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‘‘श्री हनुमान जयन्ती ’’ और चमत्कारिक ‘‘सत्य घटना’’
नरेन्द्र सिंह राणा
Publised on : 20 April 2016,  Last updated Time 20:21                    Tags: Sri Hanuman Jayanti, Narendra Singh Rana

आगामी 22 अप्रैल 2016 दिन शुक्रवार को परमात्मा जो त्रेता में राम बन कर आये उन्होंने चराचर के कल्याण हेतु अनको लीलाएं की और मर्यादापुरूषोत्तम कहलाएं। ऐसे परमपिता परमात्मा श्री राम के अन्नय भगत श्री हनुमान जी की जयन्ती है। हम सब हनुमान जी के दर्शन करने मंगलवार को विशेष रूप से मन्दिर जाते हैं। फल-फूल-प्रसाद आदि भगवान हनुमान को अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। महावीर हनुमान ने जिनको साक्षात दर्शन दिए ऐसे बिरले संत-महात्मा दुलर्भ मिलते हैं परन्तु हर युग में होते हैं। भगवान हनुमान ने रामलीला में वानरराज सुग्रीव की बालि से रक्षा कर उनके प्राण बचाये।

परमात्मा श्री राम से भेंट करायी। माँ जानकी को जो असुरनायक रावण की लंका में कैद थी उनको प्रभु श्री राम की मुद्रिका देकर तथा प्रभु की कुशल कहकर तथा लंका को जला कर माँ सीता को आश्वस्त किया कि माँ ये असुर मारे जायंेगे। भगवान श्री राम की सेना में उनकी कृपा से विकट योद्धा हैं जो सम्पूर्ण लंका को समुद्र में डूबो सकते हैं, लील सकते हैं। स्वयं प्रभु श्री राम के एक बाण मात्र में ये समस्त राक्षर जैसे अग्नि में पतंगें जल जाते हैं वैसे ही जल जायेंगे। माँ जानकी को प्रभु राम का और प्रभु श्री राम को माँ जानकी का समाचार देकर प्रसन्न किया। कुछ न चाहते हुए भी भगवान व माँ से अजरता, अमरता, बल, बुद्धि, भगती आदि का आशीर्वाद पाया। लंका युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी को मेघनाथ ने शक्तिबाण द्वारा मूर्छित कर दिया तब श्री हनुमान जी लंका के वैद्य ‘‘सुषेन’’ को उठा लाये और वैद्य नेे जो संजीवनी बूटी लाने को कहा वह बूटी नहीं पूरा पहाड़ ही उठा लाये। पाताल लोक में अहिरावण को मारा। विभीषण की रक्षा की और उनकी प्रभु श्री राम से मित्रता करायी। यह सही है कि भगवान की जिस पर कृपा होती है उसको हनुमान जी स्वयं जाकर मिलते हैं। उदाहरण ‘‘सुन्दर काण्ड’’ में जब हनुमान जी लंका गये वहाँ उन्होंने घूमते-घूमते एक विशेष कुटिया देखी। कुटिया के बाहर तुलसी जी के पौधे लगे हैं उनमें नये-नये कोपल तुलसी के पत्ते निकले हैं जिन्हें देखकर हनुमान जी अत्यन्त हर्षित हुए और मन ही मन कहने लगे - लंका निसिचर निकर निवासा, इहा कहां सज्जन कर वासा, रामायुध अंकित गृह शोभा बरनि न जाय, नव तुलसीका वृंद तह देख कपि हरषाए’’।

विभीषण जी जब नींद से जागते हैं तो प्रथम राम-राम कहकर उठते हैं - राम-राम तेहि सुमिरन कीन्हा, हृदय हर्ष कपि सज्जन चीन्हा, एहि सन हठ करू पहिचानी, साधु ते होए न कारज हानि। हनुमान जी ने निश्चय किया कि यह सज्जन है, साधु है इससे अपनी ओर से मिलने में कोई हानि नहीं है। साधु स्वयं मिले या उससे कोई जाकर मिले हानि की काई बात नहीं होती। तदोपरान्त हनुमान जी से भंेट के बाद विभीषण जी कह उठे - ‘‘अब मोहि भरोस भयो हनुमन्ता, बिन हरि कृपा मिलहे नहीं सन्ता’’। श्री राम जी के आगमन की सूचना देकर श्री भरत जी के प्राणों की रक्षा भी हनुमान जी ने की।

इसी प्रकार आज तक अभी भी श्री हनुमान जी युगो-युगों से भगवान के भक्तों की प्राण रक्षा करते आए हैं। मेरे भी जीवन में यह घटना दिनांक 20 सितम्बर, 2015 को हरियाणा के जनपद-गुड़गांव स्थित फोरटीज अस्पताल में सांय 3.00 बजे घटित हुई। 19 सितम्बर को लखनऊ स्थित चरक हास्पिटल से मुझे रीढ़ की हड्डी के आपरेशन हेतु फोरटीज अस्पताल, गुड़गांव रेफर किया गया। 20 सितम्बर की सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अस्पताल की एम्बुलेंस से मुझे गुड़गांव ले जाया गया। डाक्टरों ने मेरी हालत देखते हुए उसी दिन आपरेशन करने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। 3.00 बजे आपरेशन थियेटर के बाहर छोटी ओ0टी0 में स्ट्रेचर पर लेटा हुआ था। वहाँ पर उपस्थित नर्स, डाक्टर, साऊथ इण्डियन भाषा में बातें कर रहे थे। मैं परमात्मा से मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि हे प्रभु यह कष्ट मेरे ही किसी कर्म का फल है, मैं आपका दास हूँ, दास भाव में ही रहता हूँ जो आपको उचित लगे कीजिए, दास कभी उदास या निराश नहीं रहता, मालिक पर उसका पूरा भरोसा जो है। ठीक उसी समय हवा में से बालरूप 16-17-18 वर्ष की आयु के सोने जैसे बदन, हाथ में गदा लिए हुए श्री हनुमान जी प्रकट हुए और मेरी बाई ओर सर की तरफ आकर बैठ गए। मैं बहुत प्रसन्न हुआ।

प्रभु राम जी से मन ही मन कह रहा था कि संकटमोचन आ गए अब तो संकट कटा समझो, आपकी बड़ी कृपा है। भगवान आप दयालु जो हैं, तभी मेरा ध्यान मेरे पैरों की ओर गया और मैंने देखा जमीन में से एक यमदूत काला भुजंग बड़ी-बड़ी मूँछे वह भी गदा लिए है निकल रहा है। मैं अचम्भित हुआ कि यह तो लेने भी आ गया परन्तु परमात्मा जी आपने पहले संकटमोचन को भेजा हुआ है तभी मैं देखता हूँ कि मेरे स्ट्रैचर के बीचो-बीच बाई ओर हनुमान जी से यमदूत का युद्ध हुआ। महावीर हनुमान जी ने उसको मिनटों में मार डाला और वहीं जमीन में ठीक उसी जगह जहाँ से वह निकला था दफन कर दिया। पूरा फर्श जस का तस हो गया। हनुमान जी पुनः मेरी बांयी ओर सर की तरफ आकर बैठ गए। हनुमान जी को सुप्रसिद्ध राम कथावाचक मोरारी बापू प्राणवायु कहते हैं तथा उनको युवा कहते हैं। हनुमान जी सदा युवा हैं ऐसा वे स्वयं कहते हैं। हनुमान जी को प्राणवायु कहते हैं ऐसा मैंने सोचा ही था कि सुई के धागे जैसी बर्फ के रंग की एक रेखा सी मेरी नाक पर आकर लगी सारा शरीर ऐसा हो गया जैसा फूल, कपास एकदम हल्का, मैंने प्रभु से कहा रोग भी खत्म करा दिया, आक्सीजन भी दे दी, अब तो डाक्टरों का नाम होगा। इतना कहते ही आपरेशन थियेटर में मुझे ले जाया गया और आपरेशन हुआ। मैं रीढ़ की हड्डी का आपरेशन कराकर बिल्कुल ठीक हूँ क्योंकि भगवान की कृपा है। यह दर्शन का प्रदर्शन नहीं बल्कि अटूट श्रद्धा, प्रेम, विश्वास है। सब का भला करे भगवान जय हनुमान।


नरेन्द्र सिंह राणा

9415013300

News source: U.P.Samachar Sewa

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