मुरादनगर।(राजकुमार)।
दूध की डिमांड़ और इसकी आपूत्ति के बीच बढ़ते असंतुलन
से मिलावट खोरों की बन आयी है। दूध की निरंंतर किल्लत
हो रही है जिसकी वजह से मूल्य तो आसमान छू ही रहे हैं
साथ ही डिमाड़ के मुताबिक आपूत्तर््िंा् भी नहीं हो पा
रही है। इसी का फ ायदा उठाकर मिलावटखोर मनमाने तरीके
से सिंथेटिक व मिलावटी दूध बेचकर जनस्वास्थ्य के साथ
खिलवाड़ कर रहे हैं। स्थिति इस कदर भयावह हो चुकी है
सूत्रो के मुताबिक सरकार को भी स्वीकारना पड़ा था कि
दूध में हानिकारण रसायन की मिलावट हो रही है। इसके
बावजूद सरकार मिलावटी दूध पर अंकुश लगाने में नाकामयाब
साबित हो रही है। हैरानी की बात यह है कि खाद्य सुरक्षा
एवं औषधि प्रशासन ऐसे दूध की बिक्री पर अकुंश नहीं लगा
पा रहा है। मानकों के अनुसार यदि एक परिवार में रोजाना
२ से ३ लीटर दूध की जरूरत होती है। इस प्रकार नगर के
आस-पास ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी यदि २ लाख मानी जाएं
तो यहां दूध की प्रतिदिन जरूरत न्यूनतम तीन लाख लीटर
है। आम दिनों में तो जैसे तैसे दूध की आपूत्ति संभव हो
पाती है पर गर्मियों के दिनों के साथ ही खासतौर पर
होली,दीपावली, ईद, रक्षा बंधन व भाईदूज जैसे अन्य
प्रमुख पर्वो पर दूध की करीब ५ से ६ लाख लीटर बढऩे
वाली अतिरिक्त मांग पूरी नहीं हो पाती। मिलावटखोर इसी
का फ ायदा उठाकर सिंथेटिक या मिलावटी दूध को आसानी से
खपा कर अपनी जेबें भरने से बाज नहीं आते।
यहां परवान चढ़ता है मिलावट
का खेल
मिलावटी दूध खपाने का खेल शहरी इलाकों के साथ ही
ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े फैला हुआ है। दूध मंडियों
में वैसे तो मौजूदा समय में बीस लीटर वाला कैन करीब एक
हजार रुपये में मिलता है। यानी एक लीटर अच्छा दूध ५०
से ५५ रुपये से कम में मुहैया नहीं है। जबकि इन स्थलों
पर तड़के से ही शुरू होने वाले दूध के काले व्यापार
में दूध का इतना बड़ा ही कैन छ: सौ से सात सौ रुपये
में मुहैया हो रहा है। मंडी में अच्छे दूध की किल्लत
बढऩे पर गली-मोहल्ले में घर-घर दूध पहुंचाने वाले
अधिकतर दूधिये इसी मिलावटी दूध की आपूत्ति करनें से नहीं
चूक रहे।
अधिकारी कथन:
इस संबंध में क्षेत्रिय फूड सेफ्टी अधिकारी का कहना था
कि विभाग द्वारा समय समय पर डेरियों के नमूने कलेक्ट
किये जाते है ओर उन्हें जाँच कराने के लिये प्रयोगशाला
में भेजा जाता है।