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#Kalapani कालापानी-लिपुलेख विवादःNepal के माओवादियों की खुराफात

नेपाल वासियों के लिए कालापानी-नबीढांग में आने-जाने का कोई रास्ता ही नहीं

Bhupat Singh Bist Journalist Dehradun भूपत सिंह बिष्ट

( स्वतंत्र पत्रकार-देहरादून)

 

Tags: #India-Nepal Relations, #Nepal New Map, #Kalapani #Lipulekh # Nabidhang #KP Sharma Oli, #News Article #UP Samachar Sewa, #Bhupat Singh Bist, Dehradun, Uttarakhand (UK) India

Published on :  21 May 2020, Thursday,  Time: 19:45 IST

चीन के उकसाने पर नेपाल ने गत 18 मई को मंत्रिपरिषद् की बैठक में अपना नया मानचित्र स्वीकृत करके एक नए विवाद को जन्म दिया है। इसमें नेपाल ने भारत के भूभाग में स्थित उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद के कालापानी और लिपुलेख को अपने देश के नक्शे में दर्शाने का निर्णय किया है। इससे भारत-नेपाल संबंधों में कटुता आने की आशंका बढ़ गई है। हालांकि भारत और नेपाल की जनता के बीच सदियों से रोटी-बेटी का संबंध रहा है। लेकिन, नेपाल मे जब से कम्यूनिस्ट प्रभाव बढ़ा है और कम्युनिस्टों के समर्थन से सरकार चलानी पड़ रही है। तभी से वहां समय-समय पर भारत विरोध को हवा दी जाती है। नेपाल की कम्युनिस्ट समर्थक सरकार यह सब माओवादियों और चीन को खुश करने के लिए करते हैं। ताजा विवाद उसी कड़ी का एक हिस्सा है। नेपाल ने जिस भूभाग पर अपना कब्जा दर्शाने की कोशिश की है, वह हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है। जिस हिस्से को वह अपना बता रहा है, वहां तक को उसके पहुंचने का मार्ग भी उसके पास नहीं है। इसी ज्वलंत मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र लेखक भूपत सिंह बिष्ट ने मुद्दे की गहराई से पड़ताल करते हुए भोगोलिक ऐतिहासिक तथ्यों के साथ विश्लेषण किया है। श्री विष्ट ने इस क्षेत्र का दो बार भ्रमण किया है तथा समूचे भू भाग को स्वयं देखा है। विश्लेषण में प्रयोग किये गए सभी चित्र उनके स्वयं के द्वारा खींचे गए और मौलिक है। संपादक

Kali River-Kali Temple-Kalapani-Pitoragarh PHoto By Bhupat Singh Bist

सहसा विश्वास नहीं हो रहा कि कोरोना महामारी के बीच नेपाल #Nepal में माओवादी #Maoist खुरापात क्यूंकर इतना सिर चढ़कर बोल रही है। इस बार नेपाल की ओर से भारत के उत्तराखंड राज्य की धारचूला तहसील, जनपद पिथौरागढ़ के उस निर्जन #Kalapani कालापानी और #Nabidhang नाबीढांग क्षेत्र पर दावा ठोका जा रहा है - जहां नेपाल की ओर से कोई रास्ता ही नहीं है।
उत्तराखंड का पिथौरागढ़ जनपद #China चीन  अधिग्रहित #Tibet तिब्बत और नेपाल दोनों से घिरा है। भारत और नेपाल के बीच सीमा के रूप में आज भी काली नदी बह रही है। काली नदी की यह सीमा नेपाल और अंग्रेज शासित भारत के बीच दिसंबर 1815 में तय की गई है। जिसे
#Treaty of Sugauli सुगोली संधि के नाम से जाना जाता है।
1814 से 1816 तक चले छुटपुट व भारी युद्ध में अंग्रेजी सेना ने नेपाली सेना को पंजाब में सतलुज नदी से लेकर उत्तराखंड में काली नदी तक के दूसरे छोर तक खदेड़ दिया था। इस तरह नेपाल के कब्जे में आये उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमायूं रियासत तब आजाद होकर अंग्रेजों के अधीन आ गए। सुगोली की संधि में नेपाल राजा Guru Gopal Mishra गुरू गजराज मिश्रा और अंग्रेज पेरिसा ब्राड शा के हस्ताक्षर हैं। गढ़वाल की टिहरी रियासत पर नेपाल का राज लगभग तेरह साल तक रहा और कुमायूं पर यह कब्जा और भी अधिक समय तक का रहा है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि आज तक उत्तराखंड के राजघराने में नेपाल राजपरिवार से वैवाहिक संबंध चले आ रहे हैं।

भारत विरोध में माओवादी पहले भी असफल रहे !

कालापानी को लेकर नेपाल का दावा एक बार 1997 में भी उठा था और 1998 से तकनीकी समिति का गठन कर इस मसले को सुलझाया जा रहा है। भारत के ढेरों प्रोजक्ट मित्र नेपाल देश में जारी हैं। भारत के Pithoragarh पिथौरागढ़ जनपद की Dharchula धारचूला में सीमांत नगर धारचूला काली नदी के तट पर बसा है। काली नदी के उस पार नेपाल का Darchula दार्चुला कस्बा है। इस पुल पर सुबह - शाम सीमा को खोलने और बंद करने की कवायद दोनों देशों की तरफ से होती है। मित्र देश होने के कारण नेपालवासी अपने इलाज और बिजनेस के लिए भारत के धारचूला क्षेत्र में रोज आते जाते हैं। धारचूला और दार्चुला में ही नहीं बल्कि दूर दराज के गांवों में रोटी-बेटी जैसे विवाह संबंध काली नदी के आर-पार आज भी होते चले आ रहे हैं।
हिन्दुओं की पवित्र कैलाश - मानसरोवर यात्रा Kailash Mansarovar Ytra का यह मार्ग सकंद पुराण में Skanda Puran मानस खंड Manas Khand के नाम से भी जाना जाता है। मुझे इस सीमांत धारचूला तहसील का वर्ष 1995 में छोटा कैलाश यात्रा और वर्ष 2008 में कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान नजदीक से जानने का अवसर मिला है। 1962 में भारत चीन युद्ध India-China War के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा बंद कर दी गई और फिर 1981 में चीन ने फिर से कैलाश मानसरोवर यात्रा का मार्ग लिपुपास Lipupas से भारत के लिए खोल दिया।

भारत की सामरिक सड़क से बौखलाया चीन !

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह Rajnath Singh ने विगत 8 मई को पिथौरागढ़ के धारचूला नगर से चीन सीमा लीपुपास तक बहुप्रतिक्षित लगभग 110 किमी मोटर मार्ग का उद्घाटन किया। तब से चीन की शह पर नेपाल के माओवादी भारत की इस सामरिक उपलब्धि पर बौखला कर अनाप - शनाप बयानबाजी में लगे हुए हैं। पहले धारचूला से लीपूपास तक की यात्रा करने में आठ दिन का समय लगता था। सदियों से काली नदी के दायीं ओर नेपाल के गांव और सड़क मार्ग हैं और जनजीवन में कोई मनमुटाव नहीं है। भूकंप और तमाम आपदा में भारत की ओर से बड़े भाई की भूमिका का निर्वहन नेपाल वासियों को राहत देने के लिए किया जाता हैं।

Kal--River, Kali-Mandir, Kalapani, Pithoragarh, Photo BY Bhupat Singh Bist

काली नदी से जुड़े नेपाली गांव आज भी भारत भरोसे !

दार्चुला से काली नदी के उद्गम की ओर नेपाल का जनजीवन सड़क मार्ग उपलब्ध न होने से शून्य है। धारचूला से 80 किमी दूर गर्बयांग गांव #Garbyang Village के निकट काली नदी पर कच्चा पुल बना है और यहां से नेपाल की ओर छांगुर #Changur, टिंकर #Tinkar, दुमलिंग #Dumling, रापांग #Rapang आदि गांव का रास्ता है। उल्लेखनीय है कि इन गांवों में शौका भाषा #Sauka language बोली जाती है जो कि धारचूला की तीन प्रमुख चैंदास #Chaindas, व्यास #Viyas और दारमा #Darma घाटी की भाषा है। गर्बयांग और गुंजी #Gunji के लोग इन गांवों में मालिकाना अधिकार रखते हैं और खेती व जानवरों को चराने के लिए इस भूमि का उपयोग पुश्तों से करते आ रहे हैं। गुंजी काली नदी के तट पर कैलाश मानसरोवर की ओर आखिरी गांव है और इस की गर्बयांग से दूरी 7 किमी है। गुंजी में काली और कुटी नदी का संगम Sangam of Kali and Kuti riverभी है। कैलाश मानसरोवर यात्राकाल में गुंजी में भारत सरकार का अस्थायी प्रवर्जन आफिस बनाया जाता है। काली नदी के उद्गम स्थल पर प्राचीन काली मंदिर Kali Temple है और यह स्थान कालापानी के नाम से पुकारा जाता है। गुंजी से काली नदी का उद्गम कालापानी 9 किमी दूर है और यहां प्राचीन कालीमंदिर है। जहां अक्सर भारत तिब्बत सीमा पुलिस और एसएसबी के लोग पूजा अर्चना करते हैं।

OM Parvat Pithoragarh Photo By Bhupat Singh Bist

तकलाकोट: चीन प्रवेश हेतु नेपाल का टिंकर पास और हमारा है लिपुपास !

कालापानी से 6 किमी दूर नाबीढांग में भारत की अंतिम पोस्ट है और यहां से ओम पर्वत #Om Parvat  के भव्य दर्शन मिलते हैं। नाबीढांग से तिब्बत के तकलाकोट नगर #Taklakot City of Tibet की सीमा मात्र 7 किमी रह जाती है। लगभग चार दशक से चीन की ओर से गाडियां लिपूपास तक पहुंच रही थी और अब डीजीबीआर ने भारत के लिए भी यह अनुपम काम कर दिखाया है। अब चीन अधिग्रहित तिब्बत की ओर हमारी तीनों सीमायें बोमला - अरूणाचल Bomla, Arunanchal, लिपुपास -उत्तराखंड Lipupas, Uttarakhand और पेंगागसो - लद्दाख Pengagso, Laddakh तक सामरिक सड़क मार्ग तैयार कर लिया गया है। उल्लेखनीय है कि सीमांत सड़क बनने का काम दशकों से चल रहा है। भारतीय नागरिकों को तकलाकोट तिब्बत पहुंचने की छूट चीन ने 1962 में समाप्त कर दी थी। कहा जाता है कि इस पोस्ट पर उस समय कोई गोली बारी नहीं हुई थी।
नेपाल के नागरिक टिंकर पास से तकलाकोट व्यापार के लिए निर्बाध आ - जा रहे हैं और यह मार्ग कभी 1962 के बाद भी बंद नहीं हुआ है। यानि कालापानी और लिपुपास से नेपाल का कभी भी कोई सरोकार नहीं रहा है। अन्यथा कभी पहले इस मार्ग का उपयोग करने की नेपाल ने जरूर पहल की होती। अब यह सब घपला चीन के इशारे पर या चीनी आकाओं को खुश करने के लिए किया जा रहा है।

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