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बिकरू में पुलिस उपाधीक्षक समेत आठ पुलिसजनों का
बलिदान उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए बड़ी और अपूर्णीय क्षति है। इसमें एक क्षेत्राधिकारी, दो उप निरीक्षक और पांच कांस्टेबल की जान गई। छह पुलिसजन घायल भी हुए। दो और तीन जुलाई की मध्य रात्रि के बाद दुर्दांत अपराधी विकास दुबे और उसके गिरोह के साथ चौबेपुर थाना क्षेत्र के गांव बिकरु में हुई मुठभेड़ ने कई सवाल छोड़े हैं। इन सवालों पर पुलिस
विभाग के साथ-साथ शासन, प्रशासन में मंथन जारी है। वहीं समाचार माध्यमों और सामाजिक सूचना तंत्र ( सोशल मीडिया) में भी तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं।
सभी तरफ चर्चा एक ही है कि आखिर पुलिस इतने बड़े अपराधी को पकडने में मात कैसे खा गई? इसके लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं? कौन हैं वह गुनहगार जिसके कारण अपनी पुलिस के आठ जवानों का बलिदान हो गया ? इन प्रश्नों के उत्तर के लिए जांच जारी है।
अदम्य साहस के बाद भी आपरेशन विफल
इसमें कोई दो राय नहीं है कि तीन थानों की पुलिस और क्षेत्राधिकारी देवेन्द्र कुमार मिश्र ने अदम्य साहस का परिचय दिया। इन्होंने जान की परवाह किये बगैर अपराधियों का मुकाबला किया। सभी बलिदानी पुलिसजनों ने सीने पर गोली खायी। कोई पीछे नहीं हटा, फिर भी अपराधी भारी पड़ गए और पुलिस को क्षति उठानी पड़ी। मुख्य अपराधी विकास दुबे और उसके साथी
घटना को अंजाम देने के बाद मौके से भागने में भी सफल रहे। एक तरह से कह सकते हैं कि पुलिस का ‘आपरेशन विकास दुबे’ विफल हो गया। आखिर चूक कहां हो गई ? इसी प्रश्न का उत्तर खोजा जा रहा है। क्षेत्राधिकारी ने रात 12 बजे के बाद दबिश देने का निर्णय किया था। तीन थानों की पुलिस को साथ लिया गया था। फिर भी आपरेशन को सफल करने से पहले ही पुलिस पर
घात लगाकर आक्रमण हो गया।
मुखबिर तंत्र फेल
प्रदेश पुलिस के इतिहास में पहले भी ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें पुलिस की बदमाशो, डकैतों के साथ मुठभेड़ हुई। कई बार पुलिसजन शहीद हुए। लेकिन, अंततः पुलिस ने ही सफलता पाई। चाहे वह छविराम के गिरोह का खात्मा हो या विगत वर्षों में आतंक के पर्याय रहे ददुआ का सफाया। सभी आपरेशन की सफलता के पीछे पुलिस का मजबूद मुखबिर तंत्र ही रहा। इस
तंत्र की बदौलत ही पुलिस ने बड़े से बड़े गिरोहों का सफाया कर दिया। डकैतों को उनके घरों और इलाके में जाकर ही मार गिराया। चंबल के बीहड़ों में जाकर भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुठभेड़ की। ये सभी आपरेशन तभी सफल हुए जब पुलिस ने अपराधी या डकैतों के खेमें में अपने मुखबिर खड़े कर दिये। इनके द्वारा दी गई सटीक सूचना के बाद ही पुलिस आपरेशन करती
थी। पुलिस के पास सूचना होती थी कि आखिर गिरोह में कितने लोग हैं? उनके पास कौन-कौन से हथियार हैं? गिरोह को लीड कौन कर रहा है? इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस अपनी भी तैयारी करती थी। पुलिस को कब आपरेशन करना है, किस जगह करना है, किन हथियारों की जरूरत है तथा कितना पुलिस बल चाहिए यह सब तैयारी होती थी। साथ ही अपराधी कितना खतरनाक है,
इसका भी आकलन कर लिया जाता था।
लेकिन, आपरेशन विकास दुबे में यह सब नहीं किया गया। पूरी तरह से सतही तैयारी के साथ दुर्दांत अपराधी के गढ़ में छापा मार दिया गया। पुलिस के पास सटीक सूचना नहीं थी, कि मौके पर कितने लोग हैं। गिरोह में अपराधी ने किसी अन्य गैंग को भी बुला लिया है। इनके पास अत्याधुनिक हथियार हैं। गोला बारूद भी है। गिरोह अत्यन्त खूंखार लोगों का है, जो
जघन्य वारदातें करने में माहिर है। ये सब सूचनाएं पुलिस के पास नहीं थीं। इसका एकमात्र कारण है, पुलिस का मुखबिर तंत्र फेल है। पुलिस का कोई भी मुखबिर विकास दुबे के गिरोह में नहीं था। जोकि, पुलिस को सटीक सूचनाएं उपलबध करा पाता। बल्कि, विकास गैंग के लिए पुलिस की ओर से मुखबिरी कर रहे थे। विकास के पास सटीक सूचना थी कि पुलिस किस समय दबिश
देगी। पुलिस दबिश में कितनी फोर्स है। कौन नेतृत्व कर रहा है। ये सब जानने के बाद ही विकास ने अपने गिरोह को बुलाया था। उसे पता था कि तीन थानों की पुलिस है, इसलिए उसने दो दर्जन से अधिक बदमाश बुलाए थे।
सिर्फ सर्विलांस का सहारा
पुलिस अब मुखबिर तंत्र की बजाय सर्विलांस का सहारा लेती है। जिस किसी की सचूना या लोकेशन प्राप्त करना, उसकी गतिविधियों का पता करना होता है, उसके मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया जाता है। हालांकि इससे कई बार सटीक और उपयोगी सूचना मिलती हैं। लेकिन, हर बार सर्विलांस सफल नहीं होता। क्योंकि अपराधी इतने शातिर और चालाक हो गए हैं कि वे
स्मार्ट फोन का उपयोग करने से बचते हैं। सामान्य फोन का उपयोग करते हैं, बार- बार नंबर बदलते हैं। साथ ही बेसिक और लैंडलाइन फोन का उपयोग करते हैं। इन्हें सर्सिलांस में ट्रैक करना आसान नहीं होता। इनके लिए अलग से रिकार्डिंग करनी होती है। पुलिस की मुखबिरी अब मानवीय तंत्र से हटकर तकनीकी हो गई है। इसके परिणाम कई बार बिकरू काण्ड जैसे हो
जाते हैं। जहां हमारी सारी सूचनाएं अपराधी के पास होती हैं और हम उसकी कोई सूचना लिये बगैर आपरेशन शुरु कर देते हैं। परिणामः आठ पुलिसजनों की शहादत के रूप मे सामने आता है।
पुलिस में मुखबिर तंत्र समाप्त प्रायः होने की स्थिति में है। पुलिस ने अपने मुखबिर रखने या तो बंद कर दिये हैं, अथवा उनसे संपर्क ही नहीं करती। एक समय पुलिस के थानों के अलावा बड़े अफसरों के भी जनता में सीधे मुखबिर स्थापित होते थे। ये मुखबिर उन्हें जनता के साथ-साथ पुलिसजनों की भी गतिविधियों से बड़े अफसरों को अवगत कराते थे। मुखबिर को
बनाये रखने के लिए पुलिस उनकी समस्याओं का भी ध्यान रखती थी। पुलिस को यदि सफल आपरेशन करने हैं तो मुखिबर तंत्र के फिर से विकसित करना होगा। इसके अलावा पुलिस और शासन ने ग्राम चौकीदार व्यवस्था की भी उपेक्षा की है। यह व्यवस्था भी पुलिस के लिए मददगार होती थी। ग्राम चौकीदारों की स्थिति यह है कि अनेक गांवों में अब चौकीदार हैं ही नहीं, यदि
कहीं हैं भी तो उनको समय पर मानदेय नहीं मिलता। प्रत्येक गांव का चौकीदार एक तरह से पुलिस का प्रतिनिधि ही होता था। इस तंत्र को भी फिर से सक्रिय करने की आवश्यकता है।
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
संपर्कः 3/11 आफीससर्स कालोनी, कैसरबाग, लखनऊ-226001 |