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Delhi. केन्द्र सरकार ने एक अध्यादेश के
जरिये जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग की
केन्द्रीय सूची के अनुसार आरक्षण देने
फैसला किया। जाटों की यह मांग काफी पुरानी
थी। इसके लिए लम्बे समय तक जाटों ने
आन्दोलन किया। कांग्रेस नेतृत्व की
केन्द्र की यूपीए सरकार ने लोकसभा चुनाव
से ऐन पहले उन्हें आरक्षण देने की मांग
पूरी कर दी। यह मांग पूरी होते ही
कांग्रेस में भूचाल आ गया है। कांग्रेस के
ही कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जाट आरक्षण का
विरोध कर दिया है। उन्होंने जाट आरक्षण के
साथ ही मुसलमानों के लिए भी आबादी के
अनुपात में आरक्षण का बकालत कर दी है। और
कांग्रेस से पूछा है कि जब जाटों को
आरक्षण दिया जा सकता है तो फिर मुसलमानों
को क्यों नहीं? इसके साथ ही उन्होंने
साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक कानून को भी
लागू करने की मांग कर दी है। जाट आरक्षण
पर सवाल उठाने वाले कांग्रेस के पूर्व
प्रवक्ता राशिद अल्वी और अल्पसंख्यक मामलों
का मंत्री के. रहमान खान हैं।
राशिद अल्वी ने बाकायदा
यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री
डा मनमोहन सिंह को पत्र लिखा है। पत्र में
राशिद अल्वी ने पूछा है कि क्या यह
मुजफ्फरनगर दंगों में हुए कत्लेआम का नतीजा
है? उन्होंने मांग की है कि केन्द्रीय
मंत्रिमण्डल की तत्काल बैठक बुलाई जाए तथा
मुस्लिम आरक्षण तथा साम्प्रदायिक हिंसा
निरोधक कानून को तत्काल लागू किया जाए।
अल्वी ने अपनी चिट्ठी में दो मांगें रखी
हैं। एक- आबादी के हिसाब से मुसलमानों को
आरक्षण की मांग स्वीकार की जाए।
दूसरी-साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक कानून को
तत्काल अध्यादेश के जरिये स्वीकृत कर लागू
किया जाए। उधर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री
के रहमान खान ने भी जाट आरक्षण पर कड़ा
रुख अपनाया है।
दरअसल ये दोनों नेता इस
बात को आधार बना रहे हैं कि पिछड़ा वर्ग
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जाट आरक्षण की
मांग को खारिज कर दिया था। रिपोर्ट के
अनुसार जाट आरक्षण की कसौटी पर खरे नहीं
उतरते। पिछड़ा वर्ग आयोग ने जाटों को
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं
माना था। |