परिंदा भी पर नहीं मार सकता
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री
मुलायम सिंह यादव ने घोषित किया कि वे
30 अक्तूबर को अयोध्या में कारसेवा
नहीं होने देंगे। अयोध्या की ओर जाने
वाली सभी सड़कें बंद कर दी गयीं और
सभी रेलगाड़ियां रद्द कर दी गयीं।
श्री रामजन्मभूमि को पुलिस और
अर्धसैनिक बलों ने घेर लिया और
अयोध्या को छावनी में बदल दिया गया।
मुख्यमंत्री ने अहंकारपूर्वक घोषणा की
कि उनकी इजाजत के बिना अयोध्या में
कारसेवक तो क्या, परिंदा भी पर नहीं
मार सकेगा।
कारसेवकों को रोकने के लिये उत्तर
प्रदेश की पुलिस और अर्धसैनिक बलों के
अतिरिक्त केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा
बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, रेलवे
सुरक्षा बल तथा केन्द्रीय रिजर्व
पुलिस के 1 लाख 80 हजार सशस्त्र जवान
भी केन्द्र से मंगा कर तैनात किये गये
थे। उत्तर प्रदेश से मिलने वाली मध्य
प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं पर
सड़कों में 10-10 फीट चौड़ी खाइयां
खोद दी गयीं थीं। इटावा में चंबल नदी
के पुल पर दस फुट ऊंची और तीन फीट
चौड़ी कंक्रीट की दीवार ही खड़ी कर दी
गयी थी। अनेक स्थानों पर लोहे की
रेलिंग लगा कर उनमें करंट प्रवाहित कर
दिया गया था।
इतनी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बाद
दुनियां भर से आये पत्रकारों को भी यह
विश्वास हो गया था कि कारसेवा असंभव
है। 29 अक्तूबर को अज्ञात स्थान से जब
श्री अशोक सिंहल का बयान जारी हुआ
–“पूर्व
घोषणा के अनुसार 30 अक्तूबर को ठीक
12.30 बजे कारसेवा होगी”,
तो सहसा कोई भी इस पर विश्वास न कर
सका।
सत्ता का दर्प चूर हुआ
देवोत्थान
एकादशी की भोर। अयोध्या नगरी में
कर्फ्यू लागू था, सुरक्षा बलों को
देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गये
थे। नगर की सड़कों पर सशस्त्र जवानों
के अतिरिक्त कोई नजर नहीं आता। सच
में, परिन्दा पर न मार सके, ऐसी ही
स्थिति थी।
प्रातः नौ बजे।
अचानक मणिरामदास छावनी के द्वार खुले
और पूज्य वामदेव जी और महंत
नृत्यगोपाल दास जी बाहर निकले। ठीक
इसी समय वाल्मीकि मंदिर का कपाट खोल
कर विहिप के महामंत्री श्री अशोक
सिंहल प्रकट हुए। उनके साथ थे उ.प्र.
पुलिस के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक
श्री श्रीशचन्द्र दीक्षित।
उन्हें देख कर सभी चौंक गये। एक
सप्ताह से आन्दोलन के इन नेताओं की
तलाश में पुलिस ने अयोध्या का
चप्पा-चप्पा छान मारा था लेकिन उनकी
हवा भी न पा सकी थी। आश्चर्यचकित
पत्रकार भी हुए थे। वे सोच रहे थे कि
यह लोग अकेले पहुंचने में सफल भी हो
गये तो इतनी सुरक्षा व्यवस्था के
सामने क्या कर सकेंगे। लेकिन अभी तो
रोमांच का क्षण आना बाकी था।
इन नेताओं ने जयश्री राम का उदघोष कर
जैसे ही हनुमान गढ़ी की ओर कदम
बढ़ाये, घरों के दरवाजे खुलने लगे और
हर घर से कारसेवक पुरुषों, महिलाओं और
बच्चों की टोलियां निकलने लगीं। देखते
ही देखते भगवा पटके सर से बांधे
हजारों लोगों का काफिला बढ़ चला। सबसे
आगे संत, फिर महिलायें और बच्चे, सबसे
अंत में पुरुष। निहत्थे, निर्भीक
कारसेवक रामनाम का संकीर्तन करते श्री
राम जन्मस्थान की ओर आगे बढ़ रहे थे।
प्रशासन हतप्रभ था। परिंदा भी पर न
मार सके, ऐसी सुरक्षा का दावा करने
वालों के होश उड़ गये।
हनुमान गढ़ी के पास पहुंचते ही
बौखलाये प्रशासन ने निहत्थे कारसेवकों
पर लाठी बरसाना प्रारंभ कर दिया। श्री
अशोक सिंहल के सिर पर लाठी का प्रहार
हुआ, रक्त की धार बह चली। उनके मुख से
निकले जय श्री राम के घोष ने
कारसेवकों के पौरुष को जगा दिया। 64
वर्षीय श्रीश चन्द्र दीक्षित ढ़ांचे
के बाहर बनी आठ फीट ऊंची दीवार और उस
पर लगी कंटीले तारों की बाड़ पार कर
कब और कैसे रामलला के सामने जा
पहुंचे, वे भी नहीं समझ सके।
उनके साथ ही सैकड़ों कारसेवक भी
प्रांगण के अंदर थे। देखते ही देखते
वे सभी बन्दरों की भांति ढ़ांचे के
गुम्बद पर चढ़ गये। कोलकाता के
रामकुमार और शरद कोठारी ने बीच में
स्थित मुख्य गुम्बद पर हिन्दू राष्ट्र
का प्रतीक भगवा ध्वज फहरा दिया।
फैजाबाद के एक नौजवान और एक साधु
महाराज ने शेष दोनों गुम्बदों पर भी
ध्वज लगा दिया। यह दोनों लोग ही
गुम्बद से फिसल कर नीचे गिरे और
रामकाज में बलिदान हो गये। उस रात
अयोध्या सहित साकेत में
अभूतपूर्व
दीवाली मनायी गयी।
यह समाचार सुनते ही कि विवादित ढ़ांचे
पर कारसेवकों का कब्जा हो गया है,
सुरक्षा के अहंकारपूर्ण दावे करने
वाले मुख्यमंत्री मुलायम सिंह स्तब्ध
रह गये। दूसरी ओर बलिदानी कारसेवकों
के शोक तथा उनके शवों के अंतिम
संस्कार के लिये 31 अक्तूबर और 01
नवम्बर को कारसेवा बन्द रही। 02
नवम्बर को रामदर्शन कर कारसेवकों के
वापस जाने की घोषणा की गयी।
खून की होली
अभी दो दिन पहले ही अयोध्या ने दीवाली
मनायी थी। कौन जानता था कि महाकाल की
इच्छा होली की है, वह भी खून की होली।
आज कारसेवक रामलला के दर्शन कर
अपने-अपने घरों को लौटने के लिये
तैयार थे। प्रातः 11 बजे दिगम्बरी
अखाड़े से परमहंस रामचन्द्र दास,
मणिराम छावनी से महंत नृत्यगोपाल दास
और सरयू के तट से बजरंग दल के संयोजक
श्री विनय कटियार तथा श्रंगारहाट से
सुश्री उमा भारती के नेतृत्व में
कारसेवकों के जत्थे राम जन्म भूमि की
ओर बढ़े।
अपमान की आग में जल रहे मुख्यमंत्री
ने प्रतिशोध लेने की ठान ली थी। विनय
कटियार और उमा भारती के नेतृत्व में
चल रहे निहत्थे कारसेवकों पर बर्बर
लाठीचार्ज किया गया। दिगम्बरी अखाड़े
की ओर से परमहंस रामचन्द्र दास के
नेतृत्व में आ रहे काफिले पर पीछे से
अश्रुगैस के गोले फेंके गये और
कारसेवक कुछ समझ पाते इससे पहले ही
बिना किसी चेतावनी के गोलियों की
वर्षा होने लगी।
कारसेवकों के शरीर जयश्री राम के
उच्चारण के साथ कुछ क्षण तड़पते और
फिर शांत हो जाते।
30 अक्तूबर को मुख्य गुंबद पर भगवा
फहराने वाले शरद कोठारी को भीड़ में
से खोज कर गोली मारी गयी। उसका छोटा
भाई रामकुमार कोठारी जब उसे बचाने के
लिये आगे बढ़ा तो उसे भी गोलियों से
भून दिया गया। अपने माता-पिता के यह
दो ही पुत्र थे। दोनों रामकाज में
समर्पित हो गये। मां की गोद सूनी हो
गयी।
अस्थिकलश
बलिदानी कारसेवकों के अस्थिकलशों को
देश भर में ले जाया गया। स्थान-स्थान
पर उनका भावपूर्ण स्मरण कर नागरिकों
ने उन्हें श्रद्धा-सुमन चढ़ाये। 1991
की मकर संक्रांति को माघमेला के अवसर
पर उनकी अस्थियां प्रयागराज संगम में
विसर्जित कर दी गयी। कारसेवकों के इस
बलिदान ने मन्दिर निर्माण के संकल्प
को और दृढ़ कर दिया।
(समस्त तथ्य साभार विहिप)
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