एकात्म
मानववाद के रूप में पं.दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय
राजनीति को अद्भुत चिंतन दिया। उन्होंने समाज जीवन में
गहरे उतर कर भारतीय राजनीति और आध्यात्म का समन्वय किया।
इसी से उपजा मानव मात्र के कल्याण और समग्र विकास का
वह मूल मंत्र जिसे भारतीय राजनीतिक चिंतन में एकात्म
मानवाद कहा गया। विकास के इस चिंतन में समग्रता है,
अन्तयोदय की विलक्षण सोचऔर आम आदमी की पीड़ा का समाधान
है।
एकात्म मानववाद के प्रणेता
पं.दीनदयाल उपाध्याय अवतरण
25 सितम्बर 1916 को हुआ।
पं.दीनदयाल उपाध्याय का जन्म मथुरा के नगला चन्द्रभान
गांव में हुआ। यह गांव उनकी ननिहाल थी। यहीं उनकी माता
जी रहती थीं। वे शिक्षा ग्रहण करन के दौरान कानपुर में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संग के सम्पर्क में आये तथा
स्वयंसेवक बन गए। इसके बाद जनसंघ की स्थापना के समय
उन्हें योजनाबद्ध ढंग से श्री गुरुजी ने राजनीति में
कार्य करने के लिए डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ
भेज दिया। वे जनसंघ के अध्यक्ष रहे तथा इसे राजनीतिक
दिशा और परिपक्तवात प्रदान की।उन्होंने संघ कार्य के
साथ-साथ हिन्दू राष्ट्रवाद के वैचारिक पक्ष को प्रबल
करने के लिए कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।
उन्होंन लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना की।
इस प्रकाशन ने पाञ्चजन्य साप्ताहिक, राष्ट्रधर्म मासिक
और स्वदेश और तरुण भारत का प्रकाशन किया। आपातकाल के
बाद पाञ्चजन्य का प्रकाशन लखनऊ के स्थान पर दिल्ली से
होने लगा।
पं.दीनदयाल उपाध्याय का
कार्यक्षेत्र प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश रहा।
हालांकि वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते पूरे
देश में ब्रमण करते थे, किन्तु उनका केन्द्र लखनऊ ही
रहा। उन्होंने संघ के वरिष्ठ प्रचारक भाऊराव देवरस की
प्रेरणा से कार्य करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे
अद्भुत व्यक्तित्व को गढ़ा। पं.दीनदयाल उपाध्याय
अत्यधिक कम आयु में ही भारतीय राजनीति और इस दुनिया से
विदा ले गए। उनका अवसान एक दुर्घटना से हुआ। मुगसराय
में 11 फरवरी 1968 को रेलवे लाइनों के बीच में उनका शव
बरामद हुआ। उनके शरीर पर चोटों के निशान थे।
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