बंगलौर।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 12 मई को मतदान और 15
मई की मतगणना के बाद स्पष्ट होगा कि कांग्रेस अपना
गढ़ बचा पाती है या भाजपा का अश्वमेघ घोड़ा दक्षिण
भारत में भी अपना विजय अभियान आगे बढ़ाता है।
भाजपा के लिए दक्षिण भारत में
प्रवेश का सबसे सरल द्वार कर्नाटक है। अन्यथा केरल,
तमिलनाडु, आंध्रा और तेलांगना में उत्तर भारत की
भाजपा के लिए मार्ग हमेशा कंटकाकीर्ण ही रहा है।
आंध्र प्रदेश और तेलांगना में भाजपा के खिलाफ
विशेष राज्य का दर्जा देने में वचन भंग की मुहिम
चल रही है। तमिलनाडु में भी चुनाव लाभ के लिए
कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड को स्थगित रखने का आंदोलन
भाजपा के खिलाफ है और केरल में गत वर्ष हुए
विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र एक सीट मिली
है।
कर्नाटक का चुनाव जीतने के लिए
भाजपा ने अपने स्थापित मूल्य 75 वर्ष से अधिक आयु
के नेता मंत्री पद से बाहर रहेंगे, में शिथिलता
देकर अपवाद स्वरूप बीएस यदुरप्पा पर मुख्यमंत्री
का दाव खेला है।
मोदी ने अपनी रैलियों में कांग्रेस
की सिद्धारमैया सरकार को दस प्रतिशत सरकार कहा तो
अमित शाह दबाव में जुबान फिसली अपने नेता येदुरप्पा
को ही सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री कह गए। कर्नाटक
चुनाव की बौखलाहट में अमित शाह विपक्षियों को जंगली
जंतुओं की संज्ञा भी दे चुके हैं।
कर्नाटक से केंद्रीय मंत्री हेगड़े
अपनी बेलगाम जुबान के कारण संविधान बदलने और दलितों
के लिए गली के भौंकनेवाले बयान से अब हर जगह घेरे
जा रहे हैं। गुजरात चुनाव में भाजपा को कड़ी
टक्कर देने के बाद कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस बढ़त
बनाये हुए है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कर्नाटक
चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग वाले भाजपा के सारे
तेवर और हथकंडे कापी कर लिए हैं और अमित शाह पीछे
से उनकी काट करते दिख रहे हैं। उत्तर भारत के चुनावी हथियार और
प्रबंधन दक्षिण के शिक्षित समाज में अभी टेस्ट होन
बाकिे हैं। समाज का ध्रुवीकरण धर्म, जाति और
क्षेत्र के आधार पर विषमता होने से कुछ मुश्किल पड़
रहा है।
सिद्धारमैया कर्नाटक चुनाव में मोदी
- अमित शाह फैक्टर को कम करने के लिए क्षेत्रीय
संस्कृति और अस्मिता को आगे ले आये हैं — चुनाव
प्रचार में कन्नड़ भाषा, ध्वज, जाति, वर्ग, दलित -
अम्बेडकर - संविधान, समाजिक समरसता आदि प्रमुखता
ले चुके हैं।
सिद्धारमैया ने लिंगायत, वीरशैव
लिंगायत सम्प्रदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर
अल्पसंख्यक समाज घोषित कर दिया है। भाजपा के
मुख्यमंत्री प्रत्याशी येदुरप्पा लिंगायत समाज से
हैं और अब अपने एक मुस्त वोट बैंक को बंटता हुआ
देख रहे हैं। केंद्र सरकार भी इस अप्रत्याशित
चुनावी कदम पर सहमति नही दे पा रही है क्योंकि
हिन्दू समाज के विघटन का पिटारा खुल सकता है। उधर
लिंगायत समाज के बहुतायत मठ खुलकर कांग्रेस के
पक्ष में आ गए हैं।दस प्रतिशत की काट में कांग्रेस ने
येदुरप्पा के कथित भ्रष्टाचारों के दस्तावेज जारी
किये हैं और उन्हें जेल की हवा खा चुके मुख्यमंत्री
की संज्ञा दी है। वैसे यह चुनाव बीएस यदुरप्पा
भाजपा, एचडी कुमारस्वामि जनतादल सेक्युलर और
सिद्धारमैया कांग्रेस तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों
की अग्नि परीक्षा बना हुआ है।
पिछले 2013 के विधानसभा चुनाव में
70% मतदान हुआ। कांग्रेस को लगभग 37 प्रतिशत, भाजपा
और जनतादल एस को 20 प्रतिशत और केजेपी (यदुरप्पा)
को लगभग 10 प्रतिशत मत मिले हैं। निवर्तमान
विधानसभा में कुल सीट 223, कांग्रेस -122, भाजपा
-40 व केजेपी -6, जनतादल सेक्युलर -40, निर्दलीय
9 प्रमुख घटक रहे हैं। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले केजीबी
के बीएस यदुरप्पा फिर भाजपा में आ गए। लोकसभा
2014 की मोदी लहर में भाजपा -43%, कांग्रेस-41% और
जनता दल एस मात्र11% मत प्राप्त कर सका, जबकि कुल
मतदान 67% हुआ और लोकसभा की कुल 28 सीटों में
भाजपा-17, कांग्रेस - 9 और जनतादल को 2 सीट मिली
हैं। कनार्टक की 4 एससी सीटों में कांग्रेस 3 पर
विजयी रही है।
जनता दल एस के एचडी कुमार स्वामी
वोकाल्लगा समुदाय से हैं और हसन और मांडिया जनपदों
में खासा प्रभाव है। इस बार क्षेत्रीय दल के रूप
में वजूद की लड़ाई लड़ने में, या मैं नही तो भाजपा
को देखना चाहते हैं। जनता दल के 7 विधायकों ने
कांग्रेस ज्वाइन किया है और कांग्रेस के पूर्व
विधायक एस एम कृष्णा आज भाजपा के पाले में हैं। सिद्धारमैया
ने जनता दल एस को तीसरी शक्ति न बनने देने की
रणनीति बनाई है — वो खुद देवगौड़ा के प्रभाव
क्षेत्र में जाकर चुनाव लड़ रहे हैं ताकि घर बचाने
के चक्कर में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और
उनका पूर्व मुख्यमंत्री पुत्र एचडी कुमार स्वामी
पूरे कर्नाटक में त्रिकोणीय चुनाव ना दर्ज करा पायें।
मैसूर क्षेत्र में वोकाल्लिगा के खिलाफ अन्य छोटी
दलित जातियों का और मुस्लमानों का वोट बैंक खड़ा हो
रहा है।
कर्नाटक की सीमायें मुम्बई की ओर, हैदराबाद की ओर
व दक्षिण में मलाड तटीय क्षेत्र में 104 सीटें व
मैसूर क्षेत्र में 87 विधानसभा सीटों में फैला है।
भाजपा को अबकी बार दलित विरोधी और संविधान बदलने
के आरोप भी झेलने पड़ रहे हैं और भाजपा पूरे देश
में इन से उबरने के तोड़ तलाश रही है।
समाज का एक सभ्रांत शहरी तबका भाजपा को समाज में
नफरत, कटुता और हिंसक हिंदूवाद का दोषी बताकर
प्रचार कर रहा है — प्रोफेसर कलबुर्गी व पत्रकार
दुर्गा लंकेश की हत्या से व्यथित लोकप्रिय
फिल्मकलाकार प्रकाश राज और अन्य रंगकर्मी भाजपा पर
दक्षिण संस्कृति को प्रदूषित करने की मुहिम भी
चलाये हुए हैं।
कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधी
कर्नाटक चुनाव प्रचार में आत्म विश्वास से लबालब
हैं और यहां नेहरू, इन्दिरा और राजीव गाँधी के
प्रति दक्षिण भारतीयों का लगाव राहुल गाँधी को
महसूस हो रहा है। कर्नाटक राज्य में कांग्रेस की
जीत राहुल गाँधी के नेतृत्व पर भी मुहर साबित होनी
है।
मोदी - अमित शाह की राममंदिर राजनीति के तोड़ में
राहुल गाँधी लिंगायतों के मठ, मँदिरों, मस्जिद और
गिरिजाघरों में विशेष उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
येदुरप्पा की परिवर्तन यात्रा के जवाब में राहुल
गाँधी ने कर्नाटक में आशीर्वाद यात्रा आयोजित की
हैं। सत्ता में होने के कारण सबकी लड़ाई कर्नाटक
में कांग्रेस के खिलाफ है। अभी कांग्रेस का टिकट
वितरण बाकि है लेकिन राहुल गाँधी कर्नाटक के 30
जनपदों का 90% दौरा निपटा चुके हैं।
भाजपा ने पहली लिस्ट में 72 सीटों पर टिकट जारी
किए हैं और इस में सिटिंग विधायक का टिकट कटा है।
हाल में भाजपा में शामिल टिकट पा गए हैं। शिमोघा
से भाजपा के वरिष्ठ के एस इश्वरप्पा येदुरप्पा को
टिकट देकर अमित शाह ने येदुरप्पा के समर्थकों को
निराश किया है। टिकट से वंचित एन आर रमेश, थिप्पे
स्वामी(वर्तमान विधायक), ए पत्तन शेट्टी आदि नेता
धन बल से टिकट हथियाने के आरोप लगा रहे हैं। उधर
येदुरप्पा आश्वस्त हैं - चुनाव से पहले सब मान
जायेंगे।
उधर कर्नाटक में बसे तेलुगु भाषी लोगों से आंध्र
प्रदेश के नेता राज्य को विशेष दर्जा न मिलने पर
भाजपा के खिलाफ मत देने का अभियान शुरू कर रहे
हैं।
राहुल गाँधी अपनी सौम्य छवि के साथ भाजपा को ललकार
रहे हैं — संविधान बदलना तो दूर भाजपा अब दलितों
व पिछड़ों को धमका नही सकती है। विरोधियों के लिए
अपशब्द भाषा मर्यादा भूलने का सबक भी अमित शाह को
इसी चुनाव में मिलने वाला है।
अम्बेडकर की मूर्ति पर माला डालकर मोदी मौन हो जाते
हैं जबकि भाजपा शासित प्रदेशों में दलितों के
खिलाफ नियोजित हिंसा हो रही है।
भाजपा बीएस यदुरप्पा के दमखम, अपनी हिन्दू छवि,
मोदी जादू और अमित शाह के चुनावी गणित पर दाव लगाये
हुए है।