|
आलेख /
रवीन्द्र अग्रवाल
Pubilsed on Dated:
2010-12-15,Tme: 22:00 ist, Upload on Dated
: 2010-12-15, Time: 22:10 ist
Article / Unicode font
खबरों
में मिलावट है पाठकों से धोखाधड़ी
·
डा.
रवीन्द्र अग्रवाल
नीरा राडिया टेप
प्रकरण में जो टेप अब तक उजागर हुए हैं उनसे जाहिर है कि
कुछ ख्यातिनाम पत्रकार इस कार्पोरेट लॉबिस्ट की जी-हुजूरी
में जुटे रहने में ही अपनी शान समझते थे। इस कार्पोरेट
लॉबिस्ट के लिए बड़े कहे जाने वाले अखबारों की औकात किसी
छुटभइयै से ज्यादा नहीं है। इस प्रकरण की तमाम चर्चाओं में
कुछ महत्वपूर्ण सवालों की अनदेखी हो रही है। वह क्या कारण
हैं कि एक कार्पोरेट लॉबिस्ट इतना प्रभावशाली हो जाता है
कि वह यह डिक्टेट करने लगे कि किस अखबार में कौन सम्पादक
बनेगा और कौन सम्पादक - रिपोर्टर क्या खबर लिखेगा और उस
खबर का रुख क्या होगा? यदि इस लॉबिस्ट की बात कोई पत्रकार
नहीं मानता तो उसे सबक सिखा दिया जाता है। और तो और उसकी
बात न मानने पर देश की प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी पीटीआई उसके
निशाने पर आ जाती है।
पीटीआई उसके दबाव में क्यों नहीं आई जबकि
बड़े कहे जाने वाले अखबार व टीवी चैनल उसके सामने नतमस्तक
दिखे? यहां यह पूछा जाना भी महत्वपूर्ण है कि मीडिया किसके
प्रति जवाबदेह है? अपने पाठकों के प्रति या एक लॉबिस्ट के
प्रति?राडिया टेप उजागर होने से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि
मीडिया के एक वर्ग ने अपने उन पाठकों के प्रति जिम्मेदारी
बिल्कुल नहीं निभाई जिनकी पाठक संख्या या टीआरपी के आधार
पर वह स्वयं को बड़ा बताता है। मीडिया का यह व्यवहार पाठकों
के प्रति धोखाधड़ी नहीं करार दिया जाना चाहिए क्या?
पाठकों के साथ यह धोखाधड़ी किस लालच में की गई?
इसका जवाब राडिया की टाटा से हुई बातचीत के उस टेप से मिलता
है जिसमें राडिया एक बड़े अखबार के मालिक से हुई बातचीत का
हवाला देते हुए टाटा से कहती है - वे कहते हैं कि अगर हमने
एक भी खबर खिलाफ छापी तो विज्ञापन मिलना बंद हो जाएंगे।
मैंने कहा कि ठीक है तुम उनसे विज्ञापन लेते रहो और मैं
दूसरों से बंद करवा दूंगी। आखिर विज्ञापन दिए ही इसलिए जाते
हैं कि खिलाफ कुछ नहीं छपे और अपना मीडिया इतना लालची है
कि तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है।
क्या
विज्ञापन ही मीडिया का माई-बाप हो गया? पिछले कुछ वर्षों
से मीडिया के बाजार की चाल चलने की बात कही जाने लगी है।
यह बाजार क्या है? राडिया की टाटा से हुई बात से स्पष्ट है
कि यहां बाजार का संदर्भ अखबार की बिक्री और पाठकों से नहीं
बल्कि विज्ञापन के बाजार से है और इस बाजार को नियंत्रित
करते हैं कार्पोरेट लॉबिस्ट। मीडिया के व्यवहार से स्पष्ट
है कि उसने पाठक की अपेक्षा कॉर्पोरेट लॉबिस्ट को महत्व
दिया है। उसने मान लिया है कि पाठक नाम के प्राणी को तो
करीब- करीब मुफ्त में अखबार देकर भर्मया जा सकता है परन्तु
कार्पोरेट लॉबिस्ट को चाहिए उसके मन माफिक खबरें। मीडिया
ने यही किया और बड़े कहे जाने वाले अखबार जुट गए एक-दूसरे
को पछाड़ने के लिए प्राइस वार में । कम से कम दाम,
लागत मूल्य का दस प्रतिशत से भी कम, में पाठक को अखबार देने
की होड़ मची है मीडिया में। अब इसकी भरपाई कहीं न कहीं से
तो होगी ही।
पाठक ने
समझा इससे उसे क्या फर्क पड़ता है? जितना वह अखबार पर खर्च
करता है उससे कहीं ज्यादा के तो उसे गिफ्ट ही मिल जाते हैं
और अखबार की जो रद्दी बिकती है वह अलग।पाठक की सोच रद्दी
तक सीमित थी परन्तु मिडिया के नाम पर विशेषाधिकार चाहने
वाले घरानों ने अखबारों को सही मायनों में रद्दी बना दिया।
तभी तो आज 2-जी स्पेक्ट्म घोटाले पर चर्चा होने के स्थान
पर मिडिया के कुछ लोगों की हरकतें चर्चा में हैं और जिस पर
पूरे मीडिया को शर्मसार होना पड़ रहा है। शर्म अगर नहीं आ
रही है तो सिर्फ उन्हें जो अपनी हरकतों के कारण चर्चा में
आए। वास्तव में प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए था कि किसी
व्यक्ति को मंत्री बनाने और मंत्रालय देने का विशेषाधिकार
प्रधानमंत्री का है या एक कार्पोरेट लॉबिस्ट का काम।
राडिया
टेप का उजागर होना पूरे मीडिया जगत और पाठकों के लिए एक
शुभ समय की शुरुवात मानी जानी चाहिए क्याेंकि इससे
कार्पोरेट लॉबिस्ट और दिल्ली-मुम्बई के बड़े कहे जाने वाले
कुछ मीडिया घरानों का अपवित्र गठजोड़ और इनके द्वारा किया
जा रहा छल-कपट जल्दी उजागर हो गया। मान लीजिए कोई विदेशी
लॉबिस्ट इस तरह मिडिया को अपने इशारों पर नचाने लगता तो
क्या होता इस देश का?
देश के
शेष मीडिया के लिए स्पष्ट संकेत हैं कि वह पाठकों को सही
खबरें दे और प्रोडेक्ट, क्षमा करें आज मीडिया की भाषा
में अखबार को यही कहा जा रहा है, की पूरी लागत पाठक से
लें। विज्ञापन के भरोसे मुफ्त में अखबार बांटोगे तो वही
हश्र होगा जो राडिया प्रकरण में फंसे मीडिया का हो रहा है।
विश्वसनीयता दांव पर लगा कर अखबार चलाना आत्म हत्या करने
से कम नहीं।पाठकों को भी सोचना होगा कि उन्हें मुफ्त में
ऐसी मिलावटी खबरें चाहिएं जो किसी के निहित स्वार्थों को
पूरा करती हों या पूरा पैसा देकर वे सही खबरें, जो आपका
दु:ख-दर्द बांटे। जब आप मिलावटी दूध और मिलावटी मिठाई
खरीदने को तैयार नहीं हैं तो फिर मिलावटी खबरें क्यों? सही
खबरें चाहिएं तो अखबार का पूरा मूल्य चुकाइये। सस्ता अखबार
चाहिए तो मिलावटी खबरें ही मिलेंगी फिर इस पर प्रश्न न
करिये कि नीरा राडिया ने क्या कहा और बरखा दत्त ने क्या
किया। फैसला पाठकों को करना है। मिलावटी खबरें छापने वाले
अखबारों को खरीदना बंद कर देंगे तो कॉर्पोरेट दलालों और
वीर संघवियों का धंधा स्वयं चौपट हो जाएगा।
डॉ
रवीन्द्र अग्रवाल
Article / Kruti dev font
[kcjksa esa feykoV gS ikBdksa ls /kks[kk/kM+h
MkW johUnz vxzoky
Ukhjk jkfM;k Vsi
izdj.k esa tks Vsi vc rd mtkxj gq, gSa muls tkfgj gS fd
dqN [;kfruke i=dkj bl dkiksZjsV ykWfcLV dh th&gqtwjh esa
tqVs jgus esa gh viuh 'kku le>rs FksA bl dkiksZjsV
ykWfcLV ds fy, cM+s dgs tkus okys v[kckjksa dh vkSdkr
fdlh NqVHkb;S ls T;knk ugha gSA bl izdj.k dh reke
ppkZvksa esa dqN egRoiw.kZ lokyksa dh vuns[kh gks jgh
gSA og D;k dkj.k gSa fd ,d dkiksZjsV ykWfcLV bruk
izHkko'kkyh gks tkrk gS fd og ;g fMDVsV djus yxs fd fdl
v[kckj esa dkSu lEiknd cusxk vkSj dkSu lEiknd & fjiksVZj
D;k [kcj fy[ksxk vkSj ml [kcj dk #[k D;k gksxk\ ;fn bl
ykWfcLV dh ckr dksbZ i=dkj ugha ekurk rks mls lcd fl[kk
fn;k tkrk gSA vkSj rks vkSj mldh ckr u ekuus ij ns'k dh
izfrf"Br U;wt ,tsalh ihVhvkbZ mlds fu'kkus ij vk tkrh
gSA
ihVhvkbZ mlds ncko
esa D;ksa ugha vkbZ tcfd cM+s dgs tkus okys v[kckj o
Vhoh pSuy mlds lkeus ureLrd fn[ks\ ;gka ;g iwNk tkuk Hkh
egRoiw.kZ gS fd ehfM;k fdlds izfr tokcnsg gS\ vius
ikBdksa ds izfr ;k ,d ykWfCkLV ds izfr\jkfM;k Vsi mtkxj
gksus ls ,d ckr rks Li"V gks xbZ fd ehfM;k ds ,d oxZ us
vius mu ikBdksa ds izfr ftEesnkjh fcYdqy ugha fuHkkbZ
ftudh ikBd la[;k ;k Vhvkjih ds vk/kkj ij og Lo;a dks
cM+k crkrk gSA ehfM;k dk ;g O;ogkj ikBdksa ds izfr /kks[kk/kM+h
ugha djkj fn;k tkuk pkfg, D;k\
ikBdksa ds lkFk ;g /kks[kk/kM+h fdl ykyp esa dh
xbZ\ bldk tokc jkfM;k dh VkVk ls gqbZ ckrphr ds ml Vsi
ls feyrk gS ftlesa jkfM;k ,d cM+s v[kckj ds ekfyd ls
gqbZ ckrphr dk gokyk nsrs gq, VkVk ls dgrh gS & os dgrs
gSa fd vxj geus ,d Hkh [kcj f[kykQ Nkih rks foKkiu feyuk
can gks tk,axsA eSaus dgk fd Bhd gS rqe muls foKkiu ysrs
jgks vkSj eSa nwljksa ls can djok nwaxhA vkf[kj foKkiu
fn, gh blfy, tkrs gSa fd f[kykQ dqN ugha Nis vkSj viuk
ehfM;k bruk ykyph gS fd rqEgsa crkus dh t:jr ugha gSA
D;k foKkiu gh ehfM;k dk ekbZ&cki gks x;k\ fiNys dqN
o"kksZa ls ehfM;k ds cktkj dh pky pyus dh ckr dgh tkus
yxh gSA ;g cktkj D;k gS\ jkfM;k dh VkVk ls gqbZ ckr ls
Li"V gS fd ;gka cktkj dk lanHkZ v[kckj dh fcdzh vkSj
ikBdksa ls ugha cfYd foKkiu ds cktkj ls gS vkSj bl cktkj
dks fu;af=r djrs gSa dkiksZjsV ykWfcLVA ehfM;k ds O;ogkj
ls Li"V gS fd mlus ikBd dh vis{kk dkWiksZjsV ykWfcLV dks
egRo fn;k gSA mlus eku fy;k gS fd ikBd uke ds izk.kh dks
rks djhc& djhc eqQ~r esa v[kckj nsdj HkEkZ;k tk ldrk gS
ijUrq dkiksZjsV ykWfcLV dks pkfg, mlds eu ekfQd [kcjsaA
ehfM;k us ;gh fd;k vkSj cM+s dgs tkus okys v[kckj tqV x,
,d&nwljs dks iNkM+us ds fy, izkbl okj esa A de ls
de nke] ykxr ewY; dk nl izfr'kr ls Hkh de] esa ikBd dks
v[kckj nsus dh gksM+ eph gS ehfM;k esaA vc bldh HkjikbZ
dgha u dgha ls rks gksxh ghA
ikBd us le>k blls mls D;k QdZ iM+rk gS\ ftruk og v[kckj
ij [kpZ djrk gS mlls dgha T;knk ds rks mls fxQ~V gh fey
tkrs gSa vkSj v[kckj dh tks jn~nh fcdrh gS og vyxAikBd
dh lksp jn~nh rd lhfer Fkh ijUrq fefM;k ds uke ij
fo'ks"kkf/kdkj pkgus okys ?kjkuksa us v[kckjksa dks lgh
ek;uksa esa jn~nh cuk fn;kA rHkh rks vkt 2&th LisDV~e ?kksVkys
ij ppkZ gksus ds LFkku ij fefM;k ds dqN yksxksa dh
gjdrsa ppkZ esa gSa vkSj ftl ij iwjs ehfM;k dks 'kEkZlkj
gksuk iM+ jgk gSA 'kEkZ vxj ugha vk jgh gS rks flQZ
mUgas tks viuh gjdrksa ds dkj.k ppkZ esa vk,A okLro esa
iz'u ;g iwNk tkuk pkfg, Fkk fd fdlh O;fDr dks ea=h cukus
vkSj ea=ky; nsus dk fo'ks"kkf/kdkj iz/kkuea=h dk gS ;k
,d dkiksZjsV ykWfcLV dk dkeA
jkfM;k Vsi dk mtkxj gksuk iwjs
ehfM;k txr vkSj ikBdksa ds fy, ,d 'kqHk le; dh 'kq#okr
ekuh tkuh pkfg, D;kasfd blls dkiksZjsV ykWfcLV vkSj
fnYyh&eqEcbZ ds cM+s dgs tkus okys dqN ehfM;k ?kjkuksa
dk vifo= xBtksM+ vkSj buds }kjk fd;k tk jgk Ny&diV tYnh
mtkxj gks x;kA eku yhft, dksbZ fons'kh ykWfcLV bl rjg
fefM;k dks vius b'kkjksa ij upkus yxrk rks D;k gksrk bl
ns'k dk\
ns'k ds 'ks"k ehfM;k ds fy, Li"V
ladsr gSa fd og ikBdksa dks lgh [kcjsa ns vkSj
izksMsDV] {kek djsa vkt ehfM;k dh Hkk"kk esa v[kckj dks
;gh dgk tk jgk gS] dh iwjh ykxr ikBd ls ysaA foKkiu
ds Hkjksls eqQ~r esa v[kckj ckaVksxs rks ogh gJ gksxk
tks jkfM;k izdj.k esa Qals ehfM;k dk gks jgk gSA
fo'oluh;rk nkao ij yxk dj v[kckj pykuk vkRe gR;k djus ls
de ughaAikBdksa dks Hkh lkspuk gksxk fd mUgsa eqQ~r esa
,slh feykoVh [kcjsa pkfg,a tks fdlh ds fufgr LokFkksZa
dks iwjk djrh gksa ;k iwjk iSlk nsdj os lgh [kcjsa] tks
vkidk nq%[k&nnZ ckaVsA tc vki feykoVh nw/k vkSj feykoVh
feBkbZ [kjhnus dks rS;kj ugha gSa rks fQj feykoVh [kcjsa
D;ksa\ lgh [kcjsa pkfg,a rks v[kckj dk iwjk ewY;
pqdkb;sA lLrk v[kckj pkfg, rks feykoVh [kcjsa gh feysaxh
fQj bl ij iz'u u dfj;s fd uhjk jkfM;k us D;k dgk vkSj
cj[kk nRr us D;k fd;kA QSlyk ikBdksa dks djuk gSA
feykoVh [kcjsa Nkius okys v[kckjksa dks [kjhnuk can dj
nsaxs rks dkWiksZjsV nykyksa vkSj ohj la?kfo;ksa dk /ka/kk
Lo;a pkSiV gks tk,xkA
MkW johUnz vxzoky
203 Mh ikdsV&,
Ek;wj fogkj&2
fnYyh 110091
09041410271
bZ esy&
agravindra@gmail.com
|
लेखक,
वरिष्ठ पत्रकार हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय
सहारा, हरिभूमि में सम्पादकीय विभाग में वरिष्ठ पदों पर
कार्यरत रहे हैं।
सम्प्रतिः हरियाणा सरकार की पत्रिका
के सम्पादक।
सम्पर्कः
203,
डी पाकेट-ए,
मयूर विहार-2
दिल्ली 110091
मोः
09041410271
ई
मेल-
agravindra@gmail.com
|