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  मायावती का चुनावी प्रपंच : चुनाव जीतने को बंटवारे की चाल
  मुस्लिमों के साथ जाटों को आरक्षण का लालच
  छोटे राज्यों की वकालत चुनावी रणनीति का हिस्सा
  -शशि सिंह-
Tags: Shashi Singh,
Publised on : 2011:10:03       Time 24:53                                 Update on  : 2011:10:03       Time 24:53

लखनऊ, 02 अक्टूबर। (उप्रससे)। Lucknow, Oct. 02, 2011, U.P.Web News.  प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अब सामाजिक और भौगोलिक बंटवारे को नयी धार देकर फिर सत्ता में आने की जुगत लगा रही हैं। अपनी इसी रणनीति के तहत उन्होंने पहले मुस्लिमों को, उसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली जाटों को आरक्षण देने के लिए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को पत्र लिखा। उत्तर प्रदेश के तीन और हिस्से (पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वांचल और बुंदेलखंड) किए जाने की वकालत की, साथ ही आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। मायावती यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने स्थानीय भावनाओं को हवा देते हुए तीन नए जिलों की घोषणा कर उनका नामकरण भी कर दिया।
वादों को नहीं किया पूरा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अगले साल मार्च-अप्रैल में प्रस्तावित है। साढ़े चार साल सत्ता में रहते हुए मायावती ने एक तरफ राज्य के खजाने का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो दूसरी ओर प्रदेश में माफियाराज को शह देकर आम जनता के मन में भय का वातावरण पैदा होने दिया। आज प्रदेश के हालात मुलायम सिंह के शासनकाल से भी बदतर हो गए हैं जबकि यही मायावती ने उनके गुंडाराज के खिलाफ जनता से वोट मांगा था। वह अपने वादों पर खरी नहीं उतरीं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना में बड़ा घोटाला हुआ और राजधानी में परिवार कल्याण विभाग के दो मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) और एक उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी (डिप्टी सीएओ ) को जान से हाथ धोना पड़ा। एक इंजीनियर को वसूली न देने पर पीट-पीटकर मार डाला गया। बड़े माफिया बसपा के टिकट पर विधायक, सांसद और विधान परिषद सदस्य बने।
नयी राजनीतिक चाल
अब वह नये जनादेश की तैयारी में जुटी हैं। नया एजेंडा तैयार किया है। पिछली बार मुलायम सिंह का गुंडाराज मुख्य चुनावी मुद्दा था, अब सामाजिक बंटवारा और स्थानीय भावनाओं को केंद्र में रखकर चुनावी ताना बाना बुन रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बहुल इलाकों में राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह का प्रभाव माना जाता है, वहीं अन्य इलाकों में जातिवाद का जहर बोने वाले मुलायम सिंह अपना प्रभाव मानते हैं। इन इलाकों में मुसलमान भी बहुसंख्या में हैं। इसलिए पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को केंद्रित करते हुए मुख्यमंत्री ने अलग राज्य का नारा दिया है। हालांकि अपने शासनकाल में वह इस निमित्त एक प्रस्ताव तक विधानसभा में नहीं लायीं। इसलिए उनके राज्य के बंटवारे की वकालत पर भाजपा, सपा के साथ कांग्रेस ने हमला बोलना शुरू कर दिया है। राज्य भाजपा के अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही कहते हैं अब राज्य के बंटवारे की बात केवल चुनावी प्रपंच है। अगर मुख्यमंत्री गंभीर थीं तो पहले ही इस मांग को क्यों नहीं उठाया। रालोद अध्यक्ष अजित सिंह भी कहते हैं कि अगर वह गंभीर थीं तो विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा क्यों नहीं।
फिर तीन नए जिले बनाए
मुख्यमंत्री ने वोट राजनीति के तहत ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीन नए जिलों की घोषणा कर दिया। हालांकि अपने अब तक सभी कार्यकालों में वह 18 नए जिले बना चुकी हैं। इन सभी जिलों में अभी तक आधारभूत सुविधाएं नहीं जुटाईं जा सकीं। अधिकतर जिलों में जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुख के कार्यालय और आवास तक किराए के भवनों में चल रहे हैं। उनकी माली हालत सुधारने के बजाए नए जिलों की घोषणा माया की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने हाल ही में अपने राज्यव्यापी दौरे के पहले ही दिन पंचशीलनगर, प्रबुद्धनगर और भीमनगर नामक नए जिलों की घोषणा की। मुजफ्फरनगर की शामली तहसील को जिला घोषित करते हुए इसका नामकरण प्रबुद्धनगर किया। इसमें शामली और कैराना तहसीलों को शामिल किया। उन्होंने गाजियाबाद जिले की हापुड़ तहसील को मुख्यालय बनाते हुए उसका नाम पंचशीलनगर रखा। इसमें हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर और धौलाना को शामिल किया गया है। इसी के साथ मुख्यमंत्री ने मुरादाबाद की संभल तहसील को मुख्यालय बनाते हुए उसका नाम भीमनगर रखा दिया। इसमें संभल, चंदौसी और गुन्नौर तहसीलों को शामिल किया गया है। हालांकि संभल को जिला घोषित करने के बाद वहां भारी आंदोलन शुरू कर दिया गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें मुरादाबाद का हिस्सा बने रहने में ज्यादा लाभ है। अलग जिला बनने से उनके आर्थिक और व्यापारिक लाभ प्रभावित होंगे।

पुरानों की हालत खराब

मायावती ने अपने चार बार के मुख्यमंत्रित्वकाल में 18 नए जिलों का गठन इस तर्क के साथ किया कि प्रशासन की छोटी ईकाई होने के कारण जनता को सहूलियत होगी। कहने में बात ठीक लगती है लेकिन व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाया। जिन जिलों का गठन किया, उनमें कई डेढ़ दशक पहले बनाए गए थे लेकिन आज तक उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया। केवल पुलिस प्रमुख और डीएम तैनात कर देने से जिले की आवश्यकता तो पूरी होती नहीं। अपने पहले कार्यकाल में सितंबर 1995 में उन्होंने फैजाबाद से अलग कर अंबेडकरनगर बनाया। जिला तो बन गया लेकिन आज भी वह आर्थिक दृष्टि से कमजोर माना जाता है। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के कार्यालय तक नहीं बने हैं। रिजर्व पुलिस लाइन तक नहीं मुहैया करायी जा सकी। बलरामपुर में भी एसपी और डीएम किराए के भवन में कामकाज करते हैं। माया द्वारा बनाए गए करीब-करीब सभी जिलों बिजली, पानी, सड़क जैसी आधारभूत आवश्यकताओं के लिए लोग तरस रहे हैं। ऐसे में तीन और जिलों के बन जाने के बाद हालात सुधरेंगे, ऐसा नहीं लगता। हां, स्थानीय जनभावनाओं को भुनाने का एक राजनीतिक प्रयास जरूर लगता है।
वोट बैंक को ध्यान में रखा
मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और अजित सिंह के प्रभाव वाले जाट बहुल इलाकों को खास ध्यान में रखा। यूं तो जाट प्रदेश में छह-सात प्रतिशत हैं लेकिन प. उप्र में उनकी जनसंख्या 17 प्रतिशत है। उनकी संख्या रुहेलखंड इलाके में भी काफी है।55 विधानसभा तथा 10 लोकसभा सीटों पर वे जीत-हार में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। इनकी संख्या मथुरा में 40 तथा बागपत में 30 प्रतिशत है। बागपत लोकसभा सीट से खुद अजित सिंह तथा मथुरा से उनके पुत्र जयंत सिंह सांसद हैं। इसी प्रकार सहारनपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, ज्योतिबाफुलेनगर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, बदायूं, मेरठ, बुलंदशहर तथा बागपत में मुसलमान बहुसंख्या में हैं। इन जिलों में चुनाव के समय मुसलमान तथा जाट समीकरण जब भी काम करता है, वह परिणामों को बहुत गहराई से प्रभावित करता है। मायावती के राजनीतिक दिमाग में यह समीकरण काम कर रहा है तभी उन्होंने पहले मुसलमानों, बाद में जाटों के लिए आरक्षण संबंधी पत्र प्रधानमंत्री को लिखा।

News source: U.P.SAMACHAR SEWA

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