नई
दिल्ली, 17 नवम्बर। ( उत्तर प्रदेश
समचारा सेवा) । अयोध्या में मामले पर
फैसला आने से पहले देश की जनता स अपील
करके निर्णय को मानने की बात कहने वाले
मुस्लिम नेता एक के बाद एक अपनी बात
से मुकरने लगे हैं। अब ये अयोध्या
मामले में नौ नवम्बर के फैसले के
खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने
की बात करने लगे हैं। मुस्लिम पर्सनल
ला बोर्ड के बाद अब जमीअत
उलेमा-ए-हिन्द के प्रमुख मौलाना अरशद
मदनी ने कहा है अयोकि उनका संगठन
अयोध्या मामले पर पुनर्विचार याचिका
दाखिल करेगा। उन्होंने बताया कि इस
मुद्दे पर पांच सदस्यीय कानूनी
विशेषज्ञों के पैनल से विचार विमर्श
के बाद यह निर्णय लिया गया है।
मुस्लिम पक्ष के तर्क अदालत ने
स्वीकारेः मदनी
रविवार को अपने फैसले की घोषणा करते
हुए मदनी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय
ने मुस्लिम पक्ष के अधिकतर तर्कों को
स्वीकार किया है। ऐसी स्थिति में अभी
भी कानूनी विकल्प मौजूद हैं। मदनी ने
कहा कि मुसलमान मस्जिद स्थानान्तरित
नहीं कर सकता इसलिए वैकल्पिक जमीन लेने
का प्रश्न ही नहीं उठता। मदनी ने कहा
कि सर्वोच्च न्यायालय ने पुरातत्व
विभाग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट कर दिया
कि मस्जिद किसी मन्दिर को तोड़कर नही
बनाई गई। इसके साथ ही मस्जिद के बाहरी
हिस्से में 1949 में मूर्तियां रखी गईं।
इसके बाद उन्हें वहां से मस्जिद के
अन्दर बाले गुम्बद के नीचे
स्थानान्तरित कर दिया गया। जबकि उस
दिन तक वहां नमाज पढ़ी जा रही थी।
पांच सदस्यीय पैनल ने किया पुनर्विचार
याचिका का फैसला
मदनी के अनुसार अदालत ने भी माना कि
मुसलमान वहां 1857 से 1949 तक नमाज
पढ़ते रहे। जिस मस्जिद में 90 साल तक
नमाज पढ़ी जाती रही हो, उसको मन्दिर
को देने का फैसला समझ से परे है। मदनी
यह भी कहते हैं कि यदि मस्जिद को नहीं
तोड़ा गया होता तो क्या अदालत मस्जिद
तोड़कर मन्दिर बनाने के लिए कहती।
ज्ञातव्य है कि जमीयत की गुरुवार को
भी बैठक हुई थी। किन्तु इसमें
पुनर्विचार याचिका पर सहमति नहीं बन
पायी थी। इसके बाद ही पांच सदस्यीय
शीर्ष पैनल बनाया गया। इसमें मौलाना
अरशद मदनी, मौलाना असजद मदनी, मौलाना
हबीबुर्रहमान कासमी, मौलाना
फजलुर्रहमान कासमी, और वकील एजाज
मकबूल शामिल किये गए थे। मदनी ने
पांच एकड़ जमीन लेने से भी सुन्नी
वक्फ बोर्ड को मना किया है।
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