लखनऊ, 08 दिसंबर 2020 ( उ.प्र.समाचार सेवा)।
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन कर रहे किसानों के भारत बंद को सम्पूर्ण विपक्ष ने समर्थन दिया है। राजग सरकार के खिलाफ काफी समय से लामबंद होने का मौका तलाश रहे विपक्ष को किसान आन्दोलन एक अवसर के रूप में मिल गया है। खुद की जमीन खो चुके अधिकांश विपक्षी दलों ने किसानों की ताकत का मोदी
विरोध के लिए इस्तेमाल करने के लिए भारत बंद का समर्थन कर दिया है। बंद को समर्थन देने वाले कांग्रेस से लेकर वामपंथी तक कुल 24 दल शामिल हैं। गैर राजनीतिक स्वरूप के साथ 26 नवंबर से शुरु हुआ आंदोलन 13 दिन पूरे होते होते राजनीतिक रंग में रंग गया है। तेरहबें दिन जब किसान संगठनों ने भारत बद
का ऐलान किया है तो इसमें सभी विपपी कूद पड़े हैं। इन्हें किसानों की समस्याओं और उनकी मांगों से ज्यादा लेना देना नहीं है , बल्कि मोदी और भाजपा का विरोध इसके मूल में है।
किसानों को मण्डी के आधिपत्य से बाहर लाने वाले कानून
कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के नेतृत्व में बने दूसरे किसान आयोग की सस्तुतियों और लंबे समय से मंडी समितियों के आधिपत्य से किसान को बाहर निकालने की चल रही मांग के बाद भारत सरकार ने कृषि सुधार का फैसला लिया था। इसके तहत 5 जून को भाजपा के नेतृत्व की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार
ने अध्यादेश लाकर तीन कृषि कानून लागू किये थे। कृषि सुधार के लिए लाये तीन कृषि कानून में से पहला कानून मण्डी समिति के आधिपत्य को समाप्त करतें है, तथा किसान को कहीं भी उपज बेचने की आजादी देता है। दूसरा कानून में किसानों को खेती में ठेकेदारी प्रथा यानि कांटेक्ट फार्मिंग को वैधानिक
स्वरूप देता है। तीसरा कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों को शिक्षिल करता है। इन तीनों कानूनों में कोई भी बात किसान के विरोध में या हानि पहंचाने वाली नहीं है। लेकिन, किसान संगठनों के बीच कुछ लोगों ने सुनियोजित रूप से भ्रम फैलाने की कोशिश की जिसमें वे सफल भी हुए हैं। पांच जून को
लाये गए आध्यादेश के बाद 18 और 20 सितंबर को सरकार ने क्रमशः राज्यसभा और लोकसभा में विधेयक लाकर इन्हें विधिवत कानून रूप दे दिया।
कैसे बनी आन्दोलन की भूमिका
पांच जून को अध्यादेश आने के बाद और 18 सितंबर तक विधेयक पारित होने तक इन कानूनों पर कोई विशेष प्रतिक्रिया देश में नहीं हुई। कही कोई विरोध भी सुनने को नहीं मिला। लेकिन,संसद में विधेयक पारित होने के साथ ही कुछ कृषि विशेषज्ञों विशेषकर लेखक और विचारक देवेन्द्र शर्मा और पीलीभीत के किसान
नेता पूर्व विधायक सरदार बीएम सिंह ने इन कानूनों पर कुछ आपत्तियां कीं। इन आपत्तियों पर लेख और सोशल मीडिया में चर्चा होने के बाद यह बात पंजाब में सबसे ज्यादा चर्चा में आयी। यहां कांग्रेस की सरकार ने इस विरोध को हवा दी। यहां तक कि कानूनों को प्रदेश में लाून नहीं करने के लिए विधेयक पारित
कर दिया और मंजूरी के लिए राष्ट्पति को भेज दिया। पंजाब में कानूनों के खिलाफ रैली निकाली गई। स्वयं राहुल गांधी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों की ट्रैक्टर रैली में शामिल हुए। दोनों ने नेता कीमती सोफा लगे ट्रैक्टर पर बैठे। इन कानूनों का विरोध सबसे ज्यादा पंजाब में ही हुआ। इस
आन्दोलन को बल मिला योगेन्द्र यादव के सक्रिय होने के बाद। किसान मुद्दों और ग्रामीण मामलों को लेकर एक्टिव रहने वाले योगेन्द्र यादव ने स्वराज यात्रा के दौरान भी इन कानूनों की खामियां किसानों को बतायीं। उन्होंने एक सफल सगठनकर्ता के तौर पर देश के उत्तर भारत में सक्रिय किसान संगठनों को
संगठित किया और 32 संगठनों की एक किसान संघर्ष समिति बना ली। इस समिति ने ही 26 नवंबर को दिल्ली कूच का फैसला किया था।
आन्दोलन का गैर राजनीतिक स्वरूप समाप्त
दिल्ली में ट्रैक्टर ट्रालियों के साथ घुसने के प्रयास कर रहे पंजाब के किसानों को पहले ही दिन यानि 26 नवंबर को सिन्दु बार्डर पर रोक दिया गया था। वहीं उन्होंने धरना दिया। सरकार किसानों को बुराड़ी मैदान जाकर आन्दोलन करने को कह रही थी किन्तु किसान जंतर मंतर जाने पर अड़े थे। इसलिए किसानों
को बार्डर पर ही धरना देना पड़ा है। धऱने की सफलता तथा हरियाणा और पश्चिम उत्ततर प्रदेश के जाटों की खाप पंपायतों का समर्थन मिलने के बाद आन्दोलन ने गति पकड़ ली। सरकार ने पांच दौर की बातचीत की लेकिन कोई समाधान नहीं निकला , किसान तीनों कानून रदद कराना चाहते हैं। सरकार कानूनो में कुछ संशोधन
करने को तैयार है। लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं हैं। अपनी मांगों पर अड़े किसानों ने 8 दिसंबर के भारत बंद का आह्वान कर दिया। इस बंद को एक अवसर मानकर राजनतिक दल समर्थन में कूद गए। कांग्रेस जोकि पहले से ही आन्दोलन को समर्थन दे रही थी खुलकर सामने आ गई। इसके साथ ही यूपीए सभी दलों के साथ
साथ दोनों कम्यूनिस्ट पार्टियों ने भी समर्थन दिया। अन्य राज्य स्तरीय दलों जैसे समाजवादी पार्टी. बहुजन समाज पार्टी,राजग, शिव सेना, टीआरएस, टीएमसी, सीपीआई,सीपीएम आदि ने भी बंद का समर्थन दिया है। भारत बंद के समर्थन में पार्टियों के खुलकर आने के बाद अब यह आन्दोलन गैर राजनीतिक नहीं रहा है।
किसान आन्दोलन अब पूरी तरह से राजनीतिक स्वरूप ले चुका है। कुल चौबीस दलों ने आन्दोलन को समर्थन दिया है। |