इस
वर्ष
की
गोपाष्टमी 7
नवम्बर
को
गाय
के
लिए
असंख्य
संतों
के
बलिदान
को
पचास
वर्ष
पूरे
हो
रहे
हैं।
जब
उन्होंने
इसी
तारीख
को
1966
में
गाय
की
रक्षा
के
लिए
संसद
भवन
पर
विशाल
प्रदर्शन
किया
था।
पुरी
के
शंकराचार्य
निरंजनदेव
तीर्थ,
प्रयाग
के
प्रमुख
संत
प्रभुदत्त
ब्रह्मचारी,
स्वामी
करपात्री
जी
महाराज
और
जैन
मुनि
सुशील
कुमार
के
नेतृत्व
में
शांतिपूर्ण
प्रदर्शन
और
सभा
कर
रहे
देशभर
के
संतों
और
अन्य
गो
भक्तों
पर
पुलिस
ने
बर्बर
अत्याचार
किया
था।
पुलिस
ने
निहत्थे
संतों
और
जनता
पर
गोली
चलायी
थी।
जिस
समय
संसद
भवन
के
सामने
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
श्रीमती
इन्दिरा
गांधी
के
नेतृत्व
की
कांग्रेस
सरकार
की
पुलिस
ने
लाठी
चार्ज,
आंसू
गैस
और
फिर
गोलीबारी
की
थी,
वहां
करीब
एक
लाख
से
अधिक
गो
भक्त
मौजूद
थे।
सैकड़ों
संत
और
जनता
के
लोग
मारे
गए
थे,
अनेक
घायल
हुए
थे।
अंधाधुंध
हुई
फायरिंग
से
संसद
मार्ग
संतो
के
खून
से
लाल
हो
गया
था।
इसके
बाद
हुई
बेकाबू
हुई
भीड़
ने
संसद
के
निकटवर्ती
इमारतों
में
आग
लगा
दी
थी।
आकाशवाणी भवन,
ट्रान्सपोर्ट
भवन
तथा
कनाट
प्लेस
की
कई
इमारतें
में
तोड़फोड़
और
आगजनी
हुई
थी।
गो
रक्षा
के
लिए
स्वतंत्र भारत
के
इतिहास
का
यह
सबसे
बड़ा
संघर्ष
था।
लाला
हरदेव
सहाय
के
नेतृत्व
में
गठित
हुई
गो
हत्या
निषेध
समिति
ने
संसद
पर
प्रदर्शन
और
विशाल
सभा
का
फैसला
किया
था।
इस
प्रदर्शन
का
समर्थन
शंकराचार्य,
पंजाब
के
नामधारी
सिखों
और
जैन
मुनि
ने
भी
किया
था।
प्रदर्शन
में
नागा
साधुओं
ने
बढ़चढ़
कर
हिस्सा
लिया
था।
आन्दोलनकारी
साधुओं
ने
इस
कहावत
को
असत्य
साबित
कर
दिया
था
कि
‘साधू
न
चलहिं
जमात’।
साधुओं
ने
संसद
भवन
के
सामने
संगठित
शक्ति
का
प्रदर्शन
किया
था।
इन्दिरा
गांधी
जिम्मेदार
गो
हत्या
निषेध
समिति
ने
भारत
सरकार
से
मांग
की
थी
कि
सम्पूर्ण
देश
में
गो
हत्या
पर
प्रतिबंध
लगाया
जाए।
इसके
लिए
एक
केन्द्रीय
कानून
बनाया
जाना
चाहिए।
देश
के
शीर्षस्थ
संत
समुदाय
का
आशीर्वाद
और
समर्थन
प्राप्त
समिति
ने
कांग्रेस
नेतृत्व
के
समक्ष
अपनी
मांग
शांतिपूर्ण
ढंग
से
प्रस्तुत
की
थी।
इसके
बाद
शंकराचार्य
और
प्रभुदत्त
ब्रह्मचारी
ने
अनशन
की
घोषणा
की।
लेकिन
हठधर्मी
तत्कालीन
कांग्रेस
सरकार
ने
मांग
पर
कोई
ध्यान
नहीं
दिया
तो
प्रदर्शन
की
घोषणा
कर
दी।
इस
घोषणा
के
बाद
कांग्रेस
सरकार
ने
कृषि
मंत्रालय
की
एक
विशेषज्ञ
समिति
बना
दी
जिसने
आन्दोलन
में
घी
डालने
का
काम
किया।
समिति
ने
सिफारिश
कर
दी
कि
‘गो
हत्या
पर
प्रतिबंध
नहीं
लगाया
जा
सकता।
क्योंकि
इस
समय
देश
में
17
करोड़
से
अधिक
गाय
और
बैल
हैं,
जिनमें
बहुत
बड़ी
संख्या
बेकार
है
और
देश
में
चारे
की
बहुत
कमी
है।
इस
स्थिति
को
केवल
गाय
और
बैलों
की
संख्या
कम
करके
ही
सुधारा
जा
सकता
है।’
इस
समिति
के
कुतर्क
से
आन्दोलनकारी
और
भड़क
गए।
इतना
ही
नहीं
जब
संसद
भवन
के
बाहर
संतों
के
भाषण
चल
रहे
थे।
उसी
दौरान
संसद
का
शीतकालीन
सत्र
भी
आहूत
था।
संसद
के
भीतर
गो
रक्षा
का
मुद्दा
उस
दिन
स्वामी
रामेश्वरानन्द
ने
उठाया
था।
किन्तु
हठधर्मी
इन्दिरा
सरकार
के
मंत्रियों
ने
उन्हें
बोलने
नहीं
दिया।
स्पीकर
ने
भी
स्वामी
रामेश्वरानन्द
को
गो
हत्या
का
मामला
नहीं
उठाने
का
निर्देष
दिया।
स्वामी
जी
नहीं
माने
वह
बगैर
अनुमति
के
बोलने
लगे।
इस
पर
उन्हें
संसद
की
कार्यवाही
से
निलंबित
कर
दिया
गया
और
संसद
से
निष्कासित
कर
दिया
गया।
हालांकि,
कांग्रेस
के
दो
सदस्यों
ने
इस
कार्यवाही
का
विरोध
भी
किया
और
कहा
कि
स्वामी
रामेश्वरानन्द
को
अपनी
बात
प्रस्तुत
करने
का
अवसर
दिया
जाए,
किन्तु
सरकार
संसद
में
इस
दिन
गाय
के
मुद्दे
पर
बात
ही
नहीं
सुनना
चाहती
थी।
स्वामी
रामेश्वरानन्द
निष्कासन
के
बाद
सीधे
आन्दोलनकारी
संतों
के
मंच
पर
पहुंच
गए।
उन्होंने
वहां
जाकर
अवगत
कराया
कि
कांग्रेस
सरकार
ने
गो
रक्षा
की
बात
उठाने
पर
उन्हें
संसद
से
निकाल
दिया
है।
इसलिए
अब
साधुओं
को
संसद
को
घेर
लेना
चाहिए
और
मंत्रियों
को
बाहर
नहीं
निकलने
देना
चाहिए।
स्वामी
रामेश्वरानन्द
की
इस
बात
से
साधु
आक्रोशित
हो
गए
और
उन्होंने
संसद
परिसर
को
घेर
लिया।
कुछ
युवा
साधु
संसद
भवन
की
दीवारों
पर
चढ़ने
की
कोशिश
करने
लगे।
इस
पर
पुलिस
ने
लाठी
चार्ज
किया
और
बाद
में
फायरिंग
कर
दी।
यदि
संसद
के
भीतर
इन्दिरा
गांधी
ने
हठधर्मिता
दिखाने
के
बजाय
स्वामी
रामेश्वरानन्द
की
बात
सुनी
होती
और
संतों
के
बीच
आकर
कोई
आश्वासन
दिया
जाता
तो
संतों
का
भीषण
हत्याकाण्ड
टल
सकता
था।
महाराष्ट्र
के
बलिदानी
गो
रक्षा
के
लिए
संतों
के
आह्वान
पर
देशभर
में
ज्वार
था।
देश
के
विभिन्न
हिस्सों
में
आन्दोलन
हो
रहे
थे।
इसी
क्रम
में
आन्दोलन
के
दौरान
महाराष्ट्र
के
वाशिम
में
30
सितम्बर 1966
को
11
गो
भक्तों
का
बलिदान
हो
गया।
यहां
गो
हत्या
रोकने
की
मांग
को
लेकर
जुलूस
निकाला
गया
था।
इस
जुलूस
पर
रास्ते
में
गो
हत्यारों
और
तस्करों
ने
हमला
कर
दिया।
घटना
ने
साम्प्रदायिक
हिंसा
का
रूप
ले
लिया।
छुरेबाजी
और
जला
कर
11
आन्दोलनकारियों
को
मार
दिया
गया।
महाराष्ट्र
की
सरकार
ने
जुलूस
की
सुरक्षा
की
कोई
व्यवस्था
नहीं
की
थी।
वाशिम
में
गो
भक्तों
के
मारे
जाने
की
सूचना
जब
देशभर
में
फैली
तो
संतों
ने
दिल्ली
कूच
करने
का
फैसला
कर
लिया।
उत्तर
प्रदेश
में
भी
गो
भक्तों
का
दमन
गो
हत्या
रोकने
की
मांग
करने
वाले
गो
भक्तों
पर
देशभर
में
अत्याचार
हो
रहे
थे।
उत्तर
प्रदेश
की
राजधानी
लखनऊ
में
गो
हत्या
निषेध
समिति
के
नेतृत्व
में
30
सितम्बर
से
10
अक्टूबर 1954
तक
मंत्रियों
और
विधायकों
के
आवासों
के
सामने
सत्याग्रह
किया
गया
था।
विधान
सभा
का
सत्र
शुरु
होने
पर
11
अक्टूबर
को
विधान
भवन
के
सामने
स्वामी
प्रभुदत्त
ब्रह्मचारी
के
नेतृत्व
में
प्रदर्शन
किया
गया।
यहां
भी
निहत्थे
आन्दोलनकारियों
पर
पुलिस
ने
लाठी
चार्ज
कर
दिया।
यहां
तक
कि
आन्दोलनकारी
महिलाओं
को
भी
पीटा
गया।
स्वामी
जी
समेत
60
आन्दोलनकारियों
को
गिरफ्तार
कर
लिया
गया।
उन्हें
एक
बस
में
बैठाकर
जंगल
में
ले
जाकर
छोड़ने
की
योजना
पुलिस
ने
बनायी।
किन्तु
आम
जनता
और
अन्य
आन्दोलनकारियों
ने
बस
को
विधान
भवन
से
आगे
नहीं
बढ़ने
दिया।
लोग
बस
के
आगे
लेट
गए।
इसके
बाद
पुलिस
को
स्वामी
जी
और
अन्य
गिरफ्तार
आन्दोलकारियों
को
वहीं
रिहा
करना
पड़ा।
कैसे
बचें
गाय
के
प्राण
संतों
के
बलिदान
के
पचास
साल
पूरे
होने
के
बाद
भी
देश
में
गो
रक्षा
के
प्रश्न
का
समाधान
नहीं
हो
सका
है।
आज
भी
गाय
के
प्राण
संकट
में
हैं।
देशभर
में
भारी
संख्या
में
प्रतिदिन
लाखों
गोवंश
का
कटान
हो
रहा
है।
यांत्रिक
कत्लखाने
खोल
दिये
गए
हैं।
कुछ
राज्यों
में
वैध
रूप
से
कुछ
में
अवैध
रूप
से
गायों
को
मारा
जा
रहा
है।
समूचे
देश
में
गो
हत्या
पर
प्रतिबंध
नहीं
होने
की
स्थिति
में
कई
राज्यों
में
खुले
आम
गाय
की
हत्या
होती
है।
दस
राज्यों
केरल,
पश्चिम
बंगाल,
असम,
अरुणाचल
प्रदेश,
मणिपुर,
मेघालय,
मिजोरम,
नागालैण्ड,
त्रिपुरा,
सिक्किम
और
लक्षद्वीप
में
गो
हत्या
निषेध
का
कोई
कानून
नहीं
है।
गाय
हमारी
सांस्कृतिक
और
आर्थिक
पृष्ठभूमि
का
आधार
स्तम्भ
है।
हमारी
धार्मिक
मान्यताएं
और
कर्मकाण्ड
गाय
से
जुड़े
हैं,
तो
खेती
गोवंश
आधारित
है।
अब
तो
वैज्ञानिकों
ने
भी
प्रमाणित
कर
दिया
है
कि
गाय
जलवायु
परिवर्तन
के
दौर
में
जीवन
के
लिए
आवश्यक
सुरक्षातंत्र
मुहैया
कराती
है।
भारतीय
यानि
हिन्दू
संस्कृति
के
विश्वास
तत्व
गो,
गंगा
और
गायत्री
हंै।
समूचे
उत्तर
भारत
में
यह
मान्यता
है
कि
जिसकी
आस्था
इन
तीनों
में
है
वह
हिन्दू
है।
गाय
भारतीय
जनमानस
में
आदि
काल
से
श्रद्धेय
रही
है।
गाय
के
बगैर
भारतीय
संस्कृति
मूल्य
विहीन
है।
इसलिए
गाय
को
बचाना
भारतीय
संस्कृति
को
बचाना
है।
इसीलिए
संतों
ने
गाय
की
रक्षा
के
आन्दोलन
को
धर्मयुद्ध
के
रूप
में
प्रस्तुत
करके
अभियान
शुरु
किया
था।
गो
हत्या
निषेध
को
केन्द्रीय
कानून
बने
गो
हत्या
के
दो
सबसे
बड़े
कारण
हैं।
पहला
यह
कि
देश
में
कोई
भी
ऐसा
केन्द्रीय
कानून
नहीं
है
जो
गो
हत्या
का
निषेध
करता
हो।
दूसरा
देश
के
गो
पालकों
(किसानों)
की
आर्थिक
स्थिति
दिन
प्रतिदिन
जर्जर
होती
जा
रही
है।
महंगाई
बढ़ने
और
खेती
की
जमीन
घटने
के
साथ-साथ
गो
पालन
घाटे
का
कारण
बनता
जा
रहा
है।
इन
दोनों
कारणों
का
समाधान
केवल
भारत
सरकार
कर
सकती
है।
राज्य
केवल
सहायक
की
भूमिका
निभा
सकते
हैं।
केन्द्रीय
कानून
बनने
से
देश
के
उन
राज्यों
में
गो
हत्या
रुकेगी
जहां
अभी
बेरोकटोक
जारी
है।
जबकि
गो
पालकों
या
उन
किसानों
को
जिनके
पास
गाय
हैं,
उन्हें
आर्थिक
कवच
प्रदान
करने
पर
विचार
किया
जाना
चाहिए।
ताकि,
दूध
नहीं
देने
की
स्थिति
में
या
बूढ़ी
होने
पर
कोई
गाय
किसी
किसान
को
भार
महसूस
न
हो।
आज
गो
रक्षा
की
बात
करने
वाले
अधिकांश
लोग
गाय
बेचने
के
लिए
किसान
को
आरोपित
करते
हैं।
उन्हें
गो
पालन
या
किसी
भी
पशु
को
पालने
पर
होने
वाले
व्यय
भार
को
भी
जान
लेना
चाहिए।
आवश्यकता
तो
इस
बात
की
भी
है
कि
जो
वर्ग
गो
पालन
को
अपना
कर्म
और
धर्म
मानता
है
उसे
प्रोत्साहित
और
सम्मानित
किया
जाना
चाहिए।
उत्तर
प्रदेश
में
अनेक
ऐसे
प्रमुख
लोग
हैं
जो
गो
पालन
को
अपने
सम्मान
और
स्वाभिमान
से
जोड़कर
देखते
हैं।
वर्ष
2012-13
में
प्रदेश
की
विधान
सभा
में
पशुपालन
पर
एक
प्रश्न
का
उत्तर
देते
हुए
यहां
के
तत्कालीन
पशुधन
मंत्री
पारस
नाथ
यादव
ने
सवालकर्ता
विधायक
से
बड़े
गर्व
और
स्वाभिमान
से
कहा
था
कि
‘मेरे
पास
जितने
पशु
हैं
उतने
प्रदेश
के
किसी
भी
नेता
के
पास
नहीं
होंगे
इनमें
अधिकांश
गाय
हैं।’
ऐसा
स्वाभिमान
और
गर्व
रखने
वालों
का
सार्वजनिक
सम्मान
किया
जाना
चाहिए।
केन्द्र
सरकार
यदि
इच्छा
शक्ति
प्रकट
करे
तो
केन्द्रीय
कानून
बनाया
जा
सकता
है।
इसके
पहले
भी
कई
बार
संसद
में
गाय
की
हत्या
निषेध
करने
के
लिए
विधेयक
पेश
किये
गए
हैं
लेकिन
एक
बार
भी
पारित
नहीं
हो
सका।
प्रथम
प्रधानमंत्री
जवाहरलाल
नेहरु
की
सरकार
में
कांग्रेस
सदस्य
महावीर
त्यागी
ने
ही
निजी
विधेयक
पेश
किया
था
किन्तु
उन्हें
पार्टी
और
सरकार
के
दवाब
में
वापस
लेना
पड़ा।
इसके
बाद
लाल
बहादुर
शास्त्री
गो
हत्या
निषेध
का
कानून
बनाने
का
प्रयास
किया
किन्तु
उनका
असामयिक
अवसान
हो
गया।
जनता
सरकार
बनने
पर
मोरारजी भाई
देसाई
ने
गो
हत्या
रोकने
के
लिए
कानून
बनाने
का
प्रयास
किया
था,
लेकिन
उनकी
सरकार
अल्प
समय
में
ही
गिर
गई।
राजग
की
गठबंधन
सरकार
में
वर्ष
2003
में
अटल
बिहारी
वाजपेयी
ने
भी
यह
कोशिश
की
किन्तु
वह
अपने
दो
सहयोगी
दलों
के
असहयोग
के
कारण
कानून
नहीं
बना
सके।
प्रधानमंत्री
की
पीड़ा
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
गो
रक्षा
के
मुद्दे
पर
संवेदनशीलन
हैं।
उन्होंने
गुजरात
के
मुख्यमंत्री
रहते
हुए
गो
हत्या
पर
पूर्ण
प्रतिबंध
लगाया
था।
सरकार
के
पास
लोकसभा
में
स्पष्ट
बहुमत
है।
वह
इस
पुनीत
कार्य
को
सम्पन्न
कर
सकती
है।
लेकिन
वह
गो
रक्षा
के
नाम
पर
होने
वाली
राजनीति
से
क्षुब्ध
हैं,
उन्होंने
इस
विषय
पर
अपनी
पीड़ा
व्यक्त
की।
वह
गाय
की
रक्षा
चाहते
हैं
गाय
पर
राजनीति
नहीं।
वास्तव
में
कुछ
लोग
गाय
के
नाम
पर
राजनीति
करते
हैं।
जिन
लोगों
के
कारण
ऊना
या
हरियाणा
जैसी
घटनाएं
हुईं,
वे
लोग
गो
रक्षा
आन्दोलन
को
कमजोर
कर
रहे
हैं।
गाय
की
रक्षा
के
लिए
किसी
प्रदर्शन
की
आवश्यकता
नहीं
है।
गो
भक्ति
और
गो
राजनीति
में
अन्तर
को
चिन्हित
करने
की
भी
जरूरत
है।
यही
पीड़ा
प्रधानमंत्री
ने
नई
दिल्ली
में
अगस्त
के
पहले
सप्ताह
में
आयोजित ‘टाउनहाल’
कार्यक्रम
में
व्यक्त
की
थी।
उनकी
पीड़ा
यूं
ही
नहीं
है,
इसके
प्रमाण भी
मिल
रहे
हैं।
उत्तर
प्रदेश
के
मुरादाबाद
जनपद
में
एक
गोशाला
के
संचालक
को
गो
तस्करों
और
गो
हत्यारों
से
साठगांठ
के
आरोप
में
गिरफ्तार
किया
गया।
ऐसे
ही
कथित
गो
रक्षकों
के
कृत्यों
पर
प्रधानमंत्री
ने
पीड़ा
व्यक्त
की
थी।
गो
पालन
के
लिए
हो
रहे
प्रयासों
में
सरकारी
तंत्र
की
असंवेदनशीलता
भी
कष्टकारी
है।
अन्यथा
कोई
कारण
नहीं
था
कि
राजस्थान
सरकार
को
जयपुर
उच्च
न्यायालय
की
गो
पालन
में
लापरवाही
पर
फटकार
सुननी
पड़ती।
यहां
जयपुर
की
हिंगोलिया
गो
शाला
में
दो
सप्ताह
में
पांच
सौ
गायें
कीचड़
और
दलदल
में
फंस
कर
मर
गई
थीं।
देश
में
नरेन्द्र
मोदी
की
सरकार
ने
कार्यभार
ग्रहण
करते
ही
गो
रक्षा
के
लिए
एक
अच्छा
काम
यह
किया
कि
उसने
गो
मांस
के
निर्यात
पर
दी
जाने
वाली
सब्सिडी
पर
रोक
लगा
दी।
यह
परिवहन
सब्सिडी
देने
की
शुरुआत
मनमोहन
सिंह
की
सरकार
ने
अपने
कार्यकाल
के
आखिरी
दिनों
में
की
थी।
इस
सब्सिडी
की
शुरुआत
एक
जनवरी
2014
को
की
गई
थी।
इसे
वाणिज्य
मंत्री
निर्मला
सीतारमण
ने
कार्यभार
संभालते
ही
वापस
ले
लिया।
संविधान
गो
रक्षा
का
पक्षधर
भारतीय
संविधान
गो
हत्या
का
निषेध
करता
है।
संविधान
के
अनुच्छेद-48
में
स्पष्ट
उल्लेख
है
कि
गाय
और
गो
वंश
की
रक्षा
की
जानी
चाहिए।
अनुच्छेद
में
स्पष्ट
लिखा
गया
है
कि
‘
राज्य
कृषि
और
पशुपालन
को
आधुनिक
और
वैज्ञानिक
प्रणालियों
से
संगठित
करने
का
प्रयास
करेगा
और
विशिष्टत:
गायों
और
बछड़ों
तथा
अन्य
दुधारु
और
वाहक
पशुओं
की
नस्लों
के
परिरक्षण
और
सुधार
के
लिए
और
उनकी
हत्या
का
प्रतिषेध
करने
के
लिए
कदम
उठाएगा।’
इस
अनुच्छेद
के
आलोक
में
केन्द्र
सरकार
गो
हत्या
निषेध
कानून
बना
सकती
है।
महात्मा
गांधी
ने
स्वतंत्रता
आन्दोलन
के
दौरान
ही
गो
हत्या
पर
पूर्ण
प्रतिबंध
की
इच्छा
जाहिर
कर
दी
थी।
उन्होंने
कहा
था
‘
गो
और
गोवंश
तथा
अन्य
मूक
दुधारु
या
वाहन
योग्य
पशुओं
की
हत्या
निषेध
हो।’
लेखक
परिचय:
स्वतंत्र
पत्रकार
पता:
सर्वेश
कुमार
सिंह
, 3/11,
आफीसर्स कालोनी
कैसरबाग,
लखनऊ-226001
फोन:
0522-2284911,
मो.
9453272129,
वाट्सएप: 9455018400
Sarvesh Kumar Singh
Freelance
Journalist
|