ऋग्वेद
काल से ही अयोध्या हिन्दुओं के लिए पवित्र
भूमि रही है। ऐसा नहीं है कि आस्था सिर्फ
कपोल कल्पित कथाओं से ही पैदा हो जाती है।
मेरा मानना है कि किसी की आस्था के पैदा
होने में तर्क और इतिहास की भी महती भूमिका
होती है। बगैर इतिहास और तर्क के आस्था
वटवृक्ष का रूप नहीं धारण कर सकती, यह
सत्य है।
श्रीराम
राम समाज के हर घर में, विश्व के कौने कौने
में इसलिए नहीं व्याप्त हो गए कि वह मिथक
थे। राम इसलिए व्याप्त हैं कि क्योंकि वह
व्यक्ति थे। जब वह व्यक्ति थे तो उनका
जन्मस्थान भी होगा। वह अयोध्या ही है, यह
परम सत्य है। उससे बड़ा सत्य यह है कि जहां
विवादित ढांचा था, वही उनका जन्मस्थान है।
जब छह दिसम्बर 1992 को ढांचा गिराया गया
तो वहां मलवे में से सिवाय इस सत्य के कि
वहां मन्दिर ही था और कुछ नहीं निकला। जो
भी शिलाखण्ड, चौदह कसौटी के नक्काशीदार
स्तम्भ जो आज भी सरकार के पास सुरक्षित
हैं। अगर हमारे गऱ में कोई जबरन घुस जाए
और कब्जा कर ले तो क्या वह घर उसका हो
जाएगा। यही कार्य भगवान राम के जन्मस्थान
पर किया गया था। यहां जबरन कब्जो करके
मन्दिर को गिराकर मस्जिद बनायी गई थी।
इसीलिए विवादित ढांचे का ढेर मन्दिर होने
का साक्ष्य बन गया। मलवे से मिले तथ्यों
से प्रमाणित हुआ कि वहां विशाल मन्दिर था।
सातवीं शताब्दी के वैष्णव
मन्दिर के प्रमाण
ढांचा विध्वंस के बाद कारसेवकों ने मसवे
से 250 से भी अधिक कला एवं वास्तु संबंधी
अवशेष निकाले, जिन्हें वहां से 100 मीटर
दूर रामकथा कुंज में रखा गया। उत्तर
प्रदेश सरकार ने इन अवशेषों को तीसरे
सप्ताह में अपने कब्जे में ले लिया था।
इनमें अनेक लिखित अभिलेख, मूर्तियां,
वास्तु अवशेष, फारसी अबिलेख, स्तम्भ शिरदल,
अलंकृत पाषाण, देवी देवताओं की मूर्तियां
आदि शामिल हैं। ये सभी अभिलेख और प्रमाण
सातवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी
के बीच के हैं।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है
कि इस पाषाण सग्रह में से विष्णु के
दशावतारों की खण्डित मूर्तियां प्राप्त
होना है। जो यह प्रमाणित करता है कि यहां
वैष्णव मन्दिर था।
गहड़वाल राजा गोविन्द
चन्द्र
बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उसी काल में
गहड़वाल राजा गोविन्द चन्द्र के शासन काल
में यहां निर्मित विष्णु हरि के मन्दिर को
भी तोड़ा था। छह दिसम्बर के विध्यंस में
जो प्रमाण मिले, उनमें गह़वाल राजा के
सामन्त का एक शिला लेख भी मिला है। इसमें
यहां विष्ण हरि मन्दिर का उल्लेख किया गया
है। यह एक समकालीन प्रमाण है। यह पांच फीट
लम्बा तथा सवा दो फीट चौड़ा है। आयताकार
शिलाफलक है। इसमें बीस पंक्तियां लिखी
हैं। इनकी भाषा संस्कृत है तथा पद्य में
लिखा गया है। लिपि देवनागरी है। इसपर लिखा
है- श्रीमान नयनचन्द्र ने राजाओं के गुरु
गोविन्दचन्द्र के प्रसाद से साकेत मण्डल
का आधिपत्य प्राप्त किया था। इनका
शासन 1114 ईश्वी से 1154 ई तक रहा। इसी
काल मे गर्भगृह से लेकर कलश तक का निर्माण
पूर्ण किया गया था। विष्णु हरि के मन्दिर
के निर्णाण की घोषणा करने वाला बीस
पंक्तियों का यह संस्कृत शिलालेख मन्दिर
की दीवार पर उचित स्थान पर लगाया गया होगा,
जोकि विध्वंस के समय प्राप्त हुआ।
अब्दुर रहमान चिश्ती
अब्दुर रहमान चिश्ती ने मीरात-ए-मसूदी में
विस्तृत वर्णन किया है कि 1032-33 में
सालार मसूद ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया
था। वह राजा सहरदेव के हाथों बहराइच में
मारा गया था। किन्तु इसके पहले उसने साकेत
में डेरा डाला था। उसने जन्मभूमि के
मन्दिर को 1033 में ध्वस्त कर दिया था।
इसके पश्चात ही राजा गोविन्द चन्दर ने यहां
पुनः मन्दिर का निर्माण कराया था।
( लेखिका मुलतः अयोध्या निवासी
वरिष्ठ पत्रकार और रामजन्मभूमि आन्दोलन की
सक्रिय कार्यकत्री रही हैं )
|