नई
दिल्ली,
04
अप्रैल
(हि.स.)।
सोलहवीं
लोकसभा
के
लिए
हो
रहे
चुनाव
में
पहले
चरण
के
मतदान
में
अब
मात्र
72
घंटे
शेष
हैं।
ऐसे
में
सत्ता
के
शीर्ष
तक
पहुंचने
के
लिए
सभी
प्रमुख
दलों
ने
देश
के
लगभग
पंद्रह
प्रतिशत
मुस्लिम
वोटों
के
ध्रुवीकरण
की
पैतरेबाजी
तेज
कर
दी
है।कांग्रेस
अध्यक्ष
सोनिया
गांधी
ने
जहां
जामा
मस्जिद
के
इमाम
अहमद
बुखारी
से
मुलाकात
कर
मुस्लिम
वोटों
को
रिझााने
की
सियासत
तेज
की
वहीं
सपा
मुखिया
मुलायम
सिंह
यादव
ने
अपनी
पार्टी
के
घोषणा
पत्र
में
मुस्लिम
आरक्षण
का
दांव
खेला
है।
यह
सब
देख
भाजपा
ने
आरोप
लगाया
है
कि
कांग्रेस
चुनावी
राजनीति
का
साम्प्रदायीकरण
कर
रही
है।
उधर
चुनाव
आयोग
ने
मुस्लिम
मतों
को
लेकर
गरमाई
राजनीति
को
गंभीरता
से
लिया
है।
सोनिया
गांधी
और
अहमद
बुखारी
की
मुलाकात
और
उसके
बाद
तेज
हुई
सियासत
के
बीच
मुख्य
चुनाव
आयुक्त
वीएस
संपत
ने
कहा
है
कि
शिकायत
मिलने
पर
आयोग
जांच
करेगा
और
आवश्यक
हुआ
तो
कार्रवाई
भी
होगी।
दरअसल
देश
में
बह
रही
मोदी
की
हवा
और
उनका
अचानक
उभरा
मुस्लिम
प्रेम
ने
अन्य
दलों
की
बौखलाहट
बढ़ा
दी
है।
परिणामस्वरूप
कांग्रेस
और
सपा
ने
इस
दिशा
में
अपनी
कवायद
तेज
कर
दी।
सपा
तो
दो
कदम
और
आगे
चलकर
अपने
घोषणा
पत्र
में
यह
भी
वादा
कर
दिया
कि
धर्मान्तरण
करके
ईसाई
व
मुस्लिम
बने
दलितों
को
अनुसूचित
जाति
की
सुविधाएं
बंद
नहीं
होंगी।
बसपा
और
आम
आदमी
पार्टी
भी
मुस्लिम
मतदाताओं
को
अपने
पक्ष
में
करने
की
हर
संभव
कोशिश
में
लगी
हैं।
बसपा
ने
उत्तर
प्रदेश
में
सबसे
अधिक
19
मुस्लिम
प्रत्याशियों
को
चुनाव
मैदान
में
उतारा
है।
भाजपा
ने
भी
मुसलमानों
को
अपने
पक्ष
में
करने
के
लिए
गुरूवार
को
दिल्ली
में
उलेमाओं
का
एक
सम्मेलन
किया
और
उसके
बहाने
यह
संदेश
देने
की
कोशिश
की
कि
अगर
मोदी
प्रधानमंत्री
बनेगे
तो
मुस्लिम
वर्ग
के
विकास
के
लिए
बड़े
कदम
उठाये
जायेंगे।
मोदी
के
चुनाव
क्षेत्र
वाराणसी
समेत
देश
भर
में
गुजरात
के
मुस्लिम
भेजे
जा
रहे
हैं
जो
वहां
के
मुसलमानों
को
अपनी
सुधरी
आर्थिक
हालात
और
सुरक्षा
की
गाथा
सुना
रहे
हैं।
वे
मुस्लिम
इलाके
में
नमो
के
विकास
माॅडल
का
यशोगान
भी
कर
रहे
हैं।
बनारसी
साड़ी
बनाने
वाले
जुलाहों
के
बीच
सूरत
के
मुस्लिम
व्यापारियों
को
भेजने
की
योजना
है।
वे
अपनी
विकास
कहानी
सुनाकर
जुलाहों
को
सुखद
भविष्य
का
सपना
दिखाएंगे।
संघ
के
मुस्लिम
मंच
ने
भी
इसी
उद्देश्य
की
पूर्ति
हेतु
हाल
ही
में
वाराणसी
में
17
राज्यों
की
मुस्लिम
महिलाओं
का
एक
बड़ा
जमघट
लगवाया
था।
यह
सब
कवायद
इसलिए
हो
रही
है
क्योंकि
देश
की
कुल
543
लोकसभा
सीटों
में
से
72
सीटें
ऐसी
बतायी
जाती
हैं
जहां
मुस्लिम
मतदाता
निर्णायक
भूमिका
में
हैं।
कुछ
मुस्लिम
नेताओं
का
दावा
है
कि
वे
सौ
से
अधिक
सीटों
पर
अपना
खास
प्रभाव
रखते
हैं
और
जिसके
पक्ष
में
लामबंद
होकर
मतदान
करते
हैं,
उसकी
जीत
पक्की
हो
जाती
है।
एक
सर्वे
रिपोर्ट
के
अनुसार
पिछले
लोकसभा
चुनाव
में
मुसलमानों
ने
उत्तर
प्रदेश
में
सपा,
बसपा
और
कांग्रेस
को
वोट
दिया
था
जबकि
बिहार
के
मुसलमानों
के
वोट
जातीय
आधार
पर
बंटे
थे।
लालू
यादव
ने
मुसलमानों
के
मतों
के
बल
पर
ही
लम्बे
समय
तक
वहां
राज
किया।
हालांकि
बिहार
के
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
ने
पिछड़े
मुस्लिमों
को
अपनी
तरफ
खींचने
में
काफी
सफलता
प्राप्त
कर
ली
है।
पूर्वोत्तर
के
असम
में
मुसलमानों
की
पार्टी
समझे
जानी
वाली
आल
असम
डेमोक्रेटिक
पार्टी
(एयूडीएफ)
को
बंगला
भाषी
मुसलमानों
का
वोट
मिलता
है
जबकि
असमिया
भाषी
मुसलमान
ज्यादातर
अपना
वोट
कांग्रेस
या
असम
गण
परिषद
को
देते
हैं।
राष्ट्रीय
राजधानी
दिल्ली
के
मुसलमान
अभी
तक
अपना
वोट
कांग्रेस
को
देते
आये
हैं
लेकिन
हाल
में
हुए
विधानसभा
के
चुनाव
में
उन्होंने
आम
आदमी
पार्टी
को
वोट
किया
था।
उधर
प0
बंगाल
में
मुसलमान
मत
पूरी
तरह
बिखरे
हुए
हैं।
पिछले
चुनाव
में
उनके
वोट
तृणमूल
कांग्रेस,
माक्र्सवादी
कम्यूनिस्ट
पार्टी
और
भारतीय
कम्यूनिस्ट
पार्टी
तीनों
के
पक्ष
में
गये
थे।
देश
में
सबसे
अधिक
मुस्लिम
आवादी
वाली
22
सीटें
हैं।
इसमें
जम्मू-कश्मीर
की
बारामूला
संसदीय
क्षेत्र
में
97
प्रतिशत
मुस्लिम
आवादी
है।
जम्मू-कश्मीर
के
ही
अनंतनाग
और
श्रीनगर
सीटों
पर
इनकी
जनसंख्या
क्रमशः
95.5
और
90
प्रतिशत
है।
इसी
तरह
लक्षदीप
में
मुसलमानों
की
आवादी
95
फीसदी,
बिहार
के
किसनगंज
में
67
प्रतिशत,
पं0
बंगाल
के
जंगीपुर,
मुर्सिदाबाद
और
रायगंज
में
इनकी
जनसंख्या
क्रमशः
60, 59
और
56
प्रतिशत
है।
असम
के
धुबरी
संसदीय
क्षेत्र
में
मुस्लिम
आवादी
56
फीसदी,
उत्तर
प्रदेश
के
रामपुर,
मुरादाबाद,
सहारनपुर
और
बिजनौर
में
क्रमशः
50, 41, 40
और
39
प्रतिशत
है।
एक
आकलन
के
अनुसार
पूरे
देश
में
30
प्रतिशत
से
अधिक
मुस्लिम
आवादी
वाले
कुल
35
संसदीय
क्षेत्र
हैं
जबकि
21
से
30
फीसदी
जनसंख्या
वाले
सीटों
की
संख्या
38
है
और
11
से
20
फीसदी
मुस्लिम
आवादी
वाले
लोकसभा
क्षेत्र
145
हैं।
वहीं
पांच
से
दस
प्रतिशत
वोटों
वाले
मुस्लिम
क्षेत्र
183
और
पांच
फीसदी
से
कम
आवादी
वाली
142
लोकसभा
सीटें
हैं।
हालांकि
चुनावी
इतिहास
बताता
है
कि
कभी-कभी
मुस्लिम
मतों
के
बिखरने
से
उन
दलों
को
भी
फायदा
पहुंचा
है,
जिन्हें
ये
आमतौर
पर
पसंद
नहीं
करते।
पिछले
लोकसभा
चुनाव
की
ही
यदि
बात
करें
तो
72
मुस्लिम
बाहुल्य
सीटों
में
से
सिर्फ
19
पर
ही
मुस्लिम
प्रत्याशियों
ने
जीत
दर्ज
की
थी,
जबकि
17
सीटों
पर
भाजपा
और
25
पर
कांग्रेस
को
विजय
मिली
थी।
देश
की
लोकसभा
सीटों
में
मुस्लिम
आवादी
का
प्रतिशत
मुस्लिम
आवादी
|
संसदीय
क्षेत्रों
की
संख्या
|
30
प्रतिशत
से
अधिक
|
35
|
21
से
30
प्रतिशत
|
38 |
11
से
20
प्रतिशत
|
145 |
05
से
10
प्रतिशत
|
183 |
05
प्रतिशत
से
कम
|
142 |
कुल
संसदीय
क्षेत्र
|
543 |
30
फीसदी
से
अधिक
मुस्लिम
आवादी
वाले
संसदीय
क्षेत्रों
की
संख्या
राज्य
|
सीटें
|
जम्मू-कश्मीर |
05 |
उत्तर
प्रदेश
|
08 |
बिहार
|
03 |
असम |
04 |
पं0
बंगाल
|
09 |
आंध्र
प्रदेश |
01 |
केरल
|
04 |
लक्ष्यद्वीप
|
01 |
|