U.P. Web News
|
|
|
|
|
|
|
|
|
     
   News  
 

   

  भारत में प्रतिवर्श 20 लाख नये मरीजों को होती है टीबी
  विश्व क्षय रोग दिवस 24 मार्च पर विषेश
Tags: UP News, TB
Publised on : 22 March 2014 Time: 20:18

लखनऊ, 22 मार्च। भारत में हर वर्श दो लाख 20 हजार लोग टीबी की बीमारी के कारण दम तोड़ देते हैं। वहीं देष में प्रतिवर्श 20 लाख नये मरीजों को टीबी हो जाती है। इनमें से पाँच लाख लोग ऐसे होते हैं जो दूसरे व्यक्तिों में संक्रमण फैलाते हैं। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विष्वविद्यालय के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रो. आर.ए.एस.कुषवाह ने दी।
डा. कुषवाहा ने बताया कि कुल टीबी के मरीजों में 10 प्रतिषत बच्चे भी टीबी के षिकार हैं। उन्होंने बताया कि पाँच प्रतिषत मरीजों में एचआईवी पॉजीटिव भी पाया जाता है। यह रोग एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है और इसे मुख्यतः फेफडे़ का रोग माना जाता है। यह फेफड़े से रक्त प्रवाह के साथ “ारीर के अन्य भागों में भी पहुँच सकता है।
कैसे फैलता है टीबी-
टीबी के बैक्टीरिया साँस द्वारा फेफड़ों में पहुँच जाते हैं। फेफड़ों में यह बैक्टीरिया अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं। इनके संक्रमण से फेफड़े में छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं। यदि व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है तो इसके लक्षण जल्दी नजर आने लगते हैं। डाक्टरों के अनुसार जो लोग हश्ट पुश्ट होते हैं उन्हें ये विशाणु हानि नहीं पहुँचा पाते हैं और “ारीर के अंदर “ाुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। जब व्यक्ति का “ारीर कमजोर पड़ता है तो ये विशाणु अपना असर दिखाना “ाुरू कर देते हैं।
सावधानी-
टीबी से ग्रस्त मरीज के सम्पर्क से दूर रहें एवं उनकी वस्तुओं का प्रयोग न करेंं अन्यथा परिवार के अन्य सदस्य को भी टीबी हो सकती है। टीबी के मरीज द्वारा जगह-जगह थूक देने से इसके विशाणु उड़कर स्वस्थ व्यक्ति पर आक्रमण कर देते हैं।
दो सप्ताह से अधिक की खाँसी हो सकती है टीबी
चिकित्सकों के मुताबिक अगर व्यक्ति को दो सप्ताह से अधिक समय से खाँसी आ रही है तो टीबी हो सकती है। खाँसी को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। इसलिए बलगम की जाँच अवष्य करानी चाहिए। यदि बैक्टीरिया मौजूद हैं तो उन्हें समाप्त किया जा सकता है। टीबी गंभीर संक्रामक रोग है। इसके बैक्टीरिया टीबी मरीज के आस-पास ही हवा में तैरते रहते हैं जो कि “वांस के माध्यम से दूसरे के “ारीर में प्रवेष कर जाते हैं। ऐसे में जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है उसको अपने आगोस में ले लेता है।
एक्सडीआर टीबी सबसे खतरनाक-डा. कुशवाहा
केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रो. डा. आर.ए.एस. कुषवाहा ने बताया कि एक्सडीआर टीबी सबसे खतरनाक है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी की अन्तिम स्टेज होती है। एमडीआर टीबी के कुल मरीजों में 07-08 प्रतिषत मरीजों को एम्सडीआर टीबी हो जाती है। डा. कुषवाहा के मुताबिक इस टीबी का इलाज बेहद कठिन होता है और दो से तीन वर्श तक इलाज चलता है। इस बीमारी में मरीज को दवा असर कम करती है बल्कि साइड इफेक्ट ज्यादा करती है इसलिए मरीज बहुत कम ही ठीक हो पाते हैं।
मरीज और डाक्टरों की देन है एमडीआर टीबी
सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डा. आषुतोश दुबे का कहना है कि एमडीआर टीबी मरीज और डाक्टरों की लापरवाही का नतीजा है। उन्होंने बताया कि अगर मरीज को उचित मात्रा में, उचित समय पर उचित दवा दी जाय तो टीबी ठीक हो जाती है। कुछ मरीजों में जब टीबी के लक्षण समाप्त हो जाते हैं तो दवा लेना बंद कर देते जो एमडीआर टीबी का कारण बनती है। इसके अलावा कुछ टीबी के मरीज साइड इफेक्ट की वजह से दवा लेना छोड़ देते हैं तो उन मरीजों को एमडीआर टीबी हो जाती है। डा. दुबे ने बताया कि एमडीआर टीबी का इलाज लैब डायग्नोसिस में ही होना चाहिए। उन्होंने बताया कि अधिकांष चिकित्सक जिनको टीबी का पूरा ज्ञान नहीं है एक्सरे देखकर ही टीबी का इलाज करते हैं ऐसे में बीमारी बढ़ती जाती है।
बच्चों में एमडीआर टीबी का खतरा अधिक
सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डा. आषुतोश दुबे ने बताया कि बच्चों में टीबी की जाँच व इलाज दोनों बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि बच्चों को टीबी संक्रमण से बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। डा. दुबे ने बताया कि बच्चों में टीबी संक्रमण होने से रोग होने की संभावना 40 प्रतिषत तक रहती है। खासकर एक साल से कम उम्र के बच्चों में एमडीआर टीबी होने के चांस ज्यादा रहते हैं क्योंकि उनकी “ाारीरिक प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है।
इनको एम डी आर टी.बी.होने की आशंका अधिक
जो मरीज टी.बी. की दवा नियमित नहीं लेते।
वह व्यक्ति जो एमडीआर टी.बी. मरीज के सम्पर्क में रहता है।
अस्पताल के कार्यकर्ता जो एम.डी.आर.टीबी मरीज के सम्पर्क में रहते हैं।
कम “ाारीरिक क्षमता के मरीज
डाट्स केन्द्रों पर टीबी की निःशुल्क दवायें उपलब्ध
टीबी की बीमारी से निजात दिलाने के लिए सरकार ने सूबे में 35551 डाट्स केन्द्रों की स्थापना की है जहाँ टीबी के मरीजों को निःषुल्क दवायें दी जाती हैं और आवष्यक जांचें भी निःषुल्क उपलब्ध हैं। इसलिए टीबी से अगर बचना है तो डाट्स केन्द्र के सही तरीके को लागू करना होगा। टीबी की दवायें डाट्स सेन्टर पर स्वास्थ्य कर्मी के निर्देष में ही खानी चाहिए।

   

News source: UP Samachar Sewa

News & Article:  Comments on this upsamacharsewa@gmail.com  

 
 
 
                               
 
»
Home  
»
About Us  
»
Matermony  
»
Tour & Travels  
»
Contact Us  
 
»
News & Current Affairs  
»
Career  
»
Arts Gallery  
»
Books  
»
Feedback  
 
»
Sports  
»
Find Job  
»
Astrology  
»
Shopping  
»
News Letter  
© up-webnews | Best viewed in 1024*768 pixel resolution with IE 6.0 or above. | Disclaimer | Powered by : omni-NET