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गंगा सफाई का सराहनीय पुण्य प्रयास

सर्वेश कुमार सिंह

Tags: Publised on 15 December 2019 , Updated at 23:42, Sunday, Author Name: Sarvesh Kumar Singh

Tags:National Ganga Council, Namami Gange Project, Clean Ganga Mission, Kanpur, Sisamau, Narendra Modi

गंगा निर्मल रहे यह केवल सरकार की नहीं हमारी भी जिम्मेदारी है। उत्तराखण्ड से पश्चिम बंगाल तक के सभी राज्यों के जितने भी नगर और गांव गंगा किनारे अवस्थित हैं, सभी को चेतना जगानी होगी। इस 2523 किमी की लम्बाई में प्रवाहित गंगा के किनारे के निवासियों में गंगा सफाई के संकल्प की जरूरत है कि वे अपने किसी भी कार्य से गंगा में प्रदूषित जल अथवा सामग्री प्रवाहित नहीं होने देंगे।

PM NARENDRA MODIकानपुर के सीसामऊ नाले से सीवर का पानी गंगा में जाने से रोक दिया गया है। यह सामान्य समाचार नहीं है। माना जाता था कि सब कुछ हो सकता है लेकिन, कानपुर के सीमामऊ नाले को गंगा में गिरने से नहीं रोका जा सकता। यह एशिया का सबसे बड़ा नाला है। शहर भर की गंदगी को प्रवाहित करके ले जाता है और दो दिन कुछ दिन पहले तक इसे गंगा में गिराता था। लेकिन, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह तय किया कि गंगा सफाई कार्य को एकीकृत करने तथा नमामि गंगे अभियान के पर्यवेक्षण के लिए गठित ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद्’ की पहली बैठक ही उस स्थान पर होगी जोकि गंगा प्रदूषण के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार शहर माने जाने वाले शहर कानपुर में होगी तो उत्तर प्रदेश सरकार के सामने एक चुनौती खड़ी हो गई थी। वह यह कि प्रधानमंत्री के आगमन से पहले कानपुर में कम से कम नालों से प्रदूषण को गंगा में जाने से रोका जाए। इसमें सबसे बड़ी बाधा सीसामऊ नाला ही था। इस चुनौती को उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया और शनिवार को जब कानपुर के चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में समीक्षा बैठक हुई तो बताया गया कि सीसामऊ नाले से प्रदूषित पानी को गंगा में जाने से रोक दिया गया है, तो प्रधानमंत्री ने स्वयं मौके पर जाकर इसका निरीक्षण किया और कार्य पर संतोष व्यक्त किया। इस नाले को टैप किया गया है, ताकि एक भी बूंद गंदा पानी गंगा में प्रवाहित नहीं होने पाये।

एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में जिन कामों की पहल की है उनमें एक गंगा सफाई का अभियान भी है। यह प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि एक पुण्य प्रयास है। वह कोशिश कर रहे हैं कि मोक्षदायिनी गंगा गंगोत्री से गंगासागर तक स्वच्छ, निर्मल, सतत प्रवाह के साथ बहती रहे। इसी प्रयास के तहत जब शनिवार 14 दिसम्बर को कानपुर में गंगा परिषद् की बैठक करके उन्होंने गंगा सफाई अभियान की समीक्षा और स्थलीय निरीक्षण किया तो यह विश्वास दृढ़ हो गया कि प्रबल  इच्छा शक्ति से कठिन से कठिन कार्य को भी सम्पन्न किया जा सकता है। क्योंकि गंगा सफाई की बात तो देश में पिछले तीस सालों से हो रही थी। सरकारों ने इसके लिए धन का आबंटन भी किया था, किन्तु परिणाम सामने नहीं आ रहा था। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तो उन्होंने इस कार्य को न केवल प्राथमकिता में रखा है बल्कि इसका पर्यवेक्षण भी वे स्वयं करते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2015 में गगा सफाई अभियान को ‘एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन’ का स्वरूप दिया और इसका नामकरण ‘नमामि गंगे’ किया। इतना ही नहीं उन्होंने इसे केबिनेट की बैठक में 15 मई 2015 को स्वीकृति प्रदान करा दी। साथ ही इसे सेंटर सेक्टर में शामिल किया ताकि शत प्रतिशत परियोजना व्यय केन्द्रीय निधि से करके गंगा को निर्मल बनाया जाए। योजना की कार्य अवधि 2020 तक निर्धारित कर दी गई। इस तरह यह परियोजना 2015-2020 घोषित हुई। इसके लिए 20,037 करोड़ का बजटीय आबंटन किया गया।

गंगा सफाई में जन सहभागिता जरूरी

यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन अति महत्व का कार्य है। क्योंकि गंगा हमारे लिए न केवल आस्था और विश्वास की धारा है बल्कि हमारे जन जीवन में उसका प्रमुख स्थान है। गंगा की अवरिलता जन जीवन के लिए आवश्यक है। इसका पारिस्थित महत्व के साथ-साथ हमारी कृषि  और अर्थव्यवस्था के साथ सम्बन्ध है। ज्यों ज्यों गंगा प्रदूषित होती गई हमारे जन जीवन पर इसका दुष्प्रभाव पड़ने लगा। गगा के प्रदूषण से तमाम तरह की बीमारियां जन्म लेने लगीं हैं। जलीय जीवों के नष्ट होने से परिस्थितिकि प्रभावित हो गई है। इसलिए इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करना ही होगा। लेकिन, यह केवल सरकारों के लिए छोड़ देना ही काफी नहीं होगा। इसमें सरकारें सहयोग कर सकती हैं लेकिन जन भागीदारी के बगैर यह पुण्य कार्य लक्ष्य पर नहीं पहुंचेगा। गंगा निर्मल रहे यह केवल सरकार की नहीं हमारी भी जिम्मेदारी है। उत्तराखण्ड से पश्चिम बंगाल तक के सभी राज्यों के जितने भी नगर और गांव गंगा किनारे अवस्थित हैं, सभी को चेतना जगानी होगी। इस 2523 किमी की लम्बाई में प्रवाहित गंगा के किनारे के निवासियों में गंगा सफाई के संकल्प की जरूरत है कि वे अपने किसी भी कार्य से गंगा में प्रदूषित जल अथवा सामग्री प्रवाहित नहीं होने देंगे।

गंगा सफाई की चुनौतियां क्या हैं

गंगा में प्रदूषण के मुख्य रूप से पांच कारण चिन्हित किये गए हैं। इसमें सबसे प्रमुख कारण है तटीय नगरों और कस्बों से निकलने वाले सीवर का प्रदूषित जल, दूसरा बड़े नगरों में अवस्थित औद्योगिक इकाइयों का कचरा। इसमें कानपुर में टेनरियों से निकलने वाला प्रदूषण बड़ा कारण चिन्हित किया गया है। तीसरा कारण ठोस कचरा नदी में फेंका जाना या प्रवाहित होकर आना। चौथा कारण गंगा में वर्षात के पानी के साथ प्रवाहित होकर आने वाली सामग्री। पांचवा कारण सहायक नदियों के माध्यम से प्रवाहित होकर आ रहे प्रदूषित जल का गंगा जल में सम्मिश्रण। इन कारणो चिन्हित करके शनिवार को गंगा परिषद की बैठक में विचार विमर्श हुआ। विमर्श के दौरान यह भी जानकारी दी गई कि गंगा अपने प्रवाह में सर्वाधिक प्रदूषित कन्नौज से पटना के बीच में है। इसे अभियान में जुटे अधिकारियों ने रेड  जोन कहा है। इस रेड जोन का सर्बाधिक प्रभाव वाला क्षेत्र कानपुर ही है। कुम्भ स्थल प्रयाग राज और वाराणसी भी इसी रेड जोन में शामिल हैं। इस रेड जोन के लिए अलग से कार्य योजना की भी जरूरत है। गंगा सफाई की चुनौतियों का जबाव देते हुए एक बार पूर्व केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने बताया था कि नौकरशाह और मीडिया की उपेक्षा भी सफलता में बाधा है। सुश्री भारती ने यह बात उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के दौरान लखनऊ में भाजपा मुख्यालय में एक पत्रकार वार्ता के दौरान कही थी। उन्होंने बताया था नौकरशाह काम को आगे बढ़ाने की बजाय बाधा उत्पन्न करते हैं और मीडिया अभियान को समझ नहीं रहा है। दोनों की उपेक्षा से अभियान की सफलता में विलम्ब हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया था कि तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार में जिलाधिकारी नमामि गंगे अभियान के लिए अनापत्ति प्रमाण जारी नही कर रहे हैं। हालांकि इसी पत्रकार वार्ता में उन्होंने यह भी कहा था कि अगर अक्टूबर 2018 तक गंगा साफ नहीं हुई तो मैं प्राण त्याग दूंगी।

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