नई
दिल्ली। (उ.प्र.समाचार सेवा)। सर्वोच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस
ने छह अन्य दलों के साथ मिलकर महाअभियोग प्रस्ताव
प्रस्तुत किया है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने
मिलकर शुक्रवार को उप राष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति
वैंकया नायडू को महाभियोग का प्रस्ताव सौंपा। कांग्रेस
के साथ छह अन्य दल सपा, बसपा, एनसीपी,
मुस्लिम लीग, सीपीआईएम और
सीपीआई भी शामिल हैं।
हालांकि
प्रस्ताव पर कांग्रेस के भीतर भी मतभेद हैं। इस पर पूर्व
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त और गृहमंत्री पी
चिदम्बरम के हस्थाक्षर नहीं हैं। साथ ही पूर्व कानून
मंत्री सलमान खुर्शीद ने प्रस्ताव का खुलकर विरोध कर दिया
है। उन्होने तो यहां तक कह दिया है कि जरूरी नहीं कि सभी
पक्ष कोर्ट के फैसले से खुश ही हों। इस प्रस्ताव के पक्ष
में 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किये हैं। इनमें 7 पूर्व
सांसद हैं। एक तरह से 64 सासदों के ही हस्ताक्षर मामने
जाएगए। हालांकि प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए 50 सांसदों
की ही जरूरत है।
प्रस्ताव देने के लिए कांग्रेस के नेता सुबह एकत्रित हुए
इन्होंने बाद में उप राष्ट्रपति से भेंटकर उन्हे
प्रस्ताव सौंपा। प्रस्ताव देने के बाद नेताओं ने प्रेस
कांफ्रेस की।
इनमें गूलाम नबीं आजाद, कपिल सिब्बल, केटीएस तुलसी, डी
राजा, बंदना चौहान शामिल थे। उधर भाजपा ने इन नेताओं को न्यायपालिका में
राजनीति पर करारा
जबाब दिया है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि यह न्यायपालिका को
धमकाने का मामला है।
राजद, तृणमूल कांग्रेस ने किया
किनारा
कई विपक्षी दलों ने
कांग्रेस के महाभियोग प्रस्ताव से खुद को अलग रखा है।
विभिन्न मामलों में काग्रेस के साथ चलने वाले राजद और
तृणमूल कांग्रेस ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया है।
क्या है
आरोपकांग्रेस के नेतृत्व
में विपक्ष के सात दलों ने चीज जस्टिस मिश्रा पर पांच
आरोप लगाए हैं। 1. प्रसाद एजूकेशनल मामले में संबंधित
व्यक्तियों को गैरकानूनी तरीके से लाभ दिया। सीबीआई ने
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस नारायण शुक्ला पर
प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और साक्ष्य दिये पर
इजाजत नहीं दी गई। 2. प्रसाद एजूकेशनल ट्रस्ट मामले में
न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं अपनायी गई। 3.
परम्परा रही है कि जब चीफ जस्टिस संविधान पीठ में होते
हैं मामले को दूसरे वरिष्ठतम जज के पास भेजा जाता है
किन्तु प्रसाद मामले में ऐसा नहीं किया गया। 4.वकील रहते
हुए गलत हलफनामे से जमीन ली और 2012 में जस्टिस बनने के
बाद जमीन वापस की। जबकि आबंटन 1985 में रद्द् हो चुका
था। 5. कुछ अहम और मह्त्वपूर्ण मामलों को विभिन्न पीठ को
आवटित करने में पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया।