चिंतित करती कोरोना संक्रमण से आगरा के श्रमजीवी पत्रकार की मृत्यु
लखनऊ, 08 मई 2020> (उत्तर प्रदेश समाचार सेवा)।
कोरोना वायरस ने प्रदेश में श्रमजीवी पत्रकार की भी जान ले ली है। आगरा में दैनिक जागरण के उप समाचार संपादक पंकज कुलश्रेष्ठ की सात मई को चिकित्सालय में मृत्यु हो गई। वह आगरा के एसएन मेडिकल कालेज के चिकित्सालय में भर्ती थे। प्रदेश में कार्य क्षेत्र में सक्रिय किसी श्रमजीवी पत्रकार की पहली मौत है, जोकि
समूचे मीडिया जगत के माथे पर चिंता की लकीर खींच रही है। स्व. पंकज कुलश्रेष्ठ के निधन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह, महामंत्री संगठन सुनील बंसल और कांग्रेस महासचिव प्रियंका बढेरा, सपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव समेत कई राजनेताओं ने चिंता व्यक्त की है और श्रद्धांजलि अर्पित की है।
कई सवाल छोड़ गई पंकज कुलश्रेष्ठ की मृत्यु
कोरोना संकट के इस काल में सभी की संवेदनाएं पंकज कुलश्रेष्ठ के परिवार के साथ हैं। लेकिन, पंकज का असामयिक निधन कई सवाल छोड़ गया है। जिनका उत्तर समाचार पत्र संस्थानों और सरकार दोनों को ढूंढना होगा। पंकज कुलश्रेष्ठ मात्र 50 साल की उम्र में ही इस दुनिया को छोड़ कर
चले गए। इतनी कम उम्र में एक पत्रकार का जाना और वह भी ऐसी बीमारी से जो दुनिया भर कहर बरपा रही है, अत्यधिक पीड़ादायक और चिंताजनक है।
उत्तर प्रदेश में सरक्रार द्वारा कोविड़-19 के उपचार के भरसक प्रयास किये जा रहे हैं।
देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश में कोविड-19 का संक्रमण काफी कम है। लेकिन, आगरा में इसे काबू में करने में सफलता नहीं मिल रही है।
असुरक्षित पत्रकारः कोरोना वारियर क्यों नहीं
?
कोरोना के कारण पत्रकार की पहली मौत ने प्रदेश के अन्य पत्रकारों के मन में कई तरह की आशंकाएं और असुरक्षा की भावना को भर दिया है। कोरोना का कहर शुरु
होने के साथ ही पत्रकार अपने काम पर डट गए थे। शासन, प्रशासन, पुलिस और चिकित्साकर्मियों के साथ ही पत्रकारों ने सही और
विश्वश्नीय सूचनाएं पहुंचाने के लिए बगैर किसी भय के रिपोर्टिंग की है। लेकिन, सवाल उठता है कि जब सभी अन्य को कोरोना वारियर घोषित करके उनके लिए पचास लाख
रुपये के बीमा की व्यवस्था कर दी गई तो इससे श्रमजीवी पत्रकार ही वंचित क्यों रखे गए? क्या उनकी जान की कोई कीमत नहीं है, क्या उनके परिवार के दायित्व की चिंता
सरकार या व्यवस्था को नहीं करनी चाहिए। विभिन्न पत्रकार संगठनों की मांग के बावजूद अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से कोरोना की लड़ाई में शहीद हुए पत्रकार के परिवार को कोई आर्धिक सहायता की घोषणा नहीं की गई
है।
आगरा प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग में तालमेल का अभाव
आगरा के पत्रकार साथियों से इस दुखद घटना पर हुई चर्चा के बाद यह बात भी सामने आयी कि कहीं न कहीं पत्रकार कुलश्रेष्ठ की मौत के लिए स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग में तालमेल का अभाव भी
जिम्मेदार रहा। पत्रकारों का कहना है कि पंकज की जांच रिपोर्ट आने में देरी हुई, इसके
बाद जब वह रिपोर्ट पाजिटिव आई तो तत्काल उन्हें चिकित्सालय में भर्ती भी नहीं किया जा सका। एक पत्रकार साथी का कहना है कि एस एन मेडिकल कालेज के कोविड चिकित्सालय में बेड खाली नहीं होने के कारण भर्ती करने में दो दिन की देरी हुई। इससे पूरे घटनाक्रम में सबसे शर्मनाक जो बात सामने आयी, वह यह कि कोविड
चिकित्सालय के एक स्वास्थ्य कर्मी ने पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत पर बयान दिया कि उनकी मृत्यु सांस की बीमारी से हुई है। यह जिम्मेदारी से बचने का बेहद घटिया तरीका है। इस बयान को आगरा के ही एक अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने प्रकाशित भी कर दिया। हम सभी जानते हैं कि कोरोना के संक्रमण में अंतिम चरण फेफड़े के
संक्रमण का होता है। इस संक्रमण में सांस लेने की तकलीफ होती है। यही कोरोना संक्रमण की गंभीर स्थिति होती है, जब रोगी को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। इसलिए सांस की दिक्कत अंतिम समय होना कोरोना का परिणाम है। ऐसे में कैसे उक्त चिकित्साकर्मी
ने यह बयान दे दिया, आश्चर्यनजक है।
यह भी पता चला है कि आगरा में कोविड के इलाज के लिए केवल एक ही सरकारी अस्पताल है, वह मेडिकल कालेज में ही है। आगरा में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लापरवाही की चर्चाएं शुरु से होती रही हैं। चाहे वह क्वारेंटाइन सेंटर में लोगों को अमानवीय ढंग से रखने तथा खाना देने की
बात हो या मेयर नवीन जैन द्वारा लिखा गया शासन को पत्र।
आगरा को बचाने को तत्काल उपाय करें मुख्यमंत्री
कुल मिलाकर कहीं न कहीं व्यवस्था में कमी तो है, तभी कोरोना संक्रमण में आगरा प्रदेश में सबसे ऊपर है। शासन स्तर से व्यवस्था करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। लेकिन, आगरा में संक्रमण नहीं रुक पा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आगरा की स्थिति पर अलग से
समीक्षा बैठक करनी चाहिए। आगरा को भारत का बुहान बनने से रोकने के लिए
तत्काल आपातकालीन उपायों की जरूरत है। यहां सबसे पहले कोविड के लेबिल तीन चिकित्सालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। इसके लिए लखनऊ माडल को अपनाया जा सकता है। जहां सभी जिला और संयुक्त चिकित्सालयों को कोविड अस्पताल के रूप में परिर्वर्तित किया
गया है। साथ ही अगर मरीजों की संख्या बढ़ रही है और आगरा में समुचित व्यवस्था नहीं दे पा रहे हैं तो निजी चिकित्सालयों को अधिग्रहीत करके वहां व्यवस्था की जाए।
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