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  भाजपा की पौ बारहः सतपाल महाराज के साथ आये लाखों वोट
  Uttrakhand:कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज की भाजपा में नई पारी !
  भूपत सिंह बिष्ट
Tags: Uttrakhand  News, Dehradun
Publised on : 25 March 2014 Time: 23:20

देहरादूनः उत्तराखंड में कांग्रेस के दिग्गज नेता सतपाल महाराज के भाजपा में आने से प्रदेष सरकार में भी भूचाल आया है। कांग्रेस की अल्पमत सरकार के लिये यह बहुत ज़ोर का झटका है। सतपाल महाराज की धर्मपत्नी अमृता रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और आधा दर्ज़न समर्थक विधायक मुख्यमंत्री हरीष रावत गुट से दूरी बनाये रहते हैं।

सतपाल महाराज को अध्यात्म गुरु मानने वाले लाखों श्रद्धालु हरियाणा,राजस्थान,उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्मिम आदि प्रांतों में है। धार्मिक समागम में सतपाल महाराज का यह जन सैलाब राजनेताओं की आंखों की किरकिरी बनता रहा है। सतपाल महाराज केंद्र सरकार में रेल और वित्त मंत्री रह चुके हैं। वरिश्ठ  सांसद होने के कारण सतपाल महाराज को लोकसभा कार्यवाही संचालन कराने का भी बड़ा अनुभव है।

कांग्रेस छोड़ने का कारण सतपाल महाराज केन्द्र द्वारा उत्तराखंड प्रदेष की निरंतर उपेक्षा और आपदा में प्रचुर सहायता उपलब्ध कराना मानते हैं। उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी के बाद हरीष रावत, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा के खेमों में कांग्रेस नज़र आयी। 2012 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को 32 31 सीट मिली। नये राज्य में इस कदर दुरभि संधियां हुई कि भाजपा के मिस्टर क्लीन मुख्यमंत्री जनरल खंडूडी, कैबिनेट मंत्री त्रिवंेद्र रावत, प्रकाषपंत चुनाव हार गये। जोड़तोड़ से कांग्रेस ने  भाजपा की सितारगंज सीट तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिये हासिल की और विधानसभा में कांग्रेस भाजपा की सीटों का आंकड़ा 33 30 सीट हो गया।

गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज के भाजपा में आने से वर्तमान भाजपा प्रत्याषी जनरल भुवन चंद्र खंडूडी को गढ़वाल लोकसभा सीट पर वाक ओवर मिला है। अब इस सीट पर भी कांग्रेस को प्रत्याषी ढंूडने के लाले पड़ रहे हैं। उत्तराखंड में सतपाल महाराज ने कांग्रेस का सारा चुनावी गणित गड़बड़ा दिया है। भाजपा को सदस्यता के पांच रुपयों के साथ लाखों वोट की सौगात भी सतपाल महाराज की ओर से मिली है। सतपाल महाराज अपने अपमान से इस कदर व्यथित थे कि भाजपा मेंाामिल होते हुए अपनी पीड़ा नही छुपा सके - मैं इस धर्मयुद्ध में श्री कृश्ण की तरह झूठी पत्तलें उठाने को तैयार हूं।

2012 में हरीष रावत ने मुख्यमंत्री बनाये जाने की कुछ अधिक ही कीमत कांग्रेस से वसूल की। संबंधी के लिये राज्यसभा, सिपाहसलारों के लिये विधान सभा अध्यक्ष मंत्री पद और केंद्र सरकार में कैबिनेट सीट। दिल्ली की सड़कों पर उत्तराखंड मुख्यमंत्री पद के लिये धरना - प्रदर्षन सोनिया गांधी के अनुषासन को धत्ता बताने वाला रहा। विजय बहुगुणा का लगभग दो वर्शीय मुख्यमंत्रीकाल बेरंग,खींचतान और आपदा की भेंट चढ़ गया। फरवरी 2014 में हरीष रावत को मुख्यमंत्री बनाना सतपाल महाराज कत्तई हज़म नही कर पाये।

भाजपा को 2012 में सत्ता से दूर रखने में कांग्रेसी सांसद सतपाल महाराज एक फेक्टर रहे। गढ़वाल लोकसभा की 14 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 11 सीट जीती  और भाजपा को 3 सीटों पर संतोश करना पड़ा। टिहरी लोकसभा की 14 विधानसभा सीटों पर भाजपा 6, कांग्रेस 5 और 3 निर्दलीयों ने जीत दर्ज़ की हैं।

उत्तराखंड राज्य नवंबर 2000 में बना और अभी 70 सीटों वाली तीसरी विधानसभा में किसी दल के पास पूर्ण बहुमत नही है। उत्तराखंड का राजनीतिक मिज़ाज मौसम सा बेमानी रहा है। दोबार कांग्रेस 2002 2012 और एक बार 2007 में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। यह दूसरी बात है कि कांगे्रस के तीन और भाजपा के चार मुख्यमंत्री इस बीचापथ ले चुके हैं।

उत्तराखंड से लोकसभा के लिये पांच और राज्यसभा के लिये तीन सदस्य चुने जाते हैं। 2009 के चुनाव में भाजपा सरकार के रहते पांचों सीट कांग्रेस ने जीती। कांग्रेस सरकार मेंं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अपने पुत्र साकेत को लोकसभा उपचुनाव 2012 नही जीता पाये और भाजपा की झोली में विजयश्री टिहरी लोकसभा सीट महारानी माला राज्य लक्ष्मी ने दी।

राज्यसभा में  भगत सिंह कोष्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री और तरुण विजय (पूर्व संपादक, पांचजन्य) भाजपा और महेन्द्र माहरा कांग्रेस सदस्य हैं। मुख्यमंत्री हरीष रावत  के माहरा संबंधी बताये जाते हैं। इस बार लोकसभा चुनावों में भाजपा के तीनों पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोष्यारी, जनरल भुवन चंद्र खंडूडी और रमेष पोखरियाल निषंक लोकसभा के प्रत्याषी बनाये गये हैं।  उत्तराखंड राज्य विधानसभा में तीरथ सिंह रावत, प्रदेष भाजपाध्यक्ष होने के नाते षिखर पर हैं। ऐसे में सत्ता परिवर्तन होने पर सतपाल महाराज या तीरथ सिंह रावत गढ़वाल से मुख्यमंत्री पद के सषक्त दावेदार नज़र आते हैं

   

News source: UP Samachar Sewa

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