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गंगा तट पर 50 हजार गायत्री स्वयंसेवक दीप जलाकर मनाएंगे पर्यावरण दीवाली

Tags: Gayati Mahayaja Haridwar, Acharya Shriram Sharma Janam Shatabdi, Tara Patkar

First Publised on : 2011:10:25       Time 23:45       Last  Update on  : 2011:10:26       Time 00:53

हवन कुंड का काम करते हैं दीवाली में मिट्टी के दिये
तारा पाटकर
हरिद्वार, 25 अक्टूबर। (उप्रससे)। मिट्टी के दिये हवन कुंड का काम करते हैं और सरसों के तेल में जलती बाती आसपास मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर वातावरण को शुध्द बनाती है लेकिन पटाखे वातावरण में ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण फैलाकर मिट्टी के दियों के लाभकारी प्रभाव को नष्ट कर रहे हैं। साथ ही भारी धन-जन की हानि का कारण भी बन रहे हैं। अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंडया ने इन तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए देश भर में मौजूद अपने करोडों स्वयंसेवकों से पटाखा रहित पर्यावरण दीवाली मनाने की अपील की है और हरिद्वार में गंगा तट पर दीवाली के दिन पचास हजार स्वयंसेवकों के साथ दीप जलाकर पर्यावरण दीवाली मनाने का संकल्प लिया है।
उन्होंने देश के सभी राज्यों में स्थापित गायत्री परिवार के 4,800 प्रज्ञा संस्थानों से दीवाली के दिन नदी, झील, तालाबों और पोखरों पर स्वच्छता अभियान चलाने व दीपदान कार्यम करने का आह्वान किया है। साथ ही डॉ पंडया ने एक ऐसा फंड स्थापित करने के लिए कहा है जिसमें पटाखों में खर्च होने वाले धन को जमा किया जाये और हादसे के शिकार लोगों की मदद की जाये। डा. पंडया ने कहा कि गांव, कस्बे और शहरों में जागरूकता रैलियां निकाल कर जनता को पटाखों से हो रही धन-जन ही हानि के बारे में बताया जाये और खासतौर से बच्चों को पटाखा रहित दीवाली मनाने का संकल्प दिलाया जाये क्योंकि कडवी सच्चाई से अनजान यही बच्चे पटाखे की जिद्द ज्यादा करते हैं। हरिद्वार के शांतिकुंज गायत्री विद्यापीठ में शनिवार को बच्चों ने पटाखारहित दीवाली मनाने का संकल्प लेकर इसकी शुरूआत कर दी।
डा. पंडया ने कहा कि मिट्टी के दिये में हम जिस सरसों के तेल को बाती जलाने के लिए डालते हैं, उसमें सल्फर होता है जो वातावरण में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं, कीटाणुओं, मच्छरों और वायरस वाहकों को नष्ट कर देता है और हमें शुध्द पर्यावरण प्रदान करता है लेकिन पटाखों से निकलने वाली नाइट्रोजन डाइ आक्साइड, सल्फर डाइ आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड जैसी खतरनाक गैसें दिये से होने वाले लाभ को निष्प्रभावी कर देती हैं। दीवाली की रात में तो इन गैसों की मात्रा वातावरण में बहुत अधिक बढ जाती है और अस्थमा के मरीजों के लिए दीवाली की रात काटनी दुष्वार हो जाती हैं।
उन्होंने कहा कि जिसने पटाखों की खोज की थी, उसने भी ये कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन यही पटाखे खुशी की जगह मातम का कारण बन जायेंगे। बारूद के ढेर पर शहर बैठ जायेंगे। इनके धमाकों से पटाखे बनाने वाले ही मारे जायेंगे। मासूम बच्चों को आंखों की रोशनी छिन जायेगी। उनके हाथ जल जायेंगे। पटाखों के प्रदूषण से बीमार बुजर्गों का दम घुटने लगेगा और इन पटाखों की वजह से रोशनी का त्यौहार दीपाली बदनाम हो जायेगा। शांतिकुंज अब देश भर में पर्यावरण दीवाली मनाकर इस कालिख को साफ करना चाहता है।
शांतिकुंज में युवा प्रकोष्ठ के कार्यकर्ता केपी दुबे ने बताया कि मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में गायत्री परिवार स्कूल ने अनोखी पहल की। प्रधानाचार्य मुकेश तिवारी की पहल पर पटाखों में व्यय होने वाले खर्च से एक कोष बनाया गया जिसमें शिक्षकों के अंशदान व विद्यार्थियों के जेब खर्च से जमा हुई रकम से नौवीं कक्षा की एक छात्रा का उपचार कराया गया। करंट लगने से उस छात्रा के दोनों हाथ बुरी तरह चोटिल हो चुके थे।

News source: ,    U.P.Samachar Sewa

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