देहरादूनः
उत्तराखंड
में
कांग्रेस
के
दिग्गज
नेता
सतपाल
महाराज
के
भाजपा
में
आने
से
प्रदेष
सरकार
में
भी
भूचाल
आया
है।
कांग्रेस
की
अल्पमत
सरकार
के
लिये
यह
बहुत
ज़ोर
का
झटका
है।
सतपाल
महाराज
की
धर्मपत्नी
अमृता
रावत
सरकार
में
कैबिनेट
मंत्री
हैं
और
आधा
दर्ज़न
समर्थक
विधायक
मुख्यमंत्री
हरीष
रावत
गुट
से
दूरी
बनाये
रहते
हैं।
सतपाल
महाराज
को
अध्यात्म
गुरु
मानने
वाले
लाखों
श्रद्धालु
हरियाणा,राजस्थान,उत्तर
प्रदेश,
उत्तराखंड
और
सिक्मिम
आदि
प्रांतों
में
है।
धार्मिक
समागम
में
सतपाल
महाराज
का
यह
जन
सैलाब
राजनेताओं
की
आंखों
की
किरकिरी
बनता
रहा
है।
सतपाल
महाराज
केंद्र
सरकार
में
रेल
और
वित्त
मंत्री
रह
चुके
हैं।
वरिश्ठ
सांसद
होने
के
कारण
सतपाल
महाराज
को
लोकसभा
कार्यवाही
संचालन
कराने
का
भी
बड़ा
अनुभव
है।
कांग्रेस
छोड़ने
का
कारण
सतपाल
महाराज
केन्द्र
द्वारा
उत्तराखंड
प्रदेष
की
निरंतर
उपेक्षा
और
आपदा
में
प्रचुर
सहायता
उपलब्ध
न
कराना
मानते
हैं।
उत्तराखंड
में
नारायण
दत्त
तिवारी
के
बाद
हरीष
रावत,
सतपाल
महाराज
और
विजय
बहुगुणा
के
खेमों
में
कांग्रेस
नज़र
आयी।
2012
के
विधान
सभा
चुनाव
में
कांग्रेस
और
भाजपा
को
32
व
31
सीट
मिली।
नये
राज्य
में
इस
कदर
दुरभि
संधियां
हुई
कि
भाजपा
के
मिस्टर
क्लीन
मुख्यमंत्री
जनरल
खंडूडी,
कैबिनेट
मंत्री
त्रिवंेद्र
रावत,
प्रकाषपंत
चुनाव
हार
गये।
जोड़तोड़
से
कांग्रेस
ने
भाजपा
की
सितारगंज
सीट
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
विजय
बहुगुणा
के
लिये
हासिल
की
और
विधानसभा
में
कांग्रेस
व
भाजपा
की
सीटों
का
आंकड़ा
33
व
30
सीट
हो
गया।
गढ़वाल
सांसद
सतपाल
महाराज
के
भाजपा
में
आने
से
वर्तमान
भाजपा
प्रत्याषी
जनरल
भुवन
चंद्र
खंडूडी
को
गढ़वाल
लोकसभा
सीट
पर
वाक
ओवर
मिला
है।
अब
इस
सीट
पर
भी
कांग्रेस
को
प्रत्याषी
ढंूडने
के
लाले
पड़
रहे
हैं।
उत्तराखंड
में
सतपाल
महाराज
ने
कांग्रेस
का
सारा
चुनावी
गणित
गड़बड़ा
दिया
है।
भाजपा
को
सदस्यता
के
पांच
रुपयों
के
साथ
लाखों
वोट
की
सौगात
भी
सतपाल
महाराज
की
ओर
से
मिली
है।
सतपाल
महाराज
अपने
अपमान
से
इस
कदर
व्यथित
थे
कि
भाजपा
में
“ाामिल
होते
हुए
अपनी
पीड़ा
नही
छुपा
सके
-
मैं
इस
धर्मयुद्ध
में
श्री
कृश्ण
की
तरह
झूठी
पत्तलें
उठाने
को
तैयार
हूं।
2012
में
हरीष
रावत
ने
मुख्यमंत्री
न
बनाये
जाने
की
कुछ
अधिक
ही
कीमत
कांग्रेस
से
वसूल
की।
संबंधी
के
लिये
राज्यसभा,
सिपाहसलारों
के
लिये
विधान
सभा
अध्यक्ष
व
मंत्री
पद
और
केंद्र
सरकार
में
कैबिनेट
सीट।
दिल्ली
की
सड़कों
पर
उत्तराखंड
मुख्यमंत्री
पद
के
लिये
धरना
-
प्रदर्षन
सोनिया
गांधी
के
अनुषासन
को
धत्ता
बताने
वाला
रहा।
विजय
बहुगुणा
का
लगभग
दो
वर्शीय
मुख्यमंत्रीकाल
बेरंग,खींचतान
और
आपदा
की
भेंट
चढ़
गया।
फरवरी
2014
में
हरीष
रावत
को
मुख्यमंत्री
बनाना
सतपाल
महाराज
कत्तई
हज़म
नही
कर
पाये।
भाजपा
को
2012
में
सत्ता
से
दूर
रखने
में
कांग्रेसी
सांसद
सतपाल
महाराज
एक
फेक्टर
रहे।
गढ़वाल
लोकसभा
की
14
विधानसभा
सीटों
में
कांग्रेस
ने
11
सीट
जीती
और
भाजपा
को
3
सीटों
पर
संतोश
करना
पड़ा।
टिहरी
लोकसभा
की
14
विधानसभा
सीटों
पर
भाजपा
6,
कांग्रेस
5
और
3
निर्दलीयों
ने
जीत
दर्ज़
की
हैं।
उत्तराखंड
राज्य
नवंबर
2000
में
बना
और
अभी
70
सीटों
वाली
तीसरी
विधानसभा
में
किसी
दल
के
पास
पूर्ण
बहुमत
नही
है।
उत्तराखंड
का
राजनीतिक
मिज़ाज
मौसम
सा
बेमानी
रहा
है।
दोबार
कांग्रेस
2002
व
2012
और
एक
बार
2007
में
भाजपा
को
सरकार
बनाने
का
मौका
मिला।
यह
दूसरी
बात
है
कि
कांगे्रस
के
तीन
और
भाजपा
के
चार
मुख्यमंत्री
इस
बीच
“ापथ
ले
चुके
हैं।
उत्तराखंड
से
लोकसभा
के
लिये
पांच
और
राज्यसभा
के
लिये
तीन
सदस्य
चुने
जाते
हैं।
2009
के
चुनाव
में
भाजपा
सरकार
के
रहते
पांचों
सीट
कांग्रेस
ने
जीती।
कांग्रेस
सरकार
मेंं
मुख्यमंत्री
विजय
बहुगुणा
अपने
पुत्र
साकेत
को
लोकसभा
उपचुनाव
2012
नही
जीता
पाये
और
भाजपा
की
झोली
में
विजयश्री
टिहरी
लोकसभा
सीट
महारानी
माला
राज्य
लक्ष्मी
ने
दी।
राज्यसभा
में
भगत
सिंह
कोष्यारी,
पूर्व
मुख्यमंत्री
और
तरुण
विजय
(पूर्व
संपादक,
पांचजन्य)
भाजपा
और
महेन्द्र
माहरा
कांग्रेस
सदस्य
हैं।
मुख्यमंत्री
हरीष
रावत
के
माहरा
संबंधी
बताये
जाते
हैं।
इस
बार
लोकसभा
चुनावों
में
भाजपा
के
तीनों
पूर्व
मुख्यमंत्री
भगत
सिंह
कोष्यारी,
जनरल
भुवन
चंद्र
खंडूडी
और
रमेष
पोखरियाल
निषंक
लोकसभा
के
प्रत्याषी
बनाये
गये
हैं।
उत्तराखंड
राज्य
विधानसभा
में
तीरथ
सिंह
रावत,
प्रदेष
भाजपाध्यक्ष
होने
के
नाते
षिखर
पर
हैं।
ऐसे
में
सत्ता
परिवर्तन
होने
पर
सतपाल
महाराज
या
तीरथ
सिंह
रावत
गढ़वाल
से
मुख्यमंत्री
पद
के
सषक्त
दावेदार
नज़र
आते
हैं
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