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  राजनीति का ग्लैमर अथवा ग्लैमर की राजनीति!
श्रीधर अग्निहोत्री
Publised on : 05 May 2014  Time 22:17
 

अब इसे राजनीति का ग्लैमर कहें या ग्लैमर की राजनीति। ग्लैमर की दुनिया से जुडे लोगों की सत्ता की चाहत लगातार बढती ही जा रही है। राजनीति जनसेवा न होकर अब ”ग्लैमरस” बनती जा रही है। फिल्मी सितारों और खिलाडियों का राजनीति में आना एक फैशन बन चुका है। जिसके कारण हर चुनाव में जनता ऐसे जनतप्रतिनिधियों के मोहजाल में फंसने के बाद फिर खुद को ठगा सा महसूस करती है। जमीनी जुडाव न हो पाने के बावजूद जनता इन्हे अपना जनप्रतिनिधि तो बना लेती है लेकिन फिर अगले लोकसभा चुनाव का इंतजार करती है।
16वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव में भी लगभग सभी दलों ने फिल्मी सितारों व खिलाड़ियों पर अपना दांव लगाया है। कांग्रेस ने जहां राजबब्बर को गाजियाबाद, रविकिशन को जौनपुर तथा नगमा को मेरठ से चुनाव मेदान में उतारा है, वहीं भाजपा ने मथुरा से हेमामालिनी, अमेठी से स्मृति ईरानी, बिहार की पटना साहिब सीट से शत्रुघ्न सिंन्हा, अभिनेता मनोज तिवारी को उत्तर पूर्व दिल्ली, संगीतकार भप्पी लाहिड़ी को पश्चिम बंगाल की श्रीरामपुर, गायक बाबुल सुप्रियों को आसनसोल सीट, परेश रावल अहमदाबाद पूर्व, विनोद खन्ना को गुरूदासपुर तथा किरण खेर को चंडीगढ से पार्टी का प्रत्याशी बनाकर परम्परागत राजनीति करने वालों के लिए परेशानी खड़ी करने का काम किया है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने असफल फिल्म अभिनेत्री गुल पनाग को चंडीगढ, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने उत्तर पश्चिम मुम्बई से महेश मांजरेकर को, राष्ट्रीय लोकदल ने जयाप्रदा को बिजनौर, तृणमूल कांग्रेस ने मुनमुन सेन को पश्चिम बंगाल की बांकुरा, अभिनेत्री संध्या राय को मिदनापुर सीट तथा विश्वजीत प्रधान नई दिल्ली लोकसभा सीट से पार्टी प्रत्याशी बनाकर दूसरे राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौती देने का काम किया है। आम आदमी पार्टी ने फिल्म अभिनेता जावेद जाफरी को राजनीति के क्षेत्र मेें लाकर उन्हे लखनऊ से पार्टी का टिकट दिया है।
फिल्मों मंे सफल न होने के बाद राजनीति के कुशल कारीगर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान पिता की विरासत संभालने के लिए राजनीति में आ गये हैं वह बिहार की जमुई लोकसभा सीट से चुनाव में उतरे हैं। बिहार की पश्चिमी चंपारण सीट से ’राजनीति’ फिल्म के निर्माता निर्देशकश्प्रकाश झा जनता दल यू के टिकट पर राजनीति में उतरे हैं। कई बार विवादों को लेकर चर्चा में आये अभिनेता और निर्माता निर्देशक कमाल खान को समाजवादी पार्टी ने उत्तर पश्चिमी मुम्बई से अपना प्रत्याशी बनाकर इस शहर में अपनी जमीन और मजबूत करने की कोशिश की है। उधर, भाजपा में बात बनती न देख ’आइटम गर्ल’ कही जाने वाली राखी सावंत ने मुम्बई उत्तर पश्चिमी सीट से निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया है।
अतीत पर गौर किया जाए तो फिल्मों से राजनीति की ओर आने का सिलसिला दक्षिण भारत से शुरू हुआ, और सच भी यही है कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के फिल्मी सितारे राजनीति में अधिक सफल रहे है। सत्तर के दशक में प्रख्यात फिल्म अभिनेता एन.टी. रामाराव ने तेलुगूदेशम पार्टी की स्थापना की तो जनता ने उन्हे हाथों-हाथ लिया और अस्सी का दशक आते-आते उन्हे आन्ध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री तक बना दिया। इसी तरह फिल्मों से राजनीति में आये एमजी रामचन्द्रन ने भी तमिलनाडु की राजनीति में एक बडा मुकाम हासिल किया जिसको आगे बढाने का काम उनकी सह-अभिनेत्री रही जयललिता मुख्यमंत्री रहते कर रही हैं।
ऐसा भी नहीं है कि ग्लैमर की दुनिया छोड़कर जो भी राजनीति की पाठशाला में आता है वह सफल ही हो जाता है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के कहने पर सुपरस्टार अमिताभ बच्चन इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लडे और राजनीति के मजबूत स्तम्भ कहे जाने हेमवती नन्दन बहुगुणा को शिकस्त दी। तब ऐसा लगा कि देश के लिए अभिनेता अमिताभ बच्चन के बेहतर नेता साबित होंगेे। मगर ऐसा नहीं हो सका। उस समय जब बोफोर्स कांड अपने चरम पर था और घोटाले में अमिताभ बच्चन का भी नाम आया तो उन्होंने बगैर अपना कार्यकाल पूरा किये लोकसभा सीट के साथ ही राजनीति से किनारा कर लिया। इसके बाद एक और सुपर स्टार राजेश खन्ना को भी राजनीति का भूत सवार हुआ। उन्हे 1991 में जब लालकृष्ण आडवाणी राजनीति के चरम पर थें तो कांग्रेस ने आडवाणी के खिलाफ उन्हे नई दिल्ली से चुनाव मैदान में उतार दिया गया। राजेश खन्ना यहां भी सुपरस्टार साबित हुए हालांकि वह चुनाव हार गये लेकिन आडवाणी को अपनी जीत के लिए नाकों चने चबाने पडे़। आडवाणी को राजेश खन्ना के मुकाबले बेहद कम अंतर से जीत मिली। बाद में राजेश खन्ना ने यहां हुए उपचुनाव में फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को चुनाव हराकर लोकसभा में प्रवेश किया। फिल्म अभिनेत्री हेमामालिनी की सलाह पर ही उनके पति अभिनेता धर्मेन्द्र को भी राजनीति में उतरने का जब मन हुआ तो भाजपा ने उन्हे बीकानेर सीट से चुनाव लडने को कहा। कई फिल्मों की राजस्थान में शूंटिग करने के कारण धर्मेन्द्र का यहां लोगों से अच्छा तादाम्य बन चुका था। इसलिए जनता ने धर्मेन्द्र को हाथो-ंहाथ लेकर उन्हे लोकसभा का रास्ता दिखा दिया लेकिन धर्मेन्द्र अपने पांच साल के कार्यकाल में कभी अपनी लोकसभा क्षेत्र नहीं गये जिसके कारण उनके खिलाफ बेहद खराब माहौल बन गया जिसके बाद फिर धर्मेन्द्र बीकानेर से चुनाव लडने की हिम्मत नहीं जुटा पाये।
इसी तरह जब 90 के आसपास टीवी सीरियल रामायण और महाभारत का प्रसारण हुआ तो इसके पात्र लोगों के दिलों में छा गये। भाजपा को लगा मौका अच्छा है इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है। तो भाजपा ने अरूण गोविल (राम), दीपिका चिखालिया (सीता) और नीतीश भारद्वाज (कृष्ण) को लोकसभा का चुनाव लडने को कहा। तीनों फिल्मी कलाकारों ने राजनीति में अपनी कलाकारी दिखाई और लोकसभा पहुंच गये। लेकिन बाद में उन्हे जनता के बीच वह लोकप्रियता नहीं हासिल हो पाई जिसे सोचकर वह राजनीति में आये थें।
इन सबमें फिल्म अभिनेता सुनील दत्त ही ऐसे थेें जिन्होेंने राजनीति में रहकर जनता की सेवा करने का काम किया। यही कारण था कि उन्हे उत्तर पश्चिमी मुम्बई से लगातार पांच बार सांसदी करने का मौका मिला। बाद में वह 2004 की यूपीए सरकार में मंत्री भी बने। अपनी लोकप्रियता का लाभ उठाकर अभिनेता गोबिन्दा ने भी प्रसिद्व राजनीतिज्ञ रामनाईक के खिलाफ चुनाव लडकर उन्हे हार का स्वाद चखाया। जबकि पूर्व मिस इण्डिया और कुछ फिल्मों मेंु काम करने वाली नफीसा अली ने पहले कांग्रेस में राजनीतिक भूमिका निभाई और बाद में 2009़ में सपा का दामन थामा। उन्हे समाजवादी पार्टी ने लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लडने को कहा जिसके लिए वह सहर्ष तैयार हो गयी, लेकिन लखनऊ की जनता को उनकी प्रत्याशिता रास नहीं आई जिसके कारण वह चुनाव हार गयी।
सियासत का खेल केवल फिल्मी सितारों तक सीमित रहता तब तक तो ठीक था लेकिन राजनीतिक दलों को पता है कि जितनी लोकप्रियता फिल्मी सितारों को हासिल है उतना ही सम्मान देश के खिलाडियों के प्रति भी जनता के मन में रहता है। इसीलिए इस बार के लोकसभा चुनाव में भी कई खिलाडियों ने जनता के बीच जाकर लोकसभा जाने की अपनी चाहत दिखाई है। कांग्रेस की तरफ से भारतीय क्रिकेट टीम के कभी सदस्य रहे मो. कैफ इलाहाबाद के अब फूलपुर से अपनी किस्मत आजमाकर राजनीतिक कैरियर बनाने की कोशिश में है। जबकि तृणमूल कांग्रेस ने नामी फुटबालर बाईचुंग भूटिया को दार्जिलिंग और प्रसून बनर्जी को हावडा सीट से अपना प्रत्याशाी बनाया है। बीजू जनता दल ने हाकी खिलाड़ी दिलीप टर्की को सुंदरगढ़ से चुनाव लड़ने को कहा है। जबकि शूटर राज्यवर्धन राठौड़ भाजपा के टिकट पर राजस्थान से चुनाव मैदान में हैं।
ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी राजनीतिक दल ने किसी खिलाड़ी को चुनाव मैदान में उतारा हो, इसके पहले भी कई खिलाड़ी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे नवजोत सिद्धू पंजाब की अमृतसर लोकसभा सीट से वर्तमान में सांसद हैं। उन्हे 2004 व 2009 में लगातार दो बार जनता ने हाथों-हाथ लिया। पूर्व कप्तान मो. अजहरूद्दीन भी पिछला लोकसभा चुनाव मुरादाबाद से जीत चुके हैं लेकिन जनता के बीच न रहने के कारण इस बार वह हार की संभावनाओं को देखते हुए मैदान छोड़कर भाग खडे़ हुए। उन्होंने राजस्थान के टांक सवाई माधोपुर को नया मैदान बनाया है। इसी तरह 1983 विश्वकप क्रिकेट टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद दिल्ली की गोलमार्केट विधानसभा सीट से विधायक बन चुके हैं। राजनीतिक सफलता मिलती देख बाद में उन्होंने दरभंगा लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमाई तो उन्हे वहां भी सफलता मिली। इस बार फिर वह इसी सीट से चुनाव लड रहे हैं। इसके पहले क्रिकेटर चेतन चैहान उत्तर प्रदेश की अमरोहा लोकसभा सीट 1998 भाजपा के सांसद बने। हांलाकि बाद में हुए चुनावों में जनता ने उन्हे नकार दिया। पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान मंसूर अली खां पटौदी भी भोपाल से चुनाव लडे थें लेकिन उन्हे यहां पराजय का सामना करना पडा था। जबकि किक्रेटर मनोज प्रभाकर भी गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव लडे और हार गये। इसके बाद प्रभाकर ंने राजनीति से तौबा कर लिया। क्रिकेट से रिटायर होने के बाद विनोद कांबली को जब दूसरे क्षेत्रों में सफलता नहीं मिल पाई तो उन्होंने राजनीति में कदम रखा और मुम्बई में एक स्थानीय पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। पर काम्बली इस क्षेत्र में भी फिसड्डी ही साबित हुए। प्रसिद्व क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता जो पूर्व में क्रिकेटर ही थें, उन्होंने भी देखा-देखी राजनीति में उतरने का मन बनाया और बिना किसी तैयारी के हरियाणा की पंचकुला विधानसभा सीट से चुनाव मैदान मेें उतर पडे। जिसका नतीजा यह हुआ कि वह चारों खाने चित्त हो गये और फिर उन्होंने कभी राजनीति की ओर मुंह नहीं किया। धर्मेन्द,्र गोबिन्दा मो अजहरूद्दीन के बारे में तो यहां तक हो गया कि जनता ने उनकी गुमशुुदगी के पोस्टर लगा दिए। जिसके कारण उन्हे बेहद अपमान का सामना करना पडा। स्थिति तो यहां तक पहुंच गयी कि वह लोग अपने क्षेत्र में जाने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाये।
16वीं लोकसभा सीट के चुनाव के लिए भी राजनीतिक दलों ने कुछ और फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों पर दांव लगाने की कोशिश की थी लेकिन वह लोग तैयार नहीं हुए। कांग्रेस ने फिल्म अभिनेता सैफ अली खां की मां और फिल्म अभिनेत्री
शर्मीला टैगोर को गुड़गांव, किके्रटर हरभजन सिंह को अमृतसर, वीरेन्द्र सहवाग को दिल्ली पश्चिमी तथा वाराणसी से मोदी के खिलाफ सचिन तेदुुंलकर को उतारने की भरपूर कोशिश की लेकिन यह खिलाडी राजनीति की रपटीली राह पर चलने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्हे पता है कि राजनीति में आने के बाद वह अपनी प्रभावी भूमिका नहीं निभा सकेगें क्योंकि वह अपने पूर्व साथियों का हश्र देख चुके थें।
ऐसे कई फिल्मी सितारे और खिलाडी हैं जिन्हेे इस बात का अहसास रहता है कि राजनीति और ग्लैमर की दुनिया के अलग-अलग रास्ते हैं। इसलिए वह राजनीति के क्षेत्र में आने से कतराते हैं। दूसरा पक्ष यह भी है कि अपने क्षेत्र में सफल अथवा असफल होने के बाद उन्हे लगता है कि राजनीति में आने के बाद वह अपनी इमेज को कैश करा सकते हैं। इसलिए वह राजनीति के मैदान में उतरते हैं। राजनीति में उतरने को लेकर जब कुछ राजनीतिक दलों ने अभिनेता सनी द्योल से सम्पर्क किया तो उनका साफ कहना था “ मै एक अभिनेता हूं और अभिनेता बनकर ही खुश हूं, पापा धर्मेन्द्र से एक बात सीखी है कोई काम कराने को लेकर कई लोगों पर निर्भर रहना पडता है, और अगर आप वादा पूरा नहीं करते तो यह अच्छी बात नहीं है“।
दरअसल, ग्लैमरस व्यक्तित्व वाले ऐसे लोगों के राजनीति में आने के पीछे जितना दोष इन लोगों का होता है उतना ही दोष राजनीतिक दलों का भी होता है। ऐसे दल अपने लाभ के लिए इन ’सेलेब्रिटीज’ को राजनीति में तो उतार देती हैं परन्तु दांव पेंचो से अनजान यह लोग परेशान होकर बाद में राजनीति से तौबा कर लेते हैं।
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News source: UP Samachar Sewa

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