लखनऊ,
28 मार्च 2020। (उप्रससे)। लाकडाउन के
तीसरे दिन प्रदेश की सीमा पर अचानक
प्रवासी कामगारों की भीड़ उमड पड़ी।
करीब पचास हजार की संख्या में दिल्ली,
नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव, गाजियाबाद
में विभिन्न फैक्ट्रियों, संस्थानों
में काम करने वाले लोग तथा दिहाड़ी
मजदूर अपने अपने घरों को जाने के लिए
निकल पड़े। इनमें अधिकांश लोग बिहार,
पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के
हैं। आनन्द विहार बस अड्डे, कौशाम्बी
और गाजियाबाद के बस अड़्डों पर पहुंची
इस भीड़ से भारी अफरा तफरी मच गई। जहां
एक तरफ दिल्ली से आनन्द बिहार तक रैला
नजर आ रहा था, वहीं बस अड्डे पर कदम
रखने को जगह नहीं बची। वहीं दूसरी ओर
बस अड़्डे पर बंदी के चलते एक भी वस
नहीं थी।
योगी
सरकार ने किये प्रबंध
सीमा पर उमड़े भूखे
प्यासे लोगों की जानकारी मिलने पर 27
मार्च की रात मे ही मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने अफसरों को बुला लिया और
निर्देश दिये कि बसों का इंतजाम करके
इन लोगों को गंतव्य तक पहुंचाया जाए।
इसके बाद रात में ही एक हजार बसों की
व्यवस्था की गई और ड्राइवर कंडक्टरों
को बुलाया गया। इनकों आनन् विहार बस
अड्डे भेजा गया। जहां से भरकर रात में
और दिन में लोगों को रवाना किया गया।
सरकारी सूत्रों के अनुसार आज और बसों
को लगाया गया है कुल तीन हजार बसों की
व्यवस्था करने की जानकारी मिली है। इसी
प्रकार राजस्थान बार्डर पर भी बसें
लगाकर लोगों को गंतव्य तक भेजा जा
रहा है।
मार्ग
में किया गया खाने पीने का प्रबंध
कुछ लोग बस या अन्य
साधन नहीं मिलने पर राष्ट्रीय
राजमार्ग 24 पर पैदल ही अपने
परिवार,बच्चों के साथ चल दिये। इन लोगों
की दशा देखकर प्रदेश सरकार ने तत्काल
प्रशासन से शैल्टर और भोजन की व्यवस्था
करने के निर्देश दिये। मार्ग जगह जगह
स्थानीय नागरिकों तथा स्वयंसेवी संगठनों
ने भी भोजन आदि का प्रबंध कर लोगों की
सहायता की। राष्ट्रीय राजमार्ग पर कई
स्थानों पर पुलिस थानों में भी लोगों
को भोजन कराया गया। पुलिस ने भी लोगों
की मदद की।
दिल्ली
सरकार की अदूरदर्शिता से उमड़ी भीड़
दिल्ली सरकार ने यदि
प्रवासी कामगारों के लिए राशन आदि की
समुचित व्यवस्था की होती और उन्हें
भरोसा दिया होता तो शायद ये लोग अपने
अपने घरों की ओर पलायन नहीं करते।
किन्तु दिल्ली सरकार ने न तो उनकी सुधि
ली और न ही राशन आदि का वितरण कराया।
बल्कि यह प्रचारित करा दिया कि आनन्द
विहार बस अड्डे पर यूपी और बिहार जाने
के लिए बसें लगी हुई हैं। इस सूचना पर
लोग अपने घरों से निकल पड़े। इन लोगों
को दिल्ली सरकार ने डीटीसी की बसों से
आनन्द बिहार तक पहुंचा दिया। अधिकांश
लोग पैदल ही पहुंच गए। लेकिन, यहां बसों
का कोई प्रबंध नहीं था। लोगों की भीड़
उमड़ने की सूचना जब सोशल मीडिया में
प्रचारित हुई तो यूपी सरकार ने
संज्ञान लिया और मानवता का परिचय देते
हुए तत्काल इंतजाम किये।
दिल्ली
के नागरिकों का असहयोग
बताया जाता है कि
दिल्ली के स्थानीय नागरिकों का भी
कामगारों के प्रति व्यवहार अशोभनीय रहा।
इनसे मकान खाली करने के लिए कह दिया
गया। कई स्थानों पर सूचना मिली की
किराया नहीं देने पर सामान बाहर निकाल
दिया गया। इस कारण भी लोग दहशत में आ
गए और पलायन को मजबूर हुए हैं।
बिहार
सरकार की असंवेदनशीलता
एक ओर जहां बिहार के
लोगों के लिए उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री ने रात रात भर जागकर बसों
का इंतजाम किया। इनके लिए खाने की
व्यवस्था की और बिहार सीमा तक पहुंचाने
का इंतजाम किया, वहीं दूसरी ओर बिहार
के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का
व्यवहार अत्यंत असंवेदनशील रहा।
उन्होंने कहा कि किसी भी बाहरी को
बिहार की सीमा में प्रवेश नहीं दिया
जाएगा। ये लोग जिन राज्यों में वहीं
उनके ठहरने तथा खाने की व्यवस्था की
जाए। उन्होंने अपने राज्य से एक भी बस
उत्तर प्रदेश में बिहार के लोगों को
लेने के लिए नहीं भेजी। जबकि सबसे
ज्यादा संख्या पलायन करने वालों में
बिहार के लोगों की ही है।
सामूहिक पलायन से गांवों की स्वास्थ्य
सुरक्षा खतरे में
दिल्ली, नोएडा,
गुड़गांव से हुए पलायन से उत्तर
प्रदेश के गांवों में स्वास्थ्य
सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। क्योंकि
नोएडा कोरोना प्रभावित है। यहां से
निकले कामगार बगैर थर्मल स्क्रीनिंग
के अपने अपने गांव में बसों से पहुंच
रहे हैं। हालांकि शासन ने सबको स्कूलों
में रोककर स्वास्थ्य जांच की बात कही
है लेकिन फिर भी संख्या अधिक होने के
कारण भारी संख्या में लोग चोरी छिपे
घरों को पहुंच रहे हैं। यहां पहुंच
कर ये लोग कोरोंटाइन नियमों का पालन
नहीं कर रहे हैं बल्कि आराम से लोगों
से मिजलजुल रहे हैं। इससे कम्यूनिटी
ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ गया है। पलायन
के कारण यह नई तरह की चुनौती प्रदेश
सरकार के सामने उभरी है कि कैसे गांवों
में कोरोना के संक्रमण को रोका जाए।
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