मुरादाबाद
(Moradabad, West UP)। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव
का पहला चरण पूर्ण होने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने
दूसरे चरण के लिए अपनी रणनीति बदल दी है। आखिर ऐसी क्या
मजबूरी है जो भाजपा को पहले चरण के बाद रणनीति बदलनी
पड़ी है?यह सवाल पश्चिम उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों
में चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपा के रणनीति बदलने
का खुलासा रविवार को लखनऊ में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित
शाह के बयान से हुआ। शाह ने कहा कि भाजपा का मुकाबला
पहले और दूसरे चरण में बहुजन समाज पार्टी से है। इसके
साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया पहले चरण में हम 90
सीटें जीत रहे हैं।
रविवार को शाह
द्वारा दिया गया यह बयान कि हमारा मुकाबला बसपा से है
रणनीतिक है। दरअसल पहले चरण से भाजपा ने कुछ सीख ली
है। पहले चरण मतदान में दो बाते एकदम स्पष्ट हो गईं कि
मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण सपा-कांग्रेस गठबंधन के
पक्ष में हुआ है। दूसरा यह कि जाट प्रभावित सीटों पर
राष्ट्रीय लोकदल मुख्य मुकाबले में रहा। इन दोनों ही
स्थितियों में भाजपा को नुकसान है। जाटों का रालोद की
तरफ जाना भाजपा के लिए नुकसानदेह है, जबकि मुसलमानों
का सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर झुकाव भी भाजपा को सीधी
टक्कर दे रहा है। पहले चरण में 11 फरवरी को जिन 73 सीटों
पर मतदान हुआ है वहां कुछ सीटों पर बसपा मुसलमानों के
वोट अपनी ओर आकर्षित कर पायी है।
अब दूसरे चरण के
जिन 67 विधान सभा क्षेत्रों में 15 फरवरी को मतदान होना
है। उन क्षेत्रों की स्थिति भी कमोबेश पहले चरण की सीटों
जैसी ही है। यहां भी मुसलमानों की संख्या बहुतायत में
है। कुछ सीटें तो ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतों की संख्या
हिन्दुओं से ज्यादा है। साथ ही दूसरे चरण की सीटों पर
भी जाट मतों की पर्याप्त संख्या है। इस चरण मे जाट
निर्णायक तो नहीं हैं किन्तु चुनाव परिणामों को
प्रभावित करने में उनकी अहम भूमिका है। इसलिए भाजपा की
नई रणनीति यह है कि मुख्य मुकाबले में सपा-बसपा के
बजाय बसपा को दर्शाया जाए। ताकि मुसलमानों का
ध्रुवीकरण न हो और वे सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा के
बीच बंट जाएं। यह स्थिति भाजपा के लिए मुफीद होगी। यदि
इस चरण में भी मुसलमानों का रुझान गठबंधन की ओर रहा तो
भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।इसीलिए पार्टी की
पुरजोर कोशिश है कि जोभी संभव हो कुछ मत बसपा की ओर
जाएं। भाजपा की नई रणनीति से यह भी स्पष्ट हो गया है
कि उसकी लक्ष्य अब सपा-कांग्रेस गठबंधन को रोकना है।
हालांकि मुसलमानों
के सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में ध्रुवीकरण के लिए
भी भाजपा के रणनीतिकार ही जिम्मेदार हैं। इन्होंने
पश्चिम में हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करने के लिए कैराना
को मुद्दा बनाया। साथ ही योगी आदित्यनाथ की कई सभाएं
कराईं। योगी के आक्रामक तेवरों से हिन्दू जो पहले से
ही भाजपा के पक्ष में थे। उनमें कोई विशेष फर्क नहीं
पड़ा। हां इतना जरूर हुआ कि जो कुछ मुसलमान मतदाता बसपा
को मतदान करने का मन बना रहे थे। वह सपा-कांग्रेस के
पक्ष में लामबंद हो गए। उधर मायावती भी खुद को मुसलमानों
का रहनुमा साबित करके उन्हें अपने पक्ष में मोडने का
प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही उनकी पूरी कोशिश दलित
और पिछड़े वोटों को बंटने से रोकने की है। इसीलिए वह
लगातार कह रही है कि भाजपा सत्ता में आयी तो आरक्षण को
समाप्त कर देगी।
दूसरे चरण में
मुरादाबाद, बरेली मण्डल और लखीमपुर खीरी की सीटों पर
मतदान होगा। यहां अगर भाजपा की रणनीति कारगर हुई तो
पार्टी बढ़त बना सकती है। क्योंकि इन क्षेत्रों में
अन्य के साथ साथ भाजपा समर्थक पिछड़ों की संख्या अधिक
है। बरेली मण्डल में कुर्मी भाजपा का वोट बैंक माना
जाता है। इसके साथ ही यहां लोध, किसान, सैनी और मौर्य
वोट भी भारी संख्या में हैं। इनके बदोलत भाजपा पहले
चरण की क्षति की भरपाई भी कर सकती है।