चिर
प्रतिद्वन्दी
बसपा
के
प्रति
उदारता
दिखाना
उत्तर
प्रदेश
की
अखिलेश
यादव
सरकार
को
•ाारी
पड़ता
जा
रहा
है।
यूं
तो 2012
के
विधान
स•ाा
चुनाव
में
समाजवादी
पार्टा
ने
मायावती
सरकार
के •ा्रष्टाचार
को
मुद्दा
बनाया
था।
अखिलेश
यादव
ने
प्रदेश
•ार
में
घूम-घूम
कर
माया
सरकार
के
भ्रष्टाचार
की
जांच
कराने
और
सत्ता
में
आने
पर
जेल
•ोज
देने
की
बात
कही
थी।
किन्तु
सरकार
बनते
ही
प्रदेश
की
सत्तारूढ़
समाजवादी
पार्टा
की
नीति
बदल
गई।
उसके
बसपा
के
खिलाफ
वे
तेवर
गायब
हो
गए
जिन्हें
देखकर
जनता
ने
उसे
स्पष्ट
बहुमत
देकर
सत्ता
में
बैठा
दिया
था।
मायाराज
के
प्रति
मुख्यमंत्री
अखिलेश
यादव
की
उदारता
का
सबसे
बडा
उदाहरण
महात्मा
गांधी
ग्रामीण
गारन्टी
रोजगार
अधिनियम
में
हुए
घोटाले
की
जांच
के
प्रति
लापरवाही
रहा
है।
लेकिन
यही
उदारता
अब
अखिलेश
सरकार
की
मुसीबत
बन
गई
है।
आने
वाले
समय
में
यह
मुसीबत
और
ज्यादा
बढ़ेगी।
केन्द्रीय
ग्राम्य
विकास
मंत्री
जयराम
रमेश
पिछले
करीब
एक
साल
से
यह
बात
कहते
आ
रहे
हैं
कि
यूपी
में
मनरेगा
में
बड़ा
घोटाला
हुआ
है।
सात
जिलों
में
ही
करीब
पांच
हजार
करोड़
का
घोटाला
है।
इसकी
सीबीआई
से
जांच
की
सिफारिश
प्रदेश
सरकार
को
करनी
चाहिए।
इसके
लिए
के
न्द्रीय
मंत्री
ने
बाकायदा
मुख्यमंत्री
को
पत्र
•ाी
लिखा।
किन्तु
प्रदेश
सरकार
ने
मनरेगा
घोटाले
की
जांच
सीबीआई
से
कराने
के
प्रति
कोई
रुचि
नहीं
दिखायी।
रमेश
जब •ाी
यूपी
आये
उन्होंने
यही
बात
दोहरायी
कि
यहां
मनरेगा
के
धन
का
दुरुपयोग
हुआ
है,
जांच
जरूरी
है।
अन्तत:
एक
जनहित
याचिका
के
माध्यम
से 31
जनवरी
को
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
की
लखनऊ
खण्डपीठ
ने
प्रदेश
के
सात
जिलों
में
मनरेगा
में 2007
से 2010
के
बीच
हुए
घोटाले
की
सीबीआई
जांच
के
आदेश
कर
दिये।
सीबीआई
ने
यह
•ाी
कहा
कि
जांच
में
प्रदेश
सरकार
पूरा
सहयोग
करे
तथा
सीबीआई
को
आवश्यक
सहयोग
प्रदान
करे।
कोर्ट
ने
सीबीआई
से •ाी
कहा
कि
वह
जांच
की
प्रगति
रिपोर्ट
से
समय
समय
पर
कोर्ट
को
अवगत
कराती
रहे।
जिन
जिलों
में
सीबीआई
जाच
के
आदेश
दिये
गए
हैं
उनमें
गोण्डा,बलरामपुर,महोबा,सोन•ाद्र,संतकबीरनगर,मिर्जापुरऔर
कुशीनगर
शामिल
हैं।
उच्च
न्यायालय
के
आदेश
पर
जांच
मिलने
के
बाद
सीबीआई
तत्काल
सक्रिय
हो
गई।
सीबीआई
ने 21
फरवरी
को
पांच
जिलों
के
तत्कालीन
अधिकारियों
के
खिलाफ
मनरेगा
घोटाले
की
एफआईआर
दर्ज
कर
ली।
इस
एफआईआर
में
घोटाले
की
अवधि
के
दौरान
तैनात
रहे
जिलाधिकारी,
मुख्य
विकास
अधिकारी
और
परियोजना
निदेशकों
को
शामिल
किया
गया
है।
एफआईआर
बलरामपुर,
सोन•ाद्र,
कुशीनगर,
गोण्डा
महोबा
के
अधिकारियों
के
खिलाफ
दर्ज
की
गई
है।
एफआईआर
दर्ज
होते
ही
प्रदेश
सरकार
की
मुसीबत
बढ़ने
लगी
है।
क्योंकि
जांच
की
आंच
पंचम
तल
तक
पहुंचने
की
आशंका
हो
गई।
इस
स्थिति
को •ाांपते
हुए
22
फरवरी
को
आनन
फानन
में
सरकार
ने
मुख्यमंत्री
सचिवालय
में
तैनात
सचिव
पंधारी
यादव
को
हटा
दिया।
क्योंकि
यादव
घोटाले
के
दौरान
सोन•ाद्र
के
जिलाधिकारी
के
पद
पर
तैनात
थे।
बताया
जाता
है
कि
सोन•ाद्र
में
ही
मनरेगा
में
सबसे
बड़ा
घोटाला
हुआ
है।
यहां
करीब 250
करोड़
रुपये
के
घोटाले
की
बात
कही
जा
रही
है।
जबकि
केन्द्रीय
मंत्री
जयराम
रमेश
कहते
रहे
हैं
कि
यूपी
में
मनरेगा
घोटाला
पांच
हजार
करोड़
रुपये
का
है।
मुख्यमंत्री
सचिवालय
में
तैनात
तत्कालीन
सचिव
पंधारी
यादव
अत्यधिक
प्र•ाावशाली
और
सपा
नेतृत्व
के
विश्वसनीय
माने
जाते
हैं।
जांच
के
घेरे
में
पंधारी
यादव
के
आने
और
उन्हें
तत्काल
हटाने
के
बाद
प्रदेश
में
इस
बात
की
चर्चा
शुरु
हो
गई
है
कि
कहीं
अखिलेश
सरकार
पंधारी
यादव
को
बचाने
के
लिए
ही
तो
सीबीआई
जांच
से
नहीं
बच
रही
थी।
क्योंकि
बार-बार
मांग
के
बाद
•ाी
सीबीआई
जांच
की
आवश्यकता
नहीं
समझी
गई,
जबकि
हाईकोर्ट
ने
एक
जनहित
याचिका
पर
तत्त्काल
जांच
के
आदेश
कर
दिये।
पूर्ववर्ती
सरकार
और
उसके
अफसरों
के
प्रति
यह
उदारता
सपा
सरकार
के
लिए
मुसीबत
बनती
जा
रही
है।
क्योंकि
मनरेगा
घोटाले
के
दौरान
तैनात
रहे
करीब
एक
सौ
से
अधिक
अफसर
वि•िान्न
पदो
ंपर
तैनात
हैं।
अब
सरकार
की
मुसीबत
यह •ाी
है
कि
वह
उन्हें
तत्काल
हटाये
या
बनाये
रखे।
यह
स्थिति
सपा
सरकार
की
छवि
को
प्र•ाावित
कर
रही
है।
आखिर
दागदार
अफसरों
को
बचाने
या
प्रमुख
पदों
पर
तैनाती
देने
से
•ाी
सरकार
की
स्वच्छ
छवि
पर
प्रश्नचिन्ह
लगता
ही
है। |