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उत्तराखण्ड: यर्थाथ से दूर  भाजपा हाईकमान, रणनीति पर प्रश्नचिन्ह
- भूपत सिंह बिष्ट
Publised on : 26 Aprl  2016,  Last updated Time 11:28
देहरादून। विस्तारवादी चीन की सीमा से सटे उत्तराखण्ड  राज्य में निर्वाचित सरकार को हटाकर राष्ट्रपति राज का एक माह पूरा हो चुका है। इस दौरान भाजपा की राह सत्ता पाने की होड़ में और भी कांटो भरी हो गई है। संसद का सत्र शुरु होते ही उत्तराखण्ड का मसला हाईकोर्ट - सुप्रीम कोर्ट से होकर अब लोकसभा व राज्यसभा की कार्यवाहियों में भी सुर्खियां बटोर रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीमकोर्ट में 27 अप्रैल को और बागियों की सदस्यता बचाने का मामला नैनीताल हाईकोर्ट में 28 अप्रैल को नियत है। अरुणाचल प्रदेश की तुलना में यहां भाजपा की राह में रोज नई मुसीबतें खड़ी हो रही हैं और कांग्रेस को बैठे - बिठाये समाचारों में छाने और भाजपा को खलनायक साबित करने के मुद्दे मिल रहे हैं। उत्तराखण्ड  प्रदेश की दूरी दिल्ली से कुछ घंटों की होने के कारण यहां की हर छोटी - बड़ी घटनायें मीडिया कवरेज में बनी रहती हैं।

कांग्रेस बागियों के साथ भाजपा का बस और हवाई सफर अब सवालों के घेरे में ?

18 मार्च को उत्तराखण्ड भाजपा प्रभारी श्याम जाजू का विधानसभा में साक्षी होना एक संजोग कहा जा सकता है लेकिन उसी रात में कांग्रेस के बागी विधायकों का भाजपा विधायकों के साथ राजभवन में एक ही बस में बैठकर जाना और मिलकर राज्यपाल को ज्ञापन देना गलत रणनीति साबित हो रहा है। अब उसी रात महेश शर्मा का चार्टेड प्लेन के साथ देहरादून हवाई अड्डे में मौजूद होना और फिर उसी हवाई जहाज से रात में भाजपा और बागियों का दिल्ली जाना भी मुसीबत का सबब बना है। आम चर्चा यही है कि भाजपा का गेम प्लान 17 मार्च को ही हरीश रावत पर जाहिर हो गया था जब भाजपा के बड़े नेताओं के देहरादून में डेरा डालने की खबर लगी और तब कांग्रेस अपने कुछ विधायकों की बगावत रोकने में कामयाब भी हो गई। तभी कांग्रेस विधायक गणेश गोदियाल ने भाजपा की ओर से करोड़ों रुपये की पेशकश का दावा इलैक्ट्रानिक चैनलों पर किया था।

भाजपा को भीतरघात और दूसरे भीमलाल का डर भी सताता है !

भाजपा ने अपने विधायक भीमलाल आर्य को मुख्यमंत्री हरीश रावत से निरंतर नजदीकियां बढ़ाने के कारण पहले से ही निलंबित किया हुआ था और अब विधायकी समाप्त करने का आवेदन भी स्पीकर गोविंद सिंह कुजंवाल से कर दिया है। 18 मार्च के ठीक पहले बजट सत्र के दौरान भाजपा विधायकों को देहरादून के होटलों में रोका गया था ताकि सरकार गिराने की मुहिम में अपने खेमे से ही कोई चूक न कर दे। फिर इसी क्रम में भाजपा ने अपने सीनियर विधायकों को भी 18 मार्च के बाद हरीश रावत की पहुंच से दूर दिल्ली - जयपुर - पुष्कर आदि स्थानों पर शिविर बनाकर रखा। यदि बगावत कांग्रेस पार्टी में थी तो भाजपा ने भी अपने विधायकों पर अविश्वास जाहिर कर उत्तराखण्ड क्षत्रपों की क्षमताओं पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिये थे।
नारायण दत तिवारी के मुख्यमंत्री रहते
उत्तराखण्ड  भाजपा के बड़े नेताओं और विधायकों ने भी रेवडियां बटोरकर सत्ता के साथ गलबहिया डालने की शुरुआत की थी। इसी कारण वर्ष 2012 में भाजपा ने पहले विधायक किरन मंडल को खोया और अब भीमलाल आर्य की विधायकी निरस्त करने का आवेदन स्पीकर से किया हुआ है। सत्तर सीट वाली उत्तराखण्ड  विधानसभा में भाजपा का अपने दो विधायकों से हाथ धो बैठना बड़ी राजनीतिक व संगठनिक चूक है।

चुनावी साल में कांग्रेस के फटे में हाथ डालना कैसी रणनीति ?

वर्तमान उत्तराखण्ड भाजपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहे अजय भट्ट निरंतर हरीश रावत की शराब नीति पर मुखर रहे हैं। बागी हरक सिंह रावत की सदस्यता निरस्त करने के लिये भट्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक से अधिक लाभ के पद पर रहने का आरोप लगाया था। बाद में इसी कांग्रेस सरकार ने उन पदों को लाभ के दायरे से मुक्त करने के लिए विधानसभा में कानून पास किया। केदारनाथ आपदा कार्यों में भ्रष्टाचार और धांधली भाजपा का प्रमुख आरोप रहा है और पूर्व उत्तराखण्ड  भाजपा अध्यक्ष और विधायक तीरथ सिंह रावत केंद्र की राहत सहायता को खुर्द बुर्द करने का आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की सरकार पर लगाते रहे हैं और इन आरोपों की पुष्टि आडिटर्स ने भी की है। इस के अतिरिक्त खनन माफिया,शराब माफिया, रेत -बजरी और ट्रांसफर माफिया का सरकार के संरक्षण में सक्रिय होने की प्रमुख शिकायत भाजपा को रही है। फिर ऐसे बागी और दागी कांग्रेसियों को अपना संरक्षण देने की मंजूरी भाजपा हाईकमान ने कैसे दे दी ?
आज अपनी विधायकी बचाने के लिए यही बागी खुद को सच्चा कांग्रेसी बताने का दावा हाईकोर्ट में कर रहे हैं। सवाल यह है कि कांग्रेस के दल - बदल पर भाजपा ने सरकार को बर्खास्त कर आखिर किस को लाभ पहुंचाया ? इस शर्मनाक तमाशे के बाद अगर हरीश रावत यदि अपनी सरकार बचा भी लेते तो जनता में यही संदेश जाता कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं में सत्ता के लिए लूट खसोट और चाल - चरित्र सब संदेहस्पद है। पहाड़ में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा - चिकित्सा, रोजगार और विकास की बयार ना बहने से कांग्रेस सरकार के प्रति आम जनता का मोह भंग हो चुका था।

प्रधानमंत्री मोदी की लहर के बीच उत्तराखण्ड  में भाजपा तीनों उपचुनाव हारी !

प्रधानमंत्री मोदी की सुनामी में जहां भाजपा उत्तराखण्ड  की पांचों लोकसभा सीट भारी मतों से जीतने में कामयाब रही लेकिन रमेश पोखरियाल निशंक और अजय टमटा के लोकसभा सांसद बनने पर उनकी विधायक सीटों को भाजपा ने उपचुनावों में गंवा दिया था। ऐसे में हरीश रावत अब भाजपा से फिर वरदान पा गये लगते है - एक तो भाजपा ने हरीश रावत को धुर विरोधियों से मुक्ति दिलाकर कांग्रेस में उनका रास्ता एकदम साफ कर दिया है। जैसे अब सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत , विजय बहुगुणा, कुंवर प्रणव चैंपियन, अमृता रावत आदि और उन के चेलों को आगामी चुनाव में कांग्रेस के टिकट ना मिलने से हरीश रावत का विरोधी खेमा बिलकुल ही बेजान हो गया है। दूसरे अब हरीश रावत मोदी और आरएसएस पर अपनी कल्याणकारी सरकार गिराने के आरोप लगाकर कांग्रेस हाईकमान की नज़र में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। भाजपा के इस दॉव से कुमायूं मंडल में हरीश रावत को गहरी सहानुभूति और गढ़वाल मंडल में अपने वफादारों को आगे बढ़ाने का अवसर भी मिल गया है।
जुलाई के पहले सप्ताह में राज्यसभा सदस्य तरुण विजय का कार्यकाल समाप्त हो रहा है और इस से पहले इस सीट पर चुनाव होना है। अभी तक राज्यसभा की तीन सीटों में दो पर कांग्रेस का कब्जा है। यदि भाजपा ने राज्यसभा में अपनी सीटों को बढ़ाने के लिए प्रदेशों में भी बहुमत बढ़ाने का अभियान शुरु किया है तब भी यह रणनीति भाजपा की साख पर बट्टा लगाने वाली रही है।
पहाड़ के चिंतक शराब - खनन - ज़मीन और रियल स्टेट माफियाओं के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप को
उत्तराखण्ड  की इस दुर्दशा का जिम्मेदार मानते हैं। समय रहते भाजपा हाईकमान को नये सिरे से उत्तराखण्ड के लिए प्रभारी बनाने चाहिए जो कि पहाड़ की संस्कृति और समस्याओं को महानगरों में बैठककर ना आंके बल्कि सुदूर पर्वतीय अंचलों तक अपनी पहंच बनाकर संगठन को और ज्यादा चुस्त - दुरुस्त करें। अन्यथा उत्तराखण्ड में गहरी पैठ बनाये हरीश रावत के नेतृत्व में भाजपा को 2017 के चुनाव में कड़ी चुनौती का सामना करना तय है। हरीश रावत अब तक के तीन विधान सभा चुनावों में दो बार सफलता प्राप्त कर आगे चल रहे हैं और उत्तराखण्ड  में भाजपा अपनी ही चालों से नायक से खलनायक बनती जा रही है।

   

News source: UP Samachar Sewa

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