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कांग्रेस की आग में भाजपा ने जलाए
हाथ |
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कांग्रेस के बागियों के सम्मान और
राष्ट्रपति शासन से भाजपा का नफा -
नुक्सान ! |
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उत्तराखण्ड के सियासी संकट पर भूपत
सिंह बिष्ट का विश्लेषण |
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Tags: Uttarakhand Samachar, UK News,
Dehradun, Bhupat Singh Bist, UP Samachar
Sewa उत्तर प्रदेश समाचार सेवा |
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Publised
on : 29 March 2016, Last updated
Time 23:45 |
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देहरादून।अगले वर्ष उत्तरप्रदेश के
साथ उत्तराखंड में भी विधानसभा
चुनाव होने हैं और छह माह के भीतर
इस पहाड़ी राज्य में चुनावी आचार
संहिता घोषित होनी है। ऐसे में
कांग्रेस की बगावत में हाथ सैंकने
के फेर में भाजपा कहीं हाथ तो नही
जला बैठी है - यही यक्ष प्रश्न भाजपा
के भावुक समर्थकों को विचलित कर रहा
है। बागी कांग्रेसी विधायकों के
पक्ष में तिकड़म लड़ाती हाईकमान के
रुख से पुराने सिंद्धातवादी निराशा
व्यक्त करते हैं।
कांग्रेसी से बगावत कर भाजपा के लिये
अपनी सरकार की बलि चढ़ाने वाले नेता
कत्तई मासूम नही है। इन बागी और
दागियों ने भाजपा को अतीत में खून
के आंसू रुलायें हैं। हरक सिंह रावत
ने बर्खास्त मुख्यमंत्री हरीश रावत
का स्टिगं दिल्ली में जारी किया था
कि उन्हें पांच करोड़ और मनमाफिक
मंत्री पद देने की पेशकश की गई है।
ऐसे मंत्रालय में वे निर्बाध करोड़ों
कमाते और मुख्यमंत्री आंख मूंद लेते।
लगभग सभी दलों का दोहन कर चुका इतना
त्यागी नेता अब भाजपा के पाले में
आने को व्याकुल हैं और भाजपा में
निहित स्वार्थों के चलते इन दागी -
बागियों को गले लगाने वाले पैरोकार
सक्रिय हैं।
अब सवाल यह है कि हरक सिंह ने पहली
बार पार्टी से बगावत नही की है ।
भाजपा से अपना राजनीतिक सफर शुरु
करने वाले हरक सिंह पहली बार कल्याण
सिंह सरकार में पर्यटन मंत्री रहे।
फिर भाजपा से मोहभंग हुआ तो मायावती
की बसपा पार्टी को पहाड़ में मजबूती
दी ओर सांसद चुनाव में जमानत जब्त
करायी। फिर कांग्रेस के सतपाल
महाराज का साथ देकर जनरल खंडूडी की
राह में रोड़े अटकाये।
नारायण दत तिवारी के नेतृत्व वाली
उत्तराखंड की पहली कांग्रेस सरकार
में कैबिनेट मंत्री बने और जैनी
कांड में उलझकर मंत्रीपद से हटाये
गये। दूसरी विधानसभा में जनरल खंडूडी
और निशंक वाली भाजपा सरकार के खिलाफ
कांग्रेस के इस दबंग नेता प्रतिपक्ष
ने जबर्दस्त जनमत उभारा था। तीसरी
विधानसभा में जब दस जनपथ ने
मुख्यमंत्री की दौड़ में नही रखा तो
पहले हरीश रावत के लिये सड़कों पर
लाबी की फिर विजय बहुगुणा और हरीश
रावत दोनों के नेतृत्व में ही अच्छे
- बुरे प्रकरणों के साथ निरंतर
कैबिनेट मंत्री पद पर आसीन रहे।
विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री बनते
ही भाजपा को करारी चोट दी और उसके
विधायक किरन मंडल से दल - बदल कराया
था। जून 2013 की केदारनाथ आपदा में
ढुलमुल प्रशासन और एरिस्टोक्रेट शैली
के लिये कांग्रेस ने विजय बहुगुणा
को हटाकर फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री
की कुर्सी पर हरीश रावत को बैठाया।
साकेत बहुगुणा निरंतर दोबार टिहरी
संसदीय क्षेत्र से भाजपा की श्रीमती
माला राज लक्ष्मी शाह से चुनाव हार
चुके हैं और विजयविजय बहुगुणा के
बेटे हैं। बागी विधायक सुबोध उनियाल
नरेंद्रनगर टिहरी से विधायक हैं और
भाजपा के धुर विरोधी माने जाते हैं।
रायपुर देहरादून से बागी विधायक
उमेश शर्मा काउ ने भाजपा के वरिष्ठ
नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को
पराजित किया है और भाजपा के मुखर
विरोधी रहे हैं। बागी विधायक अमृता
रावत ने अपने पति सतपाल महाराज के
भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस
पार्टी नही छोड़ी थी । अब भाजपा में
शामिल होने पर अमृता रावत भाजपा के
निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह
रावत की चैबटाखाल विधानसभा पर
दावेदार होंगी।
हरक सिंह रावत और शैलारानी रावत
रुद्रप्रयाग जनपद से विधायक हैं जो
कि अब भाजपा के रंग में है और अब
दोनों का अगले साल होने वाले चुनाव
में यहां से जीत पाना कठिन बताया जा
रहा है। हरक सिंह रावत ने मोदी लहर
के बीच गढ़वाल संसदीय सीट पर
कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में
किस्मत आजमायी थी और भाजपा के जनरल
खंडूडी से करारी मात खायी है।
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में इन्हीं
कांग्रेस के दागी - बागियों से जनता
में घोर निराशा और भाजपा के पक्ष
में माहौल बना हुआ है।
कुंवर प्रणव और प्रदीप बत्रा
हरिद्वार जनपद से विधायक हैं। बागी
विधायक शैलेंद्र सिंघल मंडीपरिषद के
अध्यक्ष थे और तीसरी बार कांग्रेस
के टिकट पर विजयी रहे हैं। इन दागी
विधायकों को भाजपा हाईकमान द्वारा
वीवीआईपी और उत्तराखंड के हीरों का
दर्ज़ा देने से भाजपा कार्यकर्ताओं
में निराशा पनपने लगी है कि इन
बागियों को भाजपा में एडजस्ट करने
से भ्रष्टाचार विरोधी मोदी की मुहिम
को आघात लगेगा। बेहतर है कि
उत्तराखंड कांग्रेस के बागियों को
अब उन के हाल पर ही छोड़ दिया जाये ।
अन्यथा कोर्ट - कचहरी में सरकार
बर्खास्ती के मामले में उलीझकर भाजपा
को अपयश ही प्राप्त होगा।
देवभूमि उत्तराखंड का आम जनमानस छल
- कपट की घोर निंदा करने वाला और
देश रक्षा में अपना सर्वस्व
न्यौछावर करने वाला है। अगर
उत्तराखंड में वन - खनन - शराब और
भू माफिया अपना दबदबा बना चुके हैं
तो कांग्रेस के पाप को ढोने से भाजपा
भी बराबर की दोषी बनेगी क्योकि नये
राज्यों में विधायकों के दागी - बागी
होने से उत्तराखंड अब झारखंड के
समकक्ष खड़ा हो गया है। जहां माननीयों
ने उत्तराखंड की अस्मिता को अपने
निजी स्वार्थ के लिए दागदार बना दिया
है।
भूपत सिंह बिष्ट
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सिस्टम |
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राजनीति में, कैंट से लड़ेंगी चुनाव
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बर्खास्त करने की मांग |
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आसार, केबिनेट की सिफारिश |
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खत्म-मौर्य |
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