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स्काटलैण्ड की जंगे आजादी अभी खत्म नहीं हुई
के. विक्रम राव
Publised on : 20  September 2014 Time: 22:55                        Tags: Scottland

K Vikram Raoस्काटलैण्ड में ब्रिटेन की हर सत्तारूढ़ पार्टी संसदीय निर्वाचन में पराजित होती रही। केवल एक सीट मिलती रही, मारग्रेट थैचर से डेविड कैमरून तक क्योंकि विपन्न स्काटलैण्ड समतामूलक संघर्ष की उर्वरा भूमि रही जो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से टकराती रही।

आज के जनमत संग्रह में विश्व के राष्ट्रों को (भारतीय उपमहाद्वीप सहित) विभाजित करनेवाला ब्रिटेन खुद टूटने से बाल-बाल बच गया। केवल चार लाख लोग (लखनऊ के छोटे से मुहल्ले के बराबर) यदि स्काटलैण्ड की आजादी के पक्ष में मतदान कर देते तो साम्राज्यवादी ब्रिटेन द्वारा उपनिवेशों के ऐतिहासिक शोषण का दण्ड मिल जाता। स्काटलैण्ड की आजादी वाले वोट के विरूद्ध इंग्लैण्ड वालों के प्रचार अभियान थे कि यदि स्काटलैण्ड स्वतंत्र हो गया तो विश्वभर में अलगाववादी आन्दोलनों का बल मिलेगा। इसमें कश्मीर, नागालैण्ड, तो उधर बलूचिस्तान का भी उल्लेख कर दिया गया। दूसरा बिन्दु था कि विश्वविख्यात स्काच ह्निस्की महंगी हो जायेगा।

जब तीन सदियों पूर्व इन दोनों सार्वभौम राज्यों का संघ बना था तो अच्छे दिन की आशायें बलवती हुई थी। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। जब ट्यूडर वंश की अन्तिम महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने तीन सौ वर्ष पूर्व लन्दन की राजगद्दी पर अपने भतीजे स्टुअर्ट वंश के जेम्स पंचम का अभिषेक किया था तो स्काटलैण्ड के इस राजा के पास एडिनवर्ग से लन्दन जाने के लिए घोड़ागाड़ी का किराया नहीं था। मगर भरोसा था कि स्काटलैण्ड और इंग्लैण्ड के विलय से बने युनाइटेड किंगडम से पिछड़े हुए (असम के क्षेत्रफल वाले) पर्वतीय क्षेत्रवाले तथा सात सौ छोटे-छोटे द्वीपवाले इस प्रान्त का त्वरित विकास होगा। हुआ ठीक विपरीत। वही जो इंग्लैण्ड ने किया अफ्रीका तथा एशिया के अपने उपनिवेशों के साथ। कच्चे माल की लूट और तैयार माल की खपत का बाजार बनाया।

स्काटलैण्ड की आजादी की मांग के पीछे तीन खास कारण रहे भारत के स्वाधीनता संग्राम से मिलते जुलते हैं। एक था कि स्काटिश जनता पर नृशंस अत्याचार न हो। स्काटलैण्ड की हिमसिंचित पर्वत श्रृंखला के वन का काटना और पहाडि़यों (शूरवीर हाइलैण्डर्स) का नरसंहार करना ही इंग्लैण्ड की शासकीय नीति तीन सदियों तक रही। वस्तुतः स्काटलैण्ड में अपने फौजियों का नरवध का प्रशिक्षण देकर ही ये ब्रिटिश साम्राज्यवादी अपने कमाण्डरों का जलियावाला बाग, मुम्बई का अगस्त क्रान्ति मैदान, बलिया आदि विद्रोही स्थलों पर भेजते थे। दूसरा है स्काटलैण्ड के खनिज पदार्थ, विशेषकर कच्चा तेल सस्ते में लेना। स्काटलैण्ड का तीसरा प्रतिरोध था कि अनावश्यक युद्धों में (ईराक, सीरिया, बोस्निया आदि) में स्काट सैनिकों की बलि देना और परमाणु शस्त्र को त्राइदेन्ट नामक स्काट नगर में निर्मित करना। स्काटलैण्ड अपनी विपन्नता के कारण इसे सहता रहा।

अंग्रेजी भाषा के प्रथम शब्दकोष के रचयिता डा. सैमुअल जांसन ने जुई के दाने को परिमाणितकिया था कि ”अनाज जिसे घोड़े तथा स्काटजन खाते हैं।“ साहित्यकार से राजनयिक तक इंग्लैण्ड के सभी पुरोधाओं का अपने इस द्वितीय उपनिवेश के प्रति दृष्टिकोण तथा सोच ऐसी ही रही। इंग्लैण्ड द्वीप का पहला उपनिवेश उससे सटा हुआ प्रान्त वेल्स था जो आप भी छटपटाता है, शोषित है। स्काटलैण्ड दूसरा था। आयरलैण्ड को तो धर्म के आधार पर (प्रोटेस्टेन्ट उत्तर और कैथोलिक दक्षिण) साम्राज्यवादियों ने तकसीम कर दिया था। भारत के चैथे राष्ट्रपति वी.वी. गिरी मुक्त आयरलैण्ड के संघर्ष में शामिल थे। इसीलिए उन्हें डबालिन से निस्कासित कर दिया गया था। आइरिश नाटककार जार्ज बर्नार्ड शा ने जवाहरलाल नेहरू को लिखा भी था कि ”उस बूढे़ ब्रिटिश शेर ने मेरे स्वराष्ट्र की भांति तुम्हें भारत को भी धर्म के आधार पर विभाजित कर दिया।“

अमूमन इंग्लैण्ड से आये सत्तासीन अंग्रेजों को भारतीय उपनिवेश के विकास में रूचि नहीं रही। मगर जो शासक स्काटलैण्ड प्रान्त से भारत आये उनका दिल इन शोषित और पीडि़त गुलामों के लिये धड़कता रहा। मसलन बम्बई और मद्रास प्रान्तों में शिक्षा की शुरूआत उन गवर्नरों से किया जो स्काट थे। मुम्बई तब (1836) एक मछुआरों का टापू था जब माउन्टस्टुअर्ट एलफिंस्टन ने टाउन हाल बनवाया और विश्वविद्यालय की नींव रखी। उनके नाम का कालेज आज भी लब्धप्रतिष्ठित है। वे इतिहासवेत्ता थे। गनीमत रही कि काशी में वे अवध के नवाब वाजिदअली शाह के सैनिकों द्वारा कातिलाना हमले से बच गये, भाग गये। तब वारेन हेस्टिंग जालिमाना तरीके से काशी नरेश चेत सिंह, अवध की बेगमों आदि की रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला रहा था। उनके उत्तराधिकारी जान मेल्काम भी स्काटलैण्ड से आये थे जिन्होंने गवर्नर के पद से बम्बई प्रान्त में भारतीय कर्मियों की प्रशिक्षण द्वारा ऊँचे पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चलाई। उनका स्वामीनारायण महंत से सामीप्य था जो गुजरात क्षेत्र मंे वैष्णव धर्म का प्रचार कर रहे थे। लेकिन मद्रास प्रान्त के गर्वनर टामस मनरो का उदाहरण तो आज भी दक्षिण भारत में सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने प्रतिष्ठित प्रेसिडेंसी कालेज की स्थापना कर स्नाकोत्तर शिक्षा की बुनियाद रखी। राजा टोडरमल ने जो काम मुगलराज में उत्तरी भू-भाग में किया टामस मनरो ने वैसी ही रैय्यतवारी प्रणाली दक्षिण में की जिससे काश्तकारों को शोषण से बचाया गया। एक बार वे बल्लारी जनपद (तब आंध्र मगर आज कर्नाटक) में स्थित मंत्रालय के स्वामी राघवेंद्रस्वामी मठ में गये। वे मठ की सम्पत्ति को कब्जियाने के आदेश के पालन हेतु गये। मगर द्वेत मत का अध्ययन द्वारा अनुप्रणित होकर सारी सम्पत्ति मठ को दे दी। आप भी कड़पा (आंध्र प्रदेश) के मन्दिर में टामस मनरो की प्रतिमा की आराधना होती है। वे कडप के कलेक्टर थे। चैन्नई की मध्य-भाग में उनकी धुड़सवार मूर्ति लगी है। किसी ने तोड़ी भी नहीं क्योंकि स्काटलैण्ड का यह व्यक्ति भारतीयों का हितैशी रहा। तेलुगु और तमिलभाषी ढाई सदियों बाद भी मनरो को मनरालप्पा के नाम से याद करते हैं।

इनमंे भारत को योगदान के स्वरूप में तीन महापुरूष स्मरणीय है। कालिन कैम्पबेल देहरादून आये थे और भारत का प्रथम भौगोलिक मानचित्र बनाया। उनके बाद सर्वेयर-जनरल कार्यालय बना। भूगोल शास्त्री की भांति वनस्पतिशास्त्री भी स्काटलैण्ड से आये। नाम था एलेक्सैण्डर किड्ड, जिन्होंने कलकत्ता का विश्वविख्यात बोटेनिकल गार्डेन बनाया जहां देश का प्राचीनतम वटवृक्ष हर दर्शक के आकर्षण के केन्द्र है। डेविड ह्यूम स्काटलैण्ड के दार्शनिक थे जिनकी साम्राज्यवाद-विरोधी रचनाओं से भारतीय राष्ट्रवादी को अपार प्रेरणा मिली थी।

लेकिन सर्वाधिक भारतभक्त रहे राष्ट्रीय कांग्रेस के चैथे अध्यक्ष तथा प्रथम गैर-हिन्दुस्तानी अध्यक्ष जार्ज यूल (1888) जिन्होंने इलाहाबाद सम्मेलन का सभापतित्व किया। कोलकता नगर के शेरिफ (महापौर जैसे) रहे।

यदि स्काटलैण्ड से भारत आये इन राजनयिकों की चलती तो भारत को स्वायत्त़्ाता स्वतंत्रता से चवालीस वर्ष पूर्व ही मिल जाती स्काट सोशलिस्ट नेता और भारतमित्र रेम्से मैकडोनल्ड तब ब्रिटेन में साझा सरकार के प्रधानमंत्री थे। प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया ताकि भारतीय उपनिवेश का मसला हल हो। पर मुस्लिम लीग के अडि़यलपन से यह संभव न हो पाया। संसद में कन्जेर्वेटिव पार्टी के दबाव से लेबर पार्टी असहाय थी। मैकडोनल्ड राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता करने हेतु भारत आनेवाले भी थे।

लेकिन इतना सन्तोष स्काटलैण्ड के प्रशंसक भारतीयों को जरूर होगा कि अब इक्यावन प्रतिशत वोट पाये इंग्लैण्ड समर्थकों द्वारा 48 फीसदी स्काटलैण्ड स्वाधीनता प्रेमियों का शोषण खत्म करना पडे़गा। विकास की गति में तेजी लानी पड़ेगी। केवल स्काटलैण्ड का तेल ही नहीं लूटना, मगर उसके आय को इंग्लैण्ड को साझा करना पड़ेगा।

यहां स्काटलैण्ड के इतिहास से एक उपयुक्त घटना का उल्लेख आवश्यक है। बाल पाठक सर्वत्र स्काटलैण्ड के राजा राबर्ट ब्रूस की कहानी पढ़ते थे, कि किस प्रकार गुफा में जाल बुनतें मकड़ी को गिरते उठते देखकर इंग्लैण्ड से पराजित स्काट राजा प्रेरित हुआ और अन्ततः युद्ध जीता। यह किस्सा आज भी बोधक है, सूचक है।

   

News source: U.P.Samachar Sewa

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