कोंच-उरई।
यहां हुल्कादेवी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा
ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ से कथा सुनाते हुये कथा प्रवक्ता
साधना शक्ति वृंदावन ने सत्संग के महात्म्य को बताया, कहा
कि सत्संग के बिना हरिकथा सुनने का सौभाग्य नहीं प्राप्त
हो सकता क्योंकि भगवान में दृढ प्रेम सत्संग से ही उपजता
है, विश्वास होने पर श्रद्घा उत्पन्न होती है तथा
विश्वास और श्रद्धा से अंतःकरण शुद्ध होता है।
मंदिर की महंत राजेश्वरीदेवी की सद्प्रेरणा से मिजाजीलाल
निरंजन पड़री द्वारा संयोजित भागवत कथा प्रवाह को आगे
बढाते हुये कथा व्यास ने कहा कि श्रीमद्भागवत सभी मतभेदों
का शमन कर समन्वय पैदा करने वाला महान ग्रंथ है, भागवत
कथा श्रवण मात्र से ही पापियों के पापों का नाश हो जाता
है और उसे सद्गति की प्राप्ति होती है। धुंधकारी को तो
प्रेतयोनि से मुक्ति भागवत कथा सुनने से ही मिल गई थी।
उन्होंने कहा कि भगवान व्यासजी को भी इसी ग्रंथ की रचना
करने के बाद शांति प्राप्त हो सकी थी। उन्होंने परमात्मा
के प्रेम भाव को पारिभाषित करते हुये कहा कि जो व्यक्ति
जिस रूप में भगवान का स्मरण करता है उसे उसी रूप में
भगवान का सामीप्य प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि
सर्वप्रथम भागवत कथा भगवान विष्णु ने बयालीस श्लोकों में
ब्रह्मा को सुनाई, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने
वेदव्यास को, व्यासजी ने अट्ठारह हजार श्लोकों में इस
ग्रंथ की रचना की और अपने पुत्र शुकदेवजी को पढाई। यही
कथा समय आने पर शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सप्ताह
यज्ञ के रूप में सुनाई। अंत में परीक्षित मिजाजीलाल
निरंजन व उनकी पत्नी कृष्णा दुलारी ने भागवतजी की आरती
उतारी, प्रसाद वितरित किया गया।