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हर
साल स्वतंत्रता दिवस भाषणों में गुजर जाता
है। इस साल भी इससे ज्यादा की उम्मीद तो
नहीं, लेकिन यह जरूर है कि देश के
प्रधानमंत्री से अच्छे दिनों की आस अब भी
बाकी है। ऐसा लगता है मानो अच्छे दिन जल्द
ही आएंगे, बदलाव जरूर आया है लेकिन उसकी
रफ़्तार अभी धीमी है।
होश सँभालने के बाद से स्वतंत्रता दिवस को
मनाने के अंदाज़ में बदलाव होते देख रही
हूँ और यह महसूस कर पा रही हूँ कि आज़ादी
के इस दिवस में उल्लास तो बहुत है मगर
सम्मान की कमी होती चली जा रही है। मौज़
मस्ती तो खुल के हो रही है मगर मानवता कही
मरती हुई दिख रही है। तिरंगा निष्ठा कम,
फैशन का सिम्बल ज्यादा हो गया है। तीन रंगों
में खुद और समाज को रंग लेने की परंपरा तो
बढ़ी है, लेकिन इन तीन रंगों के पीछे त्याग,
बलिदान को अपने जीवन में उतार लेने की ललक
बहुत कम लोगो में दिखाई दे रही है।
भारत के संविधान में झंडे का सम्मान
प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बताया गया है।
लेकिन इस कर्तव्य का पूरी तरह से पालन जब
देश की राजधानी में नहीं है, जहाँ देश के
संविधान संरक्षक बैठे है। तो ऐसे में अन्य
जगह की क्या उम्मीद की जा सकती है। आज
सुबह मेरी बात दिल्ली के एक दोस्त से हो
रही थी। उसने बताया की एक अगस्त से १५
अगस्त तक वहाँ पतंग उड़ाने का रिवाज़ है।
अमूमन सभी जगह १५ अगस्त को खासकर तिरंगे
रंग की पतंग को उड़ने का रिवाज़ है। मैंने
बोला पतंग उड़ाना तो ठीक है लेकिन तिरंगे
का पतंग उड़ाना ठीक नहीं द्य मेरे दोस्त का
जवाब थाए ऐसा करके हम सभी को बहुत मज़ा आता
है और आसमान में तिरंगा लहरता दिखाई देता
है। बच्चे,बड़े बुज़ुर्ग सभी खुश होते है,
यहाँ तक की देश. प्रदेश के बड़े मंत्री भी
इस दिन पतंगबाज़ी में हिस्सा लेते है। फिर
तुम्हे इस बात से क्या दिक्कत है जब सरकार
को नहीं है।जवाब में मैंने बोला कि पतंग
उड़ाना गलत नहीं है लेकिन तिरंगे का नहीं,
क्योंकि जब तक ये तीन रंग का तिरंगा आसमान
में उड़ता है, तबतक तो ठीक है लेकिन जब
पतंगबाज़ी के चक्कर में यह काटती या फटती
या जमीन पर गिरती है तो इससे तिरंगे का
अपमान होता है। पतंगों से भरा आसमान देखने
में भले अच्छा लगता हो, लेकिन इससे आज़ाद
उड़ने वाले पंक्षियो को भी नुक्सान पहुँचता
है साथ ही तिरंगे का जो तिरष्कार होता है
वह अलग, शौक पूरे करने के तो और भी विकल्प
है। अपनी आज़ादी के जश्न में हमे बेजुबान
पंक्षियो को तो नुक़सान नहीं पहुंचाना
चाहिए और न ही पतंगबाज़ी के चक्कर में
तिरंगे का तिरष्कार होना चाहिए।
साथ ही तिरंगे का ख़रीदा और बेचा जाना भी
उचित नहीं है। यह कोई सामान नहीं बल्कि
देश का सम्मान है। क्यों न इसे हम खुद
बनाये अगर तिरंगे के रंग में देश को रंगना
ही है सरकार या देश के प्रतिष्ठित लोग इसे
मुफ्त में हर दफ्तरों, स्कूलों, दुकानों
आदि में उपलब्ध करवा सकते है। क्या तिरंगे
के लिये सम्मान पैदा करने के लिए यह जरुरी
नहीं की उसे किसी सामान की तरह बेचा या
ख़रीदा ना जाये। क्या इस स्वतंत्रता दिवस
हम तिरंगे को अपने हाथो से बनाकर उसे
वास्तविक सम्मान दे सकते है।
Shalini Srivastav
Freelance Writer
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