गोमुख
ग्लेशियर के तेजी से पिघलने पर सरकार ने
रस्म अदायगी का बयान जारी किया है इस से
गंगा मां को लेकर चिंतायें घिर आयीं हैं।
राष्ट्रीय नदी, ऐतिहासिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक धरोहर गंगा की उद्गम स्थली
गोमुख का उजड़ना सामान्य नहीं है। उमा
भारती के संवेदनशील नेतृत्व में गंगा की
सफाई का अभियान अरबों रुपयों को होम करने
की कवायद भर नहीं, बल्कि मोदी सरकार की बड़ी
उपलब्धि बनने वाला कार्यक्रम है। उमा भारती
को सभी मंत्रालयों और विभागों का पूरा
सहयोग मिलने से ही देश की नदियों का
अस्तित्व बच सकता है।
गंगा का प्रवाह तो अब देवभूमि उत्तराखंड
में ही निर्मल नहीं रहा । सत्ता के अनैतिक
गठजोड़ से पनपे रेत -बजरी के अवैध और
अनियन्त्रित खनन ने मां गंगा का स्वरुप
बिगाड़ना शुरु कर दिया है।
हरिद्वार-ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर,
रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली से लेकर
बद्रीनाथ धाम तक होटलों और बस्तियों का
मैला गंगा जी में बहाने पर कोई अंकुश नहीं
है।
भागीरथी और अलकनंदा के संगम से बनती है -
गंगा !
बद्रीनाथ
धाम के पास वसुधारा से अलकनंदा निकलती है।
उत्तराखंड मध्य हिमालय में है। हिमालय में
15 हजार फिट पर स्थित तिब्बत में मौजूद
मानसरोवर झील को जम्मू - कश्मीर, हिमाचल,
उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, सिक्किम और
अरुणाचल प्रदेश में बहने वाली सभी नदियों
का जल स्रोत माना जाता है। अलकनंदा में
मिलने वाली प्रमुख नदियां सरस्वती, विष्णु
गंगा, नंदाकिनी, पिंडर गंगा और मंदाकिनी
हैं।
ऋषिकेश से 70 किमी दूर भागीरथी और अलकनंदा
का संगम स्थल देवप्रयाग है। यहीं से
भागीरथी और अलकनंदा मिलकर गंगा बन जाती
हैं। इन दोनों नदियों का जल यहां से गंगा
कहलाता है। बद्रीनाथ धाम से एक दुगर्म
रास्ता कालिंदी ग्लेशियर, नंदनवन होकर
गोमुख पहुंचता है। गोमुख में भागीरथी नदी
का उद्गम है। यह ग्लेशियर दस किलोमीटर के
दायरे में फैला है और भागीरथी की नन्ही
धारा के साथ सफेद बर्फ के टुकड़े भी बहकर
ग्लेशियर के अंदर से निकलते हैं। सो कहा
जा सकता है कि बद्रीनाथ के आगे गंगा का
स्वरुप अलकनंदा और दूसरी ओर की धारा
भागीरथी है और दोनो धारायें देवप्रयाग में
गंगा का स्वरुप लेती हैं।
गोमुख से 18 किलोमिटर दूर गंगोत्री धाम
है। गंगोत्री में चार धाम यात्रा के दौरान
ही जनजीवन सक्रिय रहता है। अन्यथा गंगोत्री
मंदिर के कपाट बंद होने पर सर्दियों में
यहां के मूल निवासी उत्तरकाशी और डुंडा तक
हर साल अपने दूसरे निवास के लिए पलायन करते
हैं। उत्तरकाशी जनपद का यह सीमांत निलांग
- कोपांग घाटी का इलाका तिब्बत तक फैला
हुआ है और इस की सुरक्षा का जिम्मा
आईटीबीपी और एसएसबी के जिम्मे है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल गोमुख ग्लेशियर और
पर्यावरण को बचाने के लिए उत्तरकाशी से
गंगोत्री तक सौ किलोमीटर के दायरे में
व्यवसायिक गतिविधियों को नियंत्रित रखना
चाहता है। वोट बैंक और माल कमाने के लिए
सभी पार्टी के नेता इस कानून का विरोध कर
रहे हैं। उत्तरकाशी को बचाने के लिए
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
ने वर्णावृत पर्वत के भूस्खलन को बचाने के
लिए करोड़ों रुपयों की योजना अपने
प्रधानमंत्रित्व काल में चलायी थी और आज
फिर इस सीमांत जनपद और गंगा को बचाने के
लिए कानून की आवश्यकता आन पड़ी है।
आस्था को बाजारवाद से जोड़ने पर मैली हो
रही गंगा मां !
उत्तराखंड
में आज चार धाम यात्रा पर्यटन बनती जा रही
है। बद्रीनाथ - केदारनाथ - गंगोत्री और
यमुनोत्री धाम में होटलों की बाढ़ आ गई
है। अंधाधुंध निर्माण कार्यों से जल, जंगल,
रेत - बजरी और गंगा पर भारी दबाव बना हुआ
है। गंगा और दूसरी नदियों पर अवैध -
अनियोजित खनन और बांध परियोजनाओं ने
पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है। गंगा
को बोतलों में भरकर घर - घर पहुंचाने के
लिए डाकघरों को शामिल करने का विचार है।
हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को कई चैनल
लाइव दिखाकर पैसा बना रहे हैं। धार्मिक
आस्था को बाजारवाद और उपभोक्तावाद से
जोड़ने पर धर्म और जीवन मूल्यों दोनों की
तबाही का रास्ता खुल गया है।
उत्तराखंड में जहां चार धाम यात्रा की
व्यवस्था तिरुपति - तिरुमला देवस्थानम्
जैसी आदर्श होनी चाहिए थी वहां होटलों और
पांच सितारा धर्मशालाओं को बढ़ावा देकर
सरकार ने धार्मिक आस्था से ज्यादा पर्यटन
को मान लिया है। पर्यटन उद्योग की रियायतों
को तुरंत धार्मिक स्थलों से बाहर किया जाना
चाहिए और धार्मिक - तीर्थाटन और पर्यटन के
स्थलों का भेद भी स्पष्ट होना चाहिए।
बद्रीनाथ - केदारनाथ मंदिर समित (बीकेटीसी)
में राजनेताओं की घुसपैठ ने नये राज्य की
सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान दिया है।
बद्रीनाथ - केदारनाथ मंदिर समिति कुछ खास
लोगों की सेवा - टहल में लगी हैं। देश -
विदेश से आये तीर्थयात्री सुविधाओं के लिए
तरस जाते हैं।
बद्रीनाथ और केदारनाथ धामों के होटल अपना
मैला गंगा और मंदाकिनी में ही बहा रहे
हैं। कुछ होटलों के भवन तो बद्रीनाथ धाम
में भगवान के मंदिर से भी विशाल हैं। जून
2013 में छह हजार से अधिक नागरिकों की मौत,
गंगा और इस की सहायक नदियों के मुहाने पर
कब्जा जमाये होटल और बस्तियों की तबाही के
बाद भी अनियोजित पर्यटन उद्योग से आंखे
मूंदे अधिकारियों की लापरवाही बरकरार है।
निर्माण में पर्यावरण मानकों की हो रही
अनदेखी
एनजीटी ने गंगा को राफटिंग कैम्पों की
गंदगी से बचाया अब टीएचडीसी पर भी शिकजां
जरुरी है। गंगा का निर्बाध शोषण अंधाधुंध
निर्माण कार्यों से लेकर सड़क और बांध
परियोजनाओं में पर्यावरण मानकों की अनदेखी
करने से हो रहा है। विगत तीन दशकों से
उत्तरकाशी शहर में हर साल बाढ़ और भूस्खलन
निरंतर एक प्रकोप के रुप में विनाशकारी बना
हुआ है। उत्तरकाशी से भटवाड़ी तक गंगा के
किनारे इस विनाश लीला के अवशेष देखे जा
सकते हैं।
साल में कई बार भूस्खलन और रास्तों के बहने
से उत्तरकाशी का संपर्क शेष भारत से कट
जाता है और यह रास्ता चीन सीमा पर स्थित
है। भारी मशीनों के उपयोग से गढ़वाल
हिमालय में पहाड़ों के दरकने के मामलों
में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। फलस्वरुप
प्रत्येक बारिश में मार्गों का अवरुद्ध
होना आम बात हो गई है।
भारत की प्रमुख जल विद्युत परियोजना टिहरी
बांध से गंगा में प्रदूषण का प्रभाव अब
चिन्यालीसौड़ में असहनीय होकर उभर रहा है।
गंगा के निर्मल प्रवाह को रोककर टिहरी में
बांध यानि एक झील का निर्माण किया गया है।
टिहरी से चिन्यालीसौड़ तक फैली इस झील का
पानी अवरुद्ध होने से अब "सडांध" पैदा करने
लगा है। झील में गिरे जानवरों के शव और
गंदगी की महक चिन्यालीसौड़ में महामारी
फैला सकती है। टीएचडीसी अपनी इस परियोजना
से अरबों रुपयों का लाभ ले रही है और गंगा
को निर्मल प्रवाह और प्रदूषण मुक्त रखने
का दायित्व भारत सरकार की इस कंपनी पर है।
लेकिन टीएचडीसी के अधिकारी अपनी इस
जिम्मेदारी से लापरवाह बने हुए हैं।
गंगा और वन बचने से ही उत्तराखण्ड होगा
खुशहाल
उत्तराखंड
में चार धाम यात्रा के अलावा हिमालय दर्शन
देश - विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करता
है। लेकिन उत्तराखंड की आबो - हवा को
प्रदूषण मुक्त रखे बिना यह संभव नही हो
सकता है। गंगा और बन बचाकर ही उत्तराखंड
खुशहाल रह सकता है। ऋषिकेश से शिवपुरी के
बीच राफटिंग कैम्पों ने पिछले सालों में
गंगा में गंदगी का कहर बरपा रखा था। नेशनल
ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) के आदेश पर
ही इन राफटिंग कैम्पों को गंगा तट से दूर
किया जा सका है। लेकिन, हरीश रावत सरकार
ने इन राफटिंग कैम्पों के कोर एरिया गूलर
- शिवपुरी के बीच शराब का नया ठेका खोलकर
उत्तराखंड में गोवा की तर्ज का टूरिज्म
खोलने का रिस्क उठाया है। एडविंचर टूरिज्म
के नाम पर नशे को परोसना युवाओं और देश के
हित में नही है।
गंगा संरक्षण से भारत की संस्कृति - सभ्यता
बच पायेगी !
उत्तराखंड के प्रख्यात लोकगायक प्रीतम
भरतवाण मानते है कि देव भूमि में अचानक
प्राकृतिक आपदाओं का कहर बरपना हमारे देवी
- देवताओं की नाराजगी से संभव है। हम अपनी
संस्कृति को भूलकर मंदिरों और नदियों की
पवित्रता को दूषित करते जा रहे हैं।
देवताओं का आह्वान करने की पूजा पद्धति
जागर में सिद्धस्थ प्रीतम भरतवाण को
उत्तराखंडी समाज देश - विदेशों में
आमंत्रित करता है।
भारत की हजारों साल की विरासत और सभ्यता
मां गंगा के तट पर फलते - फूलते आयी है।
उत्तराखंड में हरिद्वार से शुरु होकर
उत्तरप्रदेश में कानपुर, इलाहाबाद, बनारस,
बिहार में पटना से लेकर बंगाल के गंगा
सागर तक अनेक बोली - भाषाएं और समाज गंगा
मां के साथ 'तरने और तारने' का अटूट रिश्ता
बनाये हुए है। आज गंगा - यमुना में
प्रदूषण का स्तर चरम पर है। जहां भागीरथी
गंगा का निर्मल प्रवाह टिहरी बांध ने
समाप्त कर दिया है, वहीं अलकनंदा का
प्रवाह श्रीनगर गढ़वाल की जलविद्युत
परियोजना के कारण बाधित हो रहा है। गंगा
को खुले आकाश के नीचे कैसे निर्मल प्रवाह
में रखा जाए - उमा भारती के लिए सबसे बड़ी
चुनौती है।
भागीरथी और अलकनंदा पर बन रहीं विद्युत
परियोजनाओं ने गंगा के निर्बाध प्रवाह को
रोका और प्रदूषित किया है। सरकारी एजेंसियों
का दायित्व है कि इन बांधों में निरंतर
सफाई हो, ताकि हरिद्वार, इलाहाबाद और
वाराणसी में गंगा मां के जल का आचमन करने
वाले अमृत पान कर सकें।
Bhupat Singh Bist
Freelance
Journalist
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