लखनऊ,
26 अक्टूबर, 2016। ( उ.प्र.समाचार सेवा)।
72 घटे तक चले समाजवादी परिवार के संग्राम में यूं
तो कोई खास अर्थ नहीं निकला। सब कुछ ज्यों का त्यौ ही
है। लेकिन इस पूरे घटना क्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव पहले की तुलना में और मजबूत होकर उभरे। जबकि प्रदेश
अध्यक्ष शिवपाल यादव को अपने चार साथियों के साथ
मंत्रिपद गवाना पडा। वहीं पार्टी के पूर्व महासचिव राम
गोपाल यादव को खासा नुकसान हुआ अब उन्हें अपना अस्त्तिव
बचाने का संकट है।
मालूम हो कि गत रविवार को जब सपा परिवार में संग्राम
आरंभ हुआ तो लग रहा था कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कमजोर
हो जायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि अखिलेश यादव को
इस पूरे घटनाक्रम में कई लाभ मिला। अखिलेश का सरकार पर
अब पूरी तरह से नियंत्रण है. और सपा के लगभग सारे विधायक
अखिलेश के साथ हैं। मंत्रिमंडल उनके साथ खड़ा है. अखिलेश
के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा जुड़ गया
है। जो उनके एक इशारे पर नए राजनीतिक मंच के साथ उनको
मजबूत करने में जुट सकता है।.
अखिलेश ने कुनबे और बाहरियों के हमलों के कारण आज समाज
के हर वर्ग की सहानुभूति हासिल कर रहा है। इतना नहीं
नहीं हर व्यक्ति अखिलेश को आशा भरी नजरों से देख रहा है.
कुछ महीने पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी. अखिलेश को अपने
व्यक्तित्व के साथ साथ पूरे कुनबे की छवि को भी ढोना पड़
रहा था. अब ऐसा नहीं है.। उसी कुनबे के होते हुए भी
अखिलेश आज एक अलग व्यक्तित्व और बेहतर विकल्प के तौर पर
देखे जा रहे हैं। अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव
सहित चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया आज भी उनकी
वापसी नहीं की। इसे लेकर उनपर कोई दबाव भी नहीं है।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने मंच से भले ही अपने सीएम
पुत्र अखिलेश यादव को डाटा हो लेकिन अंदर ही अंदर उनका
समर्थन किया है। यदि नहीं तो शिवपाल सहित जिन चार
मंत्रियों की बर्खास्त किया गया उनकी वापसी के लिए क्यों
नहीं कहा। इतना ही नहीं उन्हें सीएम की कुर्सी से हटाने
की कवायद पर भी विराम लग गया। इसके अलावा सपा को यदि
आगामी विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलता है अखिलेश यादव ही
दोबारा सीएम बनेंगे।
इस पूरे घटनाक्रम में सर्वाधिक नुकसान प्रदेश अध्यक्ष
शिवपाल यादव को हुआ। उन्हें केवल प्रदेश अध्यक्ष की
कुर्सी ही मिली। जिस पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का
पूरा दखल रहेगा। समय समय पर इस पर सीएम अखिलेश यादव भी
दखल देंगे। उन्हें एक महीने में दो बार मंत्रिमण्डल की
कुर्सी गवानी पडी। अब दोबारा मंत्रिमण्डल में वापसी की
सभावना कम नजर आ रही है। क्योंकि चुनाव सिर पर है।
जनाधार बरकरार रखने के लिए वह वह अब रजत जयंती समारोह पर
पूरा फोकस दे रहे है। ऐसे तब है जब शिवपाल यादव यह बराबर
कह रहे है कि जो आदेश नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव का
होगा उसका हम पालन करेंगे। इसी तरह पूर्व महासचिव राम
गोपाल यादव को सर्वाधिक नुकसान हुआ। उन्हें छह साल के
लिए पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पडा। ऐसे में राम
गोपाल के समक्ष अपना राजनीतिक जीवन बचाने का संकट खडा हो
गया है। .
हालत यह है कि समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के
बाद दूसरा सबसे बड़ा नाम अखिलेश यादव का हो गया है।
मुलायम के आर्शिवाद से अखिलेश राजनीति में एक मजबूत,
ईमानदार, कुशल शासक और साफ छवि का नेता बनकर उभरे है।
कुल मिलकर सपा संग्राम में अखिलेश को और मजबूत करने की
पटकथा ही लिखी गयी।