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  लोकसभा चुनावों में भाजपा को साधने होंगे कई फैक्टर
Tags:  Uttar Pradesh, BJP
Publised on : 23 March 2014 Time: 16:32

प्रदेश में लोकसभा चुनावों को लेकर गहमागहमी का दौर प्रारम्भ हो चुका है। इसबार के लोकसभा चुनाव उप्र के हिसाब से सभी दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक होने जा रहे हेंै। सभी दलों व गठबंधनों को यह अच्छी तरह से पता है कि यदि केंद्र में सरकार बनानी है तो प्रदेश की 80 सीटों में से अधिकांश पर फतह हासिल करनी ही होगी। केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ चल रहे माहौल और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के पक्ष में चलरही लहर को देखेते हुए भाजपा ने भी पूरे उत्साह के साथ तैयारियां की हैं।अब तक जितने भी सर्वे हुए हैं उससे पता चलता है कि इस बार प्रदेश में मोदी की लहर है और लगभग पचास प्रतिशत लोगोंं की राय है कि मोदी को ही इस बार प्रधानमंत्री बनना चाहिये। साथ ही विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात भी सामने उभरकर आ रही है कि इस बार के लोकसभा चुनावों में प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सबसे अधिक सीटें जीतने जा रही है। इन सर्वे में भाजपा को सर्वाधिक 40-49 सीटें जीतने का भरोसा जगा है।
मेादी की लहर को भुनाने के लिए भाजपा ने वाराणसी में मोदी को चुनावी मैदान में उतारकर एक बड़ा दांव खेला है। भाजपा चुनाव प्रबंधन का मानना है कि मोदी को वाराणसी से उतारने पर पूर्वांचल की 32 सीटों सहित बिहार की कम से कम दस सीटों पर भी लाभ होगा। मोदी के चुनाव मैदान मेंं आने से सभी दलों के सियासी समीकरण गड़बड़ा गये हैं। भाजपा के नेताओ ंका मानना है कि मोदी का पिछड़ी जाति का होने व अपने परम्परागत वोटबैंक के एक बार फिर भाजपा की ओर आकर्षित होने का लाभ पार्टी को मिलने जा रहा है। उधर मोदी के चुनावी मैदान में उतरने से सभी दलों को मतों के हिंदू- मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण का भी खतरा पैदा हो गया है। वाराणसी में मोदी को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल सपा बसपा व कौमी एकता मोर्चा के संभावित उम्मीदवार मुख्तार अंसारी से भी कड़ी टक्कर मिलने जा रही है।भाजपा के रणनीतिकारों का मत है कि मुख्तार अंसारी जितनी ताकत से लड़ेंगे व मुस्लिम मतों का जितना अधिक विभाजन होगा उतना लाभ होगा। लेकिन कहीं यदि मुस्लिमों का मत पूरी तरह से एकपक्षीय हो गया तो परिणाम सोच के विपरीत भी आ सकते हैं।
लेकिन फिलहाल वाराणसी में जो नजारा है उससे पता चलता है कि बेहद कड़ी टक्क्र के बाद अंततः मोदी वाराणसी की सीट तो निकालेंगे ही और भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखते हुए पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर भाजपा की जीत होगी। वाराणसी में मोदी का प्रचार प्रसार करने के लिए गुजरात की टीमों का पहंुचना प्रारम्भ हो गया है। दूसरी तरफ भाजपा भले ही यह दावा कर रही हो कि प्रदेश में मोदी की लहर है इसके बावजूद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह गाजियाबाद मंे आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव को देखकर अपनी सीट बदलकर लखनऊ आ गये। भाजपा नेतरा डा. मुरली मनोहर जोशी व लखनऊ के सांसद लालजी टंडन को अपनी सीटें छोड़ने के मनाने के लिए पार्टी आलाकमान को संघ की शरण में बार बार जाना पड़ा। वहीें अभी भाजपा ने लगभग अपने अधिकांश उम्मीदवार घोषित तो कर दिये हैं लेकिन फिर भी बगावतों का उफान जारी है। जिससे सबसे अनुशासित छवि की पार्टी होने को दावा भी अब बेमानी हो गया है। जिन लोगों को टिकट नहीं मिल रहा है वे एक के बाद एक बागी हो रहे हैं। इस बार प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों की सूची में राममंदिर आंदोलन से जुड़ें अनेक कददावर संतों का टिकट कट गया है। जिसमें पूर्व सांसद रामविलास वेदांती, स्वामी चिन्मयानंद तो हैं ही साथ ही भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता सूर्यप्रताप शाही को भी टिकट नहीं मिला है जिसके चलते अब यह सभी लोग बागी हो चुके हैं। इन लोगों को लग रहा है कि अब भाजपा पूरी तरह से बदल चुकी है। भाजपा पर बाहरी लोगों का कब्जा हो चुका है। ऐसा ही नजारा इलाहाबाद में देखने को मिला जहां सपा नेता श्यामा चरण गुप्ता को टिकट दे दिया गया। वहां भी जबर्दस्त असंतोष देखने को मिला है।
लेकिन इन बगावतों व कार्यकर्ताओं के प्रबल विरोध के आगे केंद्रीय नेतृत्व ने तनिक भी परवाह नहीं की। वह अपने सियासी गणित के ताने बाने को भविष्य के हिसाब से तैयार कर रहा है। भाजपा को पूरी तरह से उम्मीद है कि इस बार प्रदेश की जनता के बीच मोदी की लहर है। उप्र के चुनाव प्रभारी अमित शाह का कहना है कि चाहे जो हो इस बार प्रदेश में मोदी लहर है जिसके चलते भाजपा प्रदेश में अधिकांश सीटों पर फतह हासिल करेगी। इस बार भाजपा ने जमकर दलबदलुआंे व ग्लैमरस लोगों पर भी दांव लगाया है। जिसमें सर्वाधिक चर्चा इलाहाबाद मंे‘श्यामा चरण गुप्ता , डुमरियरगंज से जगदम्बिका पाल व मथुरा से फिल्म अभिनेत्री हेमामालिनी कीउम्मीदवारी को लेकर रही। भाजपा को सबसे बड़ी कामयाबी कानपुर से पूर्व घोषित सपा प्रत्याशी राजू श्रीवास्तव को अपने पाले में लाने से मिली है। उधर कई फिल्मी सितारे इस बार भाजपा का चुनाव प्रचार भी करने आ रहे हैं। फिल्म अभिनेता सनी देओल व कई अन्य हस्तियों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में डेरा डाल दिया है। पूर्वांचल और अवध के बाद भाजपा के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुस्लिम समाज की सपा, बसपा व कांग्रेस से नाराजगी व जाट मतदाता की रालोद से बढ़ती दूरियां व गन्ना किसानों के आक्रोश का लाभ भाजपा अपने पक्ष में उठाना चाह रही थी। इसी के चलते भाजपा ने रालोद नेता अजित सिंह के खिलाफ मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर को चुनावी मैदान में उतारा है। दंगों के आरोपी विधायक कुंवर भारतेंद्र सिंह को अपना नया उम्मीदवार घोषित किया है।
उधर पश्चिमी उप्र में भाजपा को रोकने के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत झोक दी है। लोकसभा चुनावों की घोषणा के पूर्व ही केंद्र सरकार ने जाटों को आरक्षण देकर व रालोद- कांगे्रस के बीच गठबंधन ने सारे समीकरण बदल दिये हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता स्व. महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत रालोद में‘शामिल हो गये हैं।इसका कुछ लाभ रालोद को होता दिखलाई पड़ रहा है। मेरठ से कांग्रेस ने फिल्मी तड़का लगाकर चुनावों को रोचक बना दिया है। कांग्रेस प्रत्याशी नगमा की जनसभाओं व रोड शो में अच्छी भीड़ उमड़ रही है। लेकिन फिल्म अभिनेता सनी देओल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पहले चरण का दौरा करके विरोधी दलों को चैंकाया भी है। जिससे घबराकर रालोद नेता भाजपा पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा पश्चिमी उप्र में रालोद की बढ़ती ताकत से घबरा गयी है और वह अब दलबदलुओं व ग्लैमर के सहारे धर्मनिरपेक्ष ताकतों का रास्ता रोकने का प्रयास कर रही है। रालोद जैसे तथाकथित दल आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा व संघ के लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक बार फिर दंगों की आग में झोंेक सकते हैं। रालोद का दावा है कि वह प्रदेश में मोदी की बढ़त को रोक देगी। लेकिन सच्चाई यह है कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में मतों का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो सकता है। अगर ऐसा मतदान के दिन वास्तव में हो गया तो चुनाव परिणाम बेहद चैंकाने वाले भी हो सकते हैं। एक प्रकार से देखा जाये तो पूर्वांचल का महत्व जहां मोदी ने अपनी उम्मीदवारी से बढ़ा दिया हैं वहीं पश्चिमी उप्र भी सियासी दृष्टिकोण से कम महत्व का नहीं रह गया है।
यहां पर मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी संख्या मंंे हैं। इन मतों को प्राप्त करने के लिए सपा, बसपा,कांग्रेस, रालोद के बाद भाजपा मेंं भी बैचेनी हैं। सपा ने अपने सबसे बड़े मुस्लिम नेता आजम खां को पूरी छूट दे रखी है तो भाजपा संगठन भी आजम के मुकाबले मुख्तार अब्बास नकवी की जमीन को मजबूती देने का काम कर रहा हैं।उप्र में सबसे अधिक मुस्लिम बाहुल्य सीटें पश्चिमी उप्र में ही हैं। इन सीटों में बरेली, बदायूं, पीलीभीत, रामपुर, सम्भल, अमरोहा, मुरादाबाद व बिजनौर जैसी सीटें भी हैं जो कि मुस्लिम सियासत के रास्ते तय करती हैं। उधर सपा के पूर्व नेता मुलायम सिंह के सहयोगी अमर सिंह व जयाप्रदा हाल ही में रालोद में शामिल हो गये हैं तथा उन्हें टिकट भी मिल गया है। इन नेताओं के रालोद में आने से वह फूली नहीं समा रही है। इन सबके बावजूद भाजपा के रणनीतिकारों की यह पूरी कोशिश है कि इस बार मुस्लिम मतोें का झुकाव किसी एक पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में न हो पाये।
उप्र की राजनीति के केंद्रबिंदु इस समय मोदी हो गये हैं। मोदी की लहर को रोकने के लिए हर कोई दल अपने अपने दावे कर रहा है। सभी दलोें ने मोदी को रोकने के लिए अनाप- शनाप बयानबाजी शुरू कर दी है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी मोदी की लहर से कुछ सशंकित तो अवश्य हो गये हेंंै। यही कारण है कि वह मोदी को रोकने के लिए मैनपरुी व आजमगढ़ दो सीटों से चुनाव लड़कर कम से कम खुद संसद में पहुंचने का तानाबाना बना चुके हैं।
बहुजन समाजवादी पार्टी ने भी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिये हैं। बसपा ने समाज के सभी वर्गो को अपने साथ लेकर चलने की कोशिश की है। बसपा ने 29 ब्राहमण उम्मीदवारों को भी टिकट दिये हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती स्वयं इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं।उन्हें अपनी सोशल इंजीनियंरिग व मतों पर पूरा भरोसा है। मायावती के चुनाव न लड़ने पर सपा प्रवक्ता शिवपाल यादव का कहना है कि मायावती नरेंद्र मोदी से डर गयी हैं। इसलिए वह भाग गयीं।
कांग्रेस पार्टी मोदी लहर को रोकने केे लिए प्रयास कर रही है। वह भी खेल व फिल्म जगत की हस्तियों को चुनाव मैदान में उतार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। गाजियाबाद से राजबब्बर, मेरठ से नगमा व फुूलपुर से क्रिकेट खिलाड़ी मोहम्मद कैफ को टिकट देकर युवाओं को भी अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है। आम आदमी पार्टी भी मोदी रोको अभियान मंे उतर चुकी है। वाराणसी से स्वयं केजरीवाल चुनाव मैदान में स्वयं उतर सकते हैं। सभी राजनैतिक दल हरहालत में मोदी को हराने व उनका विजयी रथ रोकने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैंे। लेकिन इन सबके बावजूद मोदी समर्थक बेपरवाह हैं।
प्रदेश के राजनैतिक दलों के लिए सबसे बड़ी ंिचंता का विषय है मतदान का प्रतिशत। प्रदेश में आठवीं लोकसभा से लेकर 15 वीं लोकसभा के चुनावों तक मतदान का प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है। आठवीं लोकसभा में सबसे अधिक 55.81 प्रतिशत मतदान हुआ था। 14वींं लोकसभा में 48.16 तथा 15वीं लोकसभा मेें 47.78 प्रतिशत मतदान हुआ था। कम मतदान एक चिंता का विषय है। कहां जाता है कि यदि मतदान का प्रतिशत बहुत अधिक हो जाये यानि कि लगभग 65 से 70 प्रतिशत तक तो भी राजनैतिक दलों का पूरा का पूरा गणित बदलते देर नहीं लगती है। आमतौर पर विश्लेषकोंं का मानना है कि कम मतदान से कांग्रेस व अन्य दलों को ही लाभ पहुंचता है। जबकि अभी हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में जिस प्रकार से भारी मतदान हुआ और भारी बहुमत से भाजपा की वापसी हुई वह निश्चय ही चैंकाने वाली थी।
इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए भाजपा व संघ परिवार का पूरा का पूरा ध्यान इस बात पर है कि जैसे भी हो मतदान का प्रतिशत बढ़ाया जाये। निर्वाचन आयोग भी अपनी ओर से विशेष अभियान चला रहा है। विगत चार प्रांतोे की तर्ज पर यदि मतदाता लोकसभा चुनावों में मतदान करने के लिए उतर पड़ा तो सारें के सारे राजनैतिक दलों के समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं। अतः भाजपा को यदि मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है तो केजरीवाल फैक्टर मुस्लिम मतों के फैक्टर व मतों के प्रतिशत को भी ध्यान में रखकर अपना चक्रव्यूह रचना होगा।

   

News source: Agency

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