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आलेखः संजीव
गुप्ता
Shahjahanpur. शाहजहांपुर शहर का नाम किसी
समय अंगदीया था। इस शहर का शाहजहांपुर
नामकर सन् 1646 में नबाव बहादुर खां ने
किया था। मुस्लिम शासक शाहजहांपुर के
कार्यकाल में यह क्षेत्र गंगा दुर्गा
कटेहर के नाम से जाना जाता था। तब यह पूरा
क्षेत्र राजपूतों के नियंत्रण में था।
मुस्लिम आक्रमणों के कारण राजपूतों की
शक्ति कम होती गई। जिसके कारण वे छापामार
युद्ध करने लगे। राजपूत हमला करके जंगलों
में चले जाते थे। शाहजहां यहां के राजपूतों
को सबक सिखाना चाहता था। कन्नौज यहां से
निकट था, इसलिए कन्नौज के नवाब बहादुर खां
को यहां के राजपूतों को सबक सिखाने काम
सौंपा गया। नबाव बहादुर खां ने अपने भाई
के नेतृत्व में एक टुकड़ी 1646 में भेजी।
उस समय मघई सिंह, भोला सिंह और छब्बी सिंह
का इस क्षेत्र पर शासन था। पुवायं रोड पर
स्थित चित्तौर तब चित्तोड़ के रूप में जाना
जाता था। इस स्थान पर राजपूतों और अफगानों
के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इसमें 11300
राजपूत तथा 11000 अफगान मारे गए। मघई सिंह
युद्ध में मारे गए और भोला सिंह भाग गए,
जबकि छब्बी सिंह बंदी बना लिये गए। छब्बी
सिंह ने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर
लिया और मुगल सेना में शामिल हो गए। इस
युद्ध के बाद ही इस शहर का नाम शाहजहां के
नाम पर शाहजहांपुर कर दिया गया।
शाहजहांपुर में 12 दिन रहने के बाद बहादुर
खां बलख (अफगानिस्तान) चला गया। उसने वहां
से अपने चाचा नेकनाम खां के साथ नौ हजार
अफगान स्त्री, पुरुषों और बच्चों को
शाहजहांपुर में बसने के लिए भेज दिया।
बताते हैं इनमें 52 खेल के अफगान थे। इन्हीं
के नाम पर शाहजहांपुर में 52 मोहल्ले बसे।
लेकिन प्रमाण सिर्फ 32 के ही मिलते हैं।
इनमें एमजई, निसरजई, तारीन,
दिलाजाक,बाडूजई, महमंद, बीबीजई, मानूजई,
तिलहरजई, मदारखेल,ताजूखेल, अलीजई,
चमकनी,हुंडालखेल, खलील,मुल्लाखेल, बाबूजई,
बरकजई, बंगस,सिनजई, अफरीदी, मतानी, तिराही,
बाजिदखेल, जियाखेल, मोहम्मदजई,
बाकरजई,यूनुस खेल, बफाजई, व मायूढ़ी हैं।
बिष्णु पुराण के अनुसार राजा हर्यशव के
पांच पुत्रों में राज्य को बांटा गया। उसी
के कारण इस क्षेत्र का नाम पांचाल पड़ा।
बाद में यह दो भागों में विभक्त हो गया।
उत्तरी पांचाल और दक्षिणी पांचाल।
शाहजहांपुर उत्तरी पांचाल के अहिक्षेत्र
के इलाके में था। अहिक्षत्र उत्तरी पांचाल
की राजधानी था। अहिक्षत्र का नाम पहले
परिचक्रा था। महाभारत काल में इसका नाम
अहिक्षत्र हो गया था। हर्षवर्धन के काल
628 में इसका नाम अंगदीया था। बांसखेड़ा
में मिले ताम्रपत्र में हर्षवर्धन के काल
के अंगदीया का उल्लेख मिलता है। इसमें
उल्लेख है कि अंगदीया के कुछ गांव
भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण बालचन्द्र व
भट्टस्वामी को दान दिये गए। शाहजहांपुर
1801 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन आ
गया था। इसको बरेली के कलेक्टर के अधीन कर
दिया गया था। |