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लोकसभा
चुनावः सिर्फ चेहरों की मार्केटिंग, मुद्दे
गायब |
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Tags: LOKSHABHA ELECTION 2014 |
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Publised
on : 06 April 2014 Time 21:08 |
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डा0
शक्ति कुमार पाण्डेय
जिस तरह से यत्र तत्र सर्वत्र होर्डिंग और
नित्यप्रति अखबारी विज्ञापनों की भरमार
दिखाई दे रही है इसमें कोई संशय नहीं कि
आगामी लोकसभा चुनाव मुद्दों पर नहीं अपितु
चेहरों की मार्केटिंग और ब्रॉण्ड प्रमोशन
के आधार लड़ा जायेगा। जैसे मल्टीनेशनल
कम्पनियाँ अपने उत्पादों की ब्राण्डिंग
करके उसकी मार्केटिंग का पूरा ताना बाना
खड़ा करती हैं वैसे ही आज सारे राजनैतिक दल
अपने कुछ प्रमुख नेताओं के चेहरों की
ब्राण्डिंग कर रहे हैं। ऐसे में इमेज
मैनेजमेण्ट, एडवर्टाइजिंग और पी0 आर0
कम्पनियों की तो बल्ले बल्ले है ही, मीडिया
व्यापारियों और कॉरपोरेट घरानों के लिये
भी यह स्थिति कम सन्तुष्टिवर्धक नहीं है।
चुनाव प्रचार अभियान के दरम्यान ‘पेड
न्यूज’ का भी लुका छिपा खेल चल रहा है। अब
तो पाठकों को समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और
टी0 वी0 चैनेलों से भी सावधान करने की
आवश्यकता महसूस होने लगी है। क्या पता,
पाठक जिस विश्लेषण को पढ या सुन रहा है और
जिसे वह पत्रकार की पैनी दृष्टि और समझ
मानकर आदर भाव से ग्रहण कर रहा है वह सब
कुछ भारी भरकम पैकेज के आधार पर तैयार की
गई सामग्री हो।
कुछ व्यापारी लोग जिनका राजनीति और
राजनैतिक चिन्तन से दूर दूर तक कोई वास्ता
नहीं है, जो मुम्बई, सूरत और अन्य
व्यावसायिक नगरों में अच्छा खासा व्यवसाय
खड़ा कर चुके हैं, आज अपना भाग्य आजमाने के
लिये पहले होर्डिंग के सहारे और अब लक्जरी
वाहनों का काफिला लेकर चुनाव क्षेत्र का
दौरा कर रहे हैं। पहले ये लोग टिकट पाने
के लिये थैलियाँ लेकर लखनऊ और दिल्ली के
चक्कर लगा रहे थे। कुछ को टिकट मिला तो
कुछ असफल रहे। जो असफल रहे वे छोटे मोटे
दलों और कुछ निर्दलीय रहकर ही अपना भाग्य
आजमा रहे हैं। ऐसे लोग भाषण देना भी सीख
रहे हैं, हालाँकि उनका न तो मुद्दों से
कोई वास्ता नहीं होता और न ही उन्हें
राजनीति की कोई समझ होती है। उनका
वाक्कौशल कुल मिलाकर लोगों के लिये
मनोरंजन से अधिक कुछ नहीं होता।
ऐसी स्थिति में लोकतंत्र केवल बुद्धिविलास
की बात रह गई है। धनबल और बाहुबल के
प्रयोग से चुनाव जीतना, तथा जातियों,
उपजातियों, मजहबों, सम्प्रदायों के नाम पर
समाज को बाँटकर येन केन प्रकारेण वोट
हासिल करना ही परम्परागत राजनीति का मानक
बन चुका है। सत्तारूढ़ दलों में पूरे समय
यही होड़ मची रही कि कौन अधिक से अधिक वजीफा,
पेंशन, अनुदान, अनाज, मध्यान्ह भोजन और
सब्सिडी आदि बाँट सकता है। उन्हें लगा कि
इस प्रकार पैसा और सुविधायें बाँटकर
मतदाताओं को लुभाया जा सकता है, और आम
अशिक्षित मतदाता प्रभावित भी हो जाता है।
लेकिन समाज के प्रबुद्ध जनों और युवा पीढी
के लोगों में नैराश्य और हताशा है। सच्चा
लोकतंत्र और समाजवाद कैसे स्थापित हो यही
सबकी चिन्ता का विषय है।
ऐसे वातावरण में वैकल्पिक राजनीति का जो
प्रयोग अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी
के नाम पर किया उसको लेकर लोगों में
उत्साह स्वाभाविक था। लेकिन केजरीवाल ने
दिल्ली चुनाव में 28 सीटें प्राप्त करने
के बाद जिस प्रकार का हल्कापन सरकार बनाने,
चलाने और गिराने में प्रदर्शित किया उससे
उनके समर्थकों में निराशा व्याप्त हो गई।
इसी बीच अरविन्द के गुरू अन्ना हजारे ने
घोषित कर दिया कि ईमानदारी व सरलतापूर्ण
जीवन शैली के कारण वे ममता दीदी के
प्रशंसक हैं और चूँकि ममता की पार्टी ने
सामाजिक आर्थिक विकास के लिये अन्नाजी
द्वारा सुझाये गये सत्रह-सूत्री फार्मूले
पर सहमति जता दी है इसलिये वे उनकी तृणमूल
काँग्रेस का समर्थन कर दिया और बाद में वे
उससे विमुख हो गये। इससे उनकी विश्वसनीयता
कम हुई। इतना ही नहीं उन्होंने अरविन्द
केजरीवाल को झूठा और सत्तालोलुप घोषित कर
दिया। अन्ना जी की इस उद्घोषणा के बाद आम
आदमी पार्टी के नेता सकते में आ गये हैं
और इस उभरती हुयी राजनैतिक ताकत का भविष्य
संशय में है।
भारतीय जनता पार्टी यू0 पी0 में पिछले
विधानसभा चुनावों में तगड़ा झटका खाने के
बाद धीरे धीरे सम्भलने का प्रयास कर रही
है, और नरेद्र मोदी की रैलियों से निश्चय
ही पार्टी की दयनीय दशा को सुधारने में बड़ा
योगदान किया है। मोदी भ्रष्टाचार, अपराध
और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिये यू0 पी0
ए0 के घटक दलों और समाजवादी पार्टी तथा
बसपा जैसे दलों पर जमकर निशाना साध रहे
हैं। उन्होंने लगातार इस बात पर जोर दिया
है कि इन पार्टियों द्वारा चलायी जा रही
सरकारों द्वारा किये जा रहे राजनैतिक
अपराधीकरण तथा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण नीति
से जनता में निरन्तर निराशा का भाव बढ़ रहा
है। उनका आहवान है कि ऐसे वातावरण में
सुशासन और सुराज को लाने के लिये तथा
मँहगाई और आतंकवाद के खातमे के लिये भाजपा
को जिताकर केन्द्र में उसकी सरकार बनाना
जरूरी है।
उत्तरप्रदेश में बसपा और सपा सरकारों के
समय में शासन प्रशासन में व्याप्त
भ्रष्टाचार से आम आदमी परेशान है। स्थिति
में सुधार के कोई संकेत नहीं हैं।
काँग्रेस पार्टी तो बुरी तरह आरोपों से
घिरी है, ऐसे में उसकी स्थिति प्रदेश में
बदतर ही होती लग रही है। परिस्थिति का लाभ
उठाने के लिये भाजपा ने बड़ी उम्मीदों के
साथ उत्तर प्रदेश में पूरे दमखम के साथ
चुनाव लड़ने की तैयारी की है। प्रदेश में
पार्टी की खोई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिये
भाजपा के नेता पूरी ताकत झोंक रहे हैं। आज
जिस तरह से मोदी के नाम की चर्चा लोगों की
जुबान पर है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा
कि मोदी के कारण लोगों के मन में भाजपा के
प्रति आकर्षण बढ़ा है। नरेन्द्र मोदी देश
के एक बड़े लोकप्रिय नेता साबित हुये हैं।
भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रदेश में
व्याप्त भ्रष्टाचार, मुस्लिम तुष्टीकरण की
नीति, बढ़ता अपराध तथा मँहगाई ऐसे मुख्य
बिन्दु हैं जिनको लेकर हम जनता के बीच
जायेंगे। और लोगों को बतायेंगे कि देश व
प्रदेश को बदहाली से बचाने के लिये भाजपा
के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। भाजपा
के सामने कठिनाई केवल यह है कि टिकट वितरण
में जो धांधली हुई उसके कारण कार्यकर्ताओं
में व्यापक असन्तोष है, और भाजपा का तेजी
से चढता हुआ ग्राफ अचानक थम सा गया है।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी
प्रदेश में अपना जनाधार बचाने के लिये
संघर्षरत हैं। इन पार्टियों के कुशासन को
लोगों ने इतना नजदीक से देखा परखा है कि
इन्हें स्वयं भी आम आदमी से कोई उम्मीद नहीं
दिखती इसलिये ये राजनैतिक दल अपने जातीय
जनाधार को ही मजबूत करने में लगे हैं। युवा
पीढी मे इन पार्टियों के प्रति जो नफरत का
भाव दिख रहा है वह अगर मतदान में व्यक्त
हुआ तो मुलायम मायावती सराखों के लिये हाथ
मलने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।
काँग्रेस पार्टी राहुल के अधकचरे नेतृत्व
से क्या हासिल कर पायेगी यह ता समय ही
बतायेगा लेकिन फिलहाल मँहगाई, भ्रष्टाचार
और आतंकवाद जैसे मुद्दे इस सबसे पुराने
राजनैतिक दल के लिये भारी पड रहे हैं, ऐसा
साफ दिखता है, बावजूद इसके कि ब्राण्ड
प्रमोशन और इमेज मैनेजमेण्ट के नाम पर यह
पार्टी मोदी से कम खर्च नहीं कर रही है।
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News
source: UP Samachar Sewa |
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