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भारतीय
जीवनमूल्य का परिचय सिन्धु नदी हैं |
सिन्धु ने भारतवर्ष पर हुए अनेकों आक्रमणों
को रोका है | हिन्दू, हिंदिया या
हिन्दुस्थान का सम्बन्ध देश की प्राचीन नदी
सिन्धु से है जो सुदूर उत्तरी हिमालय
कैलाश-मानसरोवर से अपने सिंह मुखी उदगम
श्रोत से निकल कर कुल 2440 किलोमीटर लम्बी
यात्रा तै करते हुए अरब सागर में जा कर
मिल जाती हैं | यह स्थान अब पाकिस्तान का
हिस्सा है| कभी यह सम्पूर्ण नदी भारत में
बहती थी परन्तु अब केवल 160 किलोमीटर का
भाग भारत के लेह – लद्दाख में पड़ता है |
आज से 5000 वर्ष पहले दुनिया की प्राचीनतम
सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन-जोदारो)इसी नदी
के किनारे विकसित हुई थी | स्थानीय भाषा
में वहां स का उच्चारण ह होता है अतः
सिन्धु हिन्दू कहा जाने लगा और देश का नाम
हिन्दुस्थान पड़ा |अंग्रेजो ने इस नदी को
“इंडस “ नाम दिया जिसके किनारे बसी सभ्यता
को इंडिया कहा जाने लगा | इस नदी का हमारे
लिए सांस्कृतिक महत्त्व है अतः इसका दर्शन
,स्पर्श व् स्नान परम सौभाग्य की बात है |
हमारी सभ्यता तीर्थ एवं त्योहारयुक्त है |
सन 1974 से पूर्व लेह-लद्दाख में आम लोगो
का प्रवेश बंद था ,लोग अनभिग्य थे ,कोई वहां
जाता तो स्थानीय लोग उसे विदेशी समझते थे
| यह क्षेत्र हिमालयन रेगिस्तान है | आबादी
कम है| एक स्क्वायर किलोमीटर में 10
व्यक्तियों की आबादी का अनुपात आता है |
केवल 2 इंच वार्षिक वर्षा होती है |
पहाड़ियां नंगी वनस्पति विहीन हैं | प्राण
वायु कम है | समुद्रतल से 17000 -18000
फीट की उचाई का यह अपर हिमालयन क्षेत्र
इश्वर की उपस्थिति का भान कराता है | लेह
की कुल आबादी लगभग 3 लाख है जिसमें बौद्धों
की संख्या 1 लाख 55 हजार के लगभग है | लेह
के देवता भगवान बुद्ध हैं | लेह की सुन्दर
घाटी में शहर की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं
| 4000 के लगभग छोटे बड़े होटल हैं |
एअरपोर्ट है अतः लेह दिल्ली,जम्मू ,व्
श्रीनगर के हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है |
आकाशवाणी, दूरदर्शन के केंद्र वहां
स्थापित हैं,जो स्थानीय भाषा,बोली व्
संस्कृति के उत्थान में रत हैं |लेह में
कोई भिखारी नहीं ,समृद्धि का यह क्षेत्र
है | कर्ज मुक्त, बीमारी मुक्त ,टकराव
मुक्त जाति विहीन समाज का जन्मदाता है लेह
| घाटी में नैसर्गिक सुन्दरता बिखरी पड़ी
है | सर पर मैला ढोने की यहाँ कभी परंपरा
नहीं रही | कोई किसी की जाति न जानता है,
न पूछता है | सभी सब काम कर लेतें हैं |
मात्रि सत्तात्मक समाज है | समाज की मुखिया
नारी होती है |
सड़क मार्ग से जाने के दो रास्ते हैं |पहला
जम्मू-श्रीनगर-सोनमर्ग –बालटाल-कारगिल-द्रास
होते हुए लेह पहुचे | दूसरा रास्ता
चंडीगढ़-मनाली-रोहतांग पास –केलोंग,सरचू
होते हुए लेह पंहुचा जा सकता है | केलोंग
चन्द्र,भागा,चिनाव व् सिन्धु नदियों का
संगम स्थल है यह मार्ग | जीवन मूल्य व्
खुशबूदार मौसम से परिपूर्ण यह मार्ग
बाइकर्स सैलानियों को भी बहुत प्रिय है |
सन 1962 के भारत –चीन युद्ध में अक्साई
चीन का अधिकांश भाग चीन ने कब्ज़ा लिया |
चीन की साम्राज्यवादी सरकार ने तिब्बत पर
कब्ज़ा कर लिया,जिसके कारण महादेव शिव का
आदि निवास कैलाश मानसरोवर चीन अधिकृत
क्षेत्र में चला गया |जब तिब्बत आजाद था
तो केवल 13 रास्ते (दर्रे )भारत की सीमा
पर थे |कुल 70 सैनिक सीमा पर डंडा ले कर
पहरा देते थे |आज चीनी साम्राज्यवादी
विस्तारवाद के कारन 2.5 लाख सैनिक चीन ने
तैनात कर दिया है | रेल लाइन और एयर बेस
का जाल बिछ गया है |स्कार्दू-म्यामार
मार्ग ,जिसकी कुल लम्बाई 4000 की.मी.है
सीमा पर बन कर तैयार है जिस पर दिनभर में
4 बसें केवल चलती है | आज हर भारतीय के मन
में अभिलाषा है कि कैलाश-मानसरोवर,तिब्बत
चीन से मुक्त हो | लद्दाख का पूरा हिस्सा
हमारे पास हो | पाकिस्तान अधिकृत काश्मीर
भारत को वापस मिले |
भारत
कटेगा नहीं – हम घटेंगे नहीं ,इस संकल्प
के साथ देश के प्रत्येक नागरिक में देश के
प्रत्येक इंच भूमि के प्रति प्यार उत्पन्न
हो ,प्यारा भारत,हमारा भारत ,सारा भारत ,एक
भारत का संकल्प ले कर लाल कृष्ण आडवानी,और
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सन्यासी
प्रचारक इन्द्रेश जी ने वर्ष 1995-96 में
लेह की यात्रा की तथा देशवासी लेह में आकर
सिन्धु नदी का दर्शन-पूजन करें,इसे तीर्थ
बनायें जिससे एकता की भावना जगे ,इस
प्रकार का प्रस्ताव लेह के प्रबुद्ध
नागरिकों के समक्ष रखा | इस प्रस्ताव के
रखते ही एक घटना घटी| लेह के बुद्धिस्ट
अशोसिएशन ने इसे अपने समाज के हिन्दुकरण
के एजेंडा के रूप में लिया और चेतावनी दी
की हम प्रति वर्ष आडवानी जी के बंगले
दिल्ली में टैंकर से सिन्धु का जल भेज
देंगे ,वे कृपया लेह न आयें | संघ के
प्रचारक इन्द्रेश जी ने पूरे चार दिन
बौद्ध नेताओं व् मठों में गहन संपर्क किया
और उन्हें यह समझाने में सफ़ल रहे कि
बौद्ध-हिन्दू एकता ही देश के लिए हितकर है
|हिन्दू बुद्ध को भगवान मानतें है | यात्रा
से देश की एकता बढ़ेगी और लेह की प्रति
व्यक्ति आय भी | अंत में हिन्दू-बौद्ध
कटुता का वातावरण कम हुआ | यात्रा की
अनुमति मिली,लामा लोप्जंग आगे आये | फलतः
1997 में भारत के हर प्रान्त से 65 लोगो
को लेकर तीन दिवसीय सिन्धु दर्शन उत्सव की
शुरुआत की गयी | आज 4 दिनों का प्रत्येक
वर्ष सिन्धु दर्शन यात्रा का आयोजन हिमालय
परिवार और सिन्धु दर्शन यात्रा समिति मिल
कर करतें हैं | देश के प्रत्येक प्रान्त
से हजारों की संख्या में नागरिक इसमें भाग
लेतें है | लगभग 70,000 भारतीय एवं लगभग
30,000 विदेशी नागरिक अब लेह प्रतिवर्ष
पहुँचने लगें है | इस कारण लेह की प्रति
व्यक्ति आय न्यूनतम 15 हजार से अधिकतम एक
लाख तक बढ़ी है | बौद्ध-हिन्दू एकता की
भावना मजबूत हुई है |
उत्सव की अपार लोकप्रियता को देख कर
राजनैतिक चालों का कुचक्र भी चला | वर्ष
2005 में यू.पी.ए. सरकार की तत्कालीन
पयर्टन मंत्री श्रीमती रेणुका चौधरी ने
घोषणा कर दी कि सिन्धु दर्शन उत्सव का नाम
बदल कर “सिंह खबाबे फेस्टिवल “ किया जाता
है | उनका तर्क था कि सिन्धु शेर के मुख
रुपी उदगम से कैलाश से निकली हैं अतः
स्थानीय भाषा में सिंह खबाबे (शेर मुख )
नाम होना चाहिए , परन्तु स्थानीय जनता ने
सिन्धु नाम पर कभी विरोध नहीं किया | लेह
हिल कौंसिल ,लद्दाख यू.टी.फ्रंट के विधायक
पिंटो नर्बों ने नाम बदलने का विरोध किया
| राष्ट्रीय सिन्धी समाजवादी सभा के
नेतृत्व में सांसद भवन प्रदर्शन कर 18
अप्रैल 2005 को रेणुका चौधरी का पुतला दहन
किया गया |तत्कालीन प्रधानमंत्री
डा.मनमोहन सिंह ने सांसद में एक प्रश्न के
जवाब में आश्वाशन दिया की सिन्धु दर्शन
नाम नहीं बदला जायेगा ,परन्तु अख़बार में
भारतीय पयर्टन विकास निगम का विज्ञापन
निकला कि 10-11-12 जून को सिंह खबाबे
फेस्टिवल (सिन्धु दर्शन ) केवल हवाई मार्ग
द्वारा पैकेज टूर के आधार पर मनाया जायेगा
| अंत में यह यात्रा मात्र सरकारी बन कर
रह गयी | एक सौ से भी कम यात्री पहुचें |
उसी समय सिन्धु दर्शन यात्रा समिति ने
18-19-20 जून को उत्सव मनाया जिसमें कई
हजार की संख्या में देश भर के श्रद्धालु
व् स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया |
वर्ष
2016 के बीसवीं सिन्धु दर्शन यात्रा में
मैंने भी भाग लिया | यात्रा का प्रारंभ
हरियाणा के किसान भवन से शानदार ढंग से
किया गया |हरियाणा के राज्यपाल श्री सोलंकी
, इन्द्रेशजी, स्थानीय एम्.पी. व्
विधायकगणों ने स्वागत किया तथा यात्रा हेतु
विदा किया |पहला पड़ाव मनाली ,दूसरा पड़ाव
केलोंग तथा तीसरे दिन हम लेह पहुच गए | 23
से 26 जून तक हम लेह में उत्सव मानते रहे
| लेह में हिमालय सिन्धु भवन के एक विशाल
संकुल का शिलान्यास राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के सर संघचालक मोहन भागवत व् स्वामी
सत्यमित्रानंद ने कुछ वर्षों पहले किया था
|यह भवन अपने भव्य रूप में बन कर तैयार
था,इसका उदघाटन लालकृष्ण आडवानी जी ने किया
| इस अवसर पर पटियाला क्षेत्रीय
सांस्कृतिक दल,भारत सरकार ने सांस्कृतिक
कार्यक्रम प्रस्तुत किया |सहभोज का भी
आयोजन था | सभी हजारों यात्रियों के ठहरने
की ब्यवस्था स्थानीय होटलों में की गयी थी
| 24 जून को प्रातः 10 बजे कई हजार
यात्रियों नें पवित्र सिन्धु नदी के
दर्शन,स्नान,पूजन किये |दलाई लामा के बाद
बौद्ध पंथ के दुसरे स्थान पर स्थापित लामा
रिम्पोचे जी तथा इन्द्रेश जी ने
बौद्ध-हिन्दू रीती से सिन्धु पूजा –अर्चना
की| हर प्रान्त के सांस्कृतिक कार्यक्रम
हुए | सहभोज समारोह संपन्न हुआ| लेह का
स्थानीय दर्शन कराया गया| शे पैलेस ,स्थानीय
सभी मठ-मंदिर, सेना भवन “हॉल ऑफ़ फेम”व्
नगर का भ्रमण कराया गया |तीसरे दिन लेह से
150 की.मी.दूर 18000 फिट की ऊंचाई पर
स्थित पेंगोंग झील के दर्शन कराया गया |यह
स्थान भारत चीन सीमा पर स्थित है |
कर्राकोरम पास , अक्साई चीन के बिलकुल
निकट 18380 फिट की ऊंचाई पर स्थित
खर्दुन्गला पर्वत चोटी है ,जो विश्व की
सड़क मार्गयुक्त सबसे ऊँची चोटी है ,का
दर्शन कराया गया | अंतिम दिन स्थानीय पोलो
मैदान में समापन कार्यक्रम गीत संगीत व्
स्थानीय सांस्कृतिक समारोह के साथ संपन्न
हुआ |लेह में एक भव्य भारत माता मंदिर के
निर्माण का संकल्प लिया गया जिसमें सभी
धर्मो,मत-पंथ,सम्प्रदाय के देवी-देवताओं
की मूर्तियाँ स्थापित की जाएँगी | धन
एकत्र कर कार्य प्रारंभ भी हो गया है |
विद्या भारती ने यहाँ एक बड़ा आवासीय हाई
स्कूल भी स्थापित किया है ,जो कई वर्षों
से कई एकड़ क्षेत्रफल में सफलता पूर्वक
स्थानीय निवासियों के द्वारा संचालित है |यहाँ
सिन्धु शिक्षा अभियान भी चलाया जा रहा है
जिसमें बौद्ध धर्म के हीनयान व् महायान,
आर्यसमाज आदि पद्धतियों की शिक्षा दी जा
रही है |
हमारा भारत,सारा भारत, एक भारत ,सुन्दर
भारत की संकल्पना को साकार करने के लिए आप
का भी आह्वान है की अगले वर्ष भारत भूमि
के इस ललाट पर स्थित लेह लद्दाख की यात्रा
कर सिन्धु माता के दर्शन करे और राष्ट्रीय
यज्ञ में सहभागी बने |
*सचिव,विश्व संवाद केंद्र ,जियामऊ,लखनऊ
-22600
Ashok
Kumar Sinha
Director,
Lucknow
Jansanchar evam Patrakarita Sansthan
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