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#नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे गुमनामी

 बाबा: जस्टिस सहाय आयोग

Justice Vishnu Sahai Commission have had not decided identity of Gumnami Baba, But said he was not Neta ji Subhas Chandra Bose

Tags: #Neta Ji Subhas Chandra Bose, #Gumnami Baba, #Bhagwan ji, #Justice Vishnu Sahay Ayog, #Faizabad

लखनऊ, 19 दिसम्बर 2019, ( यूपी समाचार सेवा UP Samachar Sewa )। जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने कहा है कि अयोध्या ( फैजाबाद ) के गुमनामी बाबा के बारे में जांच से स्पष्ट हो गया है कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे। जैसी की मान्यता प्रचलन में रही है कि नेता जी की मृ्त्यु 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और वे उसके बाद भी जीवित रहे। कुछ लोगों की मान्यता थी कि फैजाबाद के रामभवन में निवास करने वाले गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी ही सुभाष चन्द्र बोस थे। लेकिन जांच आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया कि भगवन जी नेता जी नहीं थे। किन्तु आयोग यह बताने में  विफल रहा कि वे कौन थे।

जस्टिस विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को विधान सभा में प्रस्तुत की गई। आयोग का गठन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ  खण्डपीठ के आदेश पर 28 जून 2016 को किया गया था। इस आयोग ने एक साल में ही अपनी रिपोर्ट वर्ष 19 सितम्बर 2017 में उत्तर प्रदेश शासन को सौंप दी थी। किन्तु इसे विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया गया। दो साल बाद इसे मंत्रिपरिषद् ने  23 जुलाई 2019 को स्वीकृति प्रदान की और विधान सभा के पटल पर रखने का निर्मय लिया गया। गुरुवार को संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने रिपोर्ट सदन में  प्रस्तुत की। आयोग के अनुसार रामभवन फैजाबाद में निवास करने वाले गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी जिनका निधन 16 सितम्बर 1985 को हुआ था तथा 18 सितम्बर 1985 को सरयु तट पर   स्थित गुप्तार घाट पर अन्तिम संस्कार कर दिया गया। उनकी अभिज्ञातता का निर्धारण नहं हो सका। किन्तु तथ्यों एवं जांच से यह स्पष्ट है कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे।

जस्टिस विष्णु सहाय आयोग के निष्कर्ष

1.     वह एक बंगाली थे।

2.    वह बंगाली, अंग्रेजी और हिन्दी भाषाओं के भिज्ञ थे।

3.    वह एक असाधारण मेधावी व्यक्ति थे, क्योकि रामभवन फैजाबाद के जिस भाग में वह निवास करते थे, से बंगाली, अंग्रेजी और हिन्दी में अनेकों विषयों की पुस्तकें बड़ी संख्या में प्राप्त हुई थीं।

4.    उनको युद्ध राजनीति और सामयिकी की गहन जानकारी थी।

5.    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के स्वर के समान उनके स्वर में प्राधिकार का भाव था।

6.    उनमें प्रचण्ड आत्मबल और आत्मसंयम था। जिसने उन्हें उनके जीवन के अन्तिम 10 वर्षों में  अयोध्या और फैजाबाद में परदे के पीछे रहने के योग्य बनाया था।

7.    लोग जो उनसे परदे के पीछे से बात करते थे, उन्हें सुनने के पश्चात सम्मोहित हो जाते थे।

8.    वह पूजा और ध्यान में पर्याप्त समय व्यतीत करते थे।

9.    वह जीवन में बढ़िया वस्तुओं जैसे संगीत, सिगार और भोजन के प्रेमी थे।

10.                       वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अनुयायी थे परन्तु जिस समय यह प्रसारित होनी प्रारम्भ हो गई  कि वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे, उन्होंने तत्काल अपना मकान बदल लिया था।

11. भारत में शासन की स्थिति से उनका मोह भंग था।

आयोग ने एक साल तक जांच करके अपनी रिपोर्ट 130 पृष्ठों में प्रत्तुत की है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के समंबन्ध में भारत सरकार द्वारा पूर्व में बनाये तीन आयोगों शाहनवाज आयोग, खोसला आयोग और बनर्जी आयोग का भी जिक्र किया है। उनके विवरणों के भी कुछ अंश अपनी रिपोर्ट में समाहित किये हैं। बनर्जी आयोग के निष्कर्षों तथा जांचों का पर्याप्त सहयोग लिया गया है। जस्टिस सहाय ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर भी संक्षिप्त घटनाक्रम अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत किया है। उन्होंने ताइपेह 18 अगस्त 1945 को दोपहर में लगभग दो बजे विमान दुर्घटना का भी विवरण प्रस्तुत किया है। माना जाता है कि इसी विमान में नेताजी अपने सहयोगी कर्नल हबीबउर रहमान के साथ सवार थे। विमान उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और नेताजी समेत छह लोगों की झुलने से चिकित्सलाय पहुंच कर मृत्यु हो गई थी। रहमान दुर्घटना में बच गए थे।

बाद के कुछ वर्षों में यह बात प्रचारित हो गई कि ताइपेह की दुर्घटना काल्पनिक थी और उसमें नेताजी की मौत नहीं हुई थी। नेताजी को जापानियों ने सुरक्षित रूस पहुंचा दिया था। जहां वह काफी दिन रहे तथा बाद में भारत लौट आये और फैजाबाद में गुमनामी बाबा के रूप में अन्तिम समय व्यतीत किया। इसके अलावा एक और चर्चा भी सामने आयी थी कि पश्चिम बंगाल के शौलमारी आश्रम में रहने वाले स्वामी शारदानन्द जिनका निधन 1977 में देहरादून में हुआ, वे सुभाष चन्द्र बोस थे। इस प्रकरण पर विष्णु सहाय आयोग ने प्रकाश डाला तथा जांच में शामिल किया। उन्होंने स्वामी शारदानन्द के भी नेताजी सुभाष होने की बात से इनकार किया।

लेकिन एक साल की जांच में जस्टिस  विष्णु सहाय यह जानने सफल नहीं हो सके कि आखिर गुमनामी कौन थे ? उनका असली नाम क्या था ? वे कहां से फैजाबाद आये थे, और परदे के पीछे क्यों रहते थे ? उनके पास नेताजी सुभाष के परिवार से सम्बन्धित सामग्री और चित्र क्यों थे ? उनकी लिखावट में नेताजी की लिखावट से समानता क्यों थी ? आदि।  

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