है? कब तक देश में जनादेश के साथ खिलवाड़ चलता रहेगा उसकी छज्जियाँ उड़ाई जाती रहेंगी संवैधानिक पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग कब तक मुंह बांधे रहेगें? जनता ने अपना मत एक पार्टी के पक्ष में किसा है तो क्या इससे इस बात का अनुमान लगाया जाना चाहिए कि अब गठबंधन की सरकार को जनता ने नकारना शुरु कर दिया है? क्या कानूनन चुनाव उपरांत गठबंधन को प्रतिबन्धित नही किया जाना चाहिए जिससे जनादेश की गरिमा बनी रह सके जनता ने बड़े पैमाने पर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया क्या देश के नीति-निर्धारक अपनी जिम्मेदारी निभाऐंग सही है कि बार-बार चुनावी प्रक्रिया से न गुजरने के लिए आवश्यक है कि कोई एक सरकार अस्तित्व में आए।
खैरए इन प्रश्नों के जवाब तो शायद हमें भविष्य में मिलें लेकिन वर्तमान मे यही लगता है कि जनता चाहे होली में दो-तीन दिन बाद गले मिले लेकिन हमारे माननीय और समाजवादी पार्टी के खेमे शायद आज शाम से ही होली के जश्र में डूब जाएगी और एक दुसरे को विजय की शुभकानाओं के साथ गले लगाऐगें।
 

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News source: U.P.Samachar Sewa

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